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वर्तमान समय में कोरोना महामारी का प्रभाव पूरे विश्व पर है। संक्रमण को रोकने के लिए हालांकि तालाबंदी जैसे उपाय किये गये हैं लेकिन ये उपाय कई चुनौतियों को सामने लेकर आये हैं जिनमें उद्योगों का संभावित दिवालियापन का खतरा भी शामिल है। इस परिस्थिति में स्टार्टअप (Startup) संस्थापकों, उद्यम पूंजीपतियों और लॉबी (Lobby) समूहों ने सरकार से उन्हें ‘मजबूत राहत पैकेज’ देने का अनुरोध किया है, जिसे बेलआउट (Bailout) के रूप में जाना जाता है। जब कोई कंपनी या देश संभावित दिवालियापन खतरे का सामना कर रहा होता है, तब इस खतरे से बाहर निकलने के लिए सरकार द्वारा उसको दी जाने वाली वित्तीय सहायता को बेलआउट कहा जाता है। यह ऋण, नकद, बांड (Bonds) या स्टॉक (Stock) खरीद के रूप में हो सकता है। बेलआउट को प्रतिपूर्ति की आवश्यकता हो भी सकती है या नहीं भी, तथा यह अक्सर अधिक से अधिक सरकारी पर्यवेक्षण और नियमों के साथ दिया जाता है। बेलआउट का उपयोग ऐसे उद्योग को सहायता प्रदान करने के लिए किया जाता है, जो लंबे समय तक वित्तीय संकट के कारण दिवालियापन के कगार पर होती हैं। किंतु इस समय बेलआउट का प्राथमिक कारण महामारी के कारण उद्योगों को हुआ नुकसान है।
भारत में छह दर्जन से भी अधिक स्टार्टअप संस्थापकों, उद्यम पूंजीपतियों और लॉबी समूहों ने सरकार से उन्हें मजबूत राहत पैकेज देने का अनुरोध किया है ताकि कोरोना के प्रकोप के कारण जो गंभीर व्यवधान उनके व्यवसायों में आ रहे हैं, वे उसका मुकाबला कर सके। पर्यटन और विमानन जैसे उद्योग तालाबंदी से सबसे अधिक प्रभावित हैं तथा सरकारी बेलआउट की मांग करते हैं हालांकि इसके लिये इन्हें कई आलोचनाओं का सामना भी करना पड रहा है क्योंकि इस प्रकार की मांग करना यह दर्शा रहा है कि उनके पास ऐसी परिस्थिति के लिए कोई दूसरी योजना मौजूद नहीं है। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक संयुक्त पत्र में, स्टार्टअप्स ने सरकार से अनुरोध किया है कि वे छह महीने के लिए उनके कर्मचारियों की तनख्वाह का 50% की वित्तीय सहायता करें, बैंकों से ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करें, तीन महीने के किराया माफी के साथ अन्य चीजों के बीच कर लाभ भी प्रदान करें।
भारत ने उन लोगों की मदद के लिए लगभग 573669.9 करोड के राहत पैकेज की घोषणा की है जो भारत के असंगठित, अनौपचारिक उद्योग का हिस्सा हैं। ये उद्योग 94% आबादी को रोजगार देते हैं और इसके समग्र उत्पादन में 45% का योगदान करते हैं। किंतु तालाबंदी के कारण हजारों लोग रातों-रात बेरोजगार हो गये हैं तथा इसका आर्थिक नतीजा भयावह है। कारोबार बंद होने से बेरोजगारी बढ गयी है और उत्पादकता में भी गिरावट आयी है। इसलिए सरकार को आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए इससे भी अधिक सहायता करने की जरूरत है। गरीबों के लिए मुफ्त अतिरिक्त राशन स्वीकृत किए गए हैं, किंतु गरीब लोगों तक उसकी पहुंच कैसे होगी? सरकार को गरीबों को भोजन वितरित करने के लिए सेना और राज्य मशीनरी का उपयोग करने का एक तरीका तैयार करना चाहिए। सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए किसानों को 2,000 रुपये देने की घोषणा की किंतु निर्यात रूक जाने के कारण यह पैसा अपर्याप्त है। शहरों में कीमतें मुनाफाखोरी की वजह से बढ़ जाएंगी और ग्रामीण इलाकों में ये घट जाएगी क्योंकि किसान अपनी फसल नहीं बेच पाएंगे। अगर आपूर्ति श्रृंखला ठीक से काम नहीं करती है, तो बहुत सारा भोजन बर्बाद हो जाएगा और भारतीय किसानों के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान होगा। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि भारत बेरोजगारी के बड़े संकट की कगार पर है।
सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (The Centre for Asia Pacific Aviation-CAPA) ने आकलन किया है कि भारतीय विमानन उद्योग इस साल लगभग 7574.1 करोड़ से भी अधिक नुकसान का सामना करेगा तथा संभवतः इसका प्रभाव पर्यटन जैसे और उद्योगों पर भी व्यापक होगा। देश भर में होटल और रेस्तरां श्रृंखलाएं खाली हैं और अगले कई महीनों तक खाली रहने की संभावना है, जो बड़े पैमाने पर बेरोजगारी से जुडी हुई है। ऑटोमोबाइल (Automobile) उद्योग, देश की आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख संकेतक है, किंतु विशेषज्ञों का अनुमान है कि उद्योग को लगभग 15148.2 करोड़ के नुकसान की सम्भावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका, चीन और सिंगापुर जैसे देशों की बेलआउट की तुलना में यह महासागर में एक बूंद जैसा है। भारत को इस असाधारण संकट से उभरने के लिए एक बड़े प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है। छोटे व्यवसायों और छोटे-मध्यम उद्यमों (Small-medium enterprises) के लिए यह समय अत्यंत कठिन है क्योंकि यह उन्हें अनिश्चित भविष्य की ओर धकेलता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं तथा 2025 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर (37870500 करोड) की अर्थव्यवस्था के सपने को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, किंतु यदि तत्काल प्राथमिकता पर कोई कदम नहीं उठाये जाते हैं तो वर्तमान की भयावह स्थिति से बाहर निकलने से पहले ही इस तरह के व्यवसाय जीवित रहने में सक्षम नहीं होंगे। कुछ भी करने से पूर्व बेलआउट प्रदान करने के लिए इस स्थिति में देश की आर्थिक क्षमता को समझना महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ यह प्रश्न उठता है कि इस तरह के अनुपात के बेलआउट पैकेज के साथ आने के लिए क्या भारत में राजकोषीय और मौद्रिक हेडरूम (Headroom) है? अर्थशास्त्री इस सोच से किनारा करते हुए कहते हैं कि हर संकट से सकल घरेलू उत्पाद और राजस्व वृद्धि में गिरावट आती है जो स्वचालित रूप से राजकोषीय घाटे के विस्तार करती है।
यह एक स्वचालित स्थायीकारक के रूप में पहचाना जाता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा (बुरा नहीं) है। उनका मानना है कि, व्यय पक्ष पर, सरकार को आर्थिक और कल्याण से जुड़ी समस्याओं पर सीधे ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि व्यर्थ कार्यक्रमों और परियोजनाओं पर संसाधनों को बर्बाद करने में। मौद्रिक नीति के संबंध में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जोखिम मुक्त ब्याज दर कम बनी रहे और वित्तीय प्रणाली (बाजार, संस्थान, उपकरण) को सुचारू रूप से कार्य करने को सुनिश्चित करने के लिए लघु, मध्यम और दीर्घकालिक तरलता प्रदान करें। पैकेज को लघु उद्योग क्षेत्र की ओर निर्देशित करने की आवश्यकता है। दो चीजें आवश्यक है पहला औपचारिक और अनौपचारिक लघु-मध्यम उद्योग क्षेत्र जिनके पास पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा नहीं है, में कार्यरत लोगों के जीवन को बचाना और दूसरा छोटी कंपनियों के स्वास्थ्य को देखना। छोटी कंपनियों को हमेशा तरलता की आवश्यकता होती है, किंतु उद्यमों के हाथों में तरलता अभी ऑक्सीजन की तरह है। विवेकपूर्ण, विनियामक मानदंडों को अभी फिर से शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि असाधारण परिस्थितियां असाधारण उपायों की मांग करती हैं। मौजूदा परिस्थितियों में प्रणाली को निर्देशित करने वाले विवेकपूर्ण मानदंड को चालू करना पड़ सकता है। सरकार को इस स्थिति को दूर करने के लिए कई ऐसे कदम उठाने होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वह समय है जब जीएसटी (GST) और कर से संबंधित सभी लंबित रिफंडों (Refunds) को विधिवत संसाधित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, ऋण भुगतान करने के लिए सभी की समय सीमा 3-6 महीनों के लिए पुनर्निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि चूक न हो। जबकि कोई नहीं जानता कि संकट कितने समय तक रहेगा या नुकसान की वास्तविक सीमा क्या होगी, चिंता यह है कि एक बड़े बेलआउट का रुपया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और अस्थिरता आ सकती है।
जहां विभिन्न उद्यम बेलआउट के लिए अनुरोध कर रहे हैं वहीं विभिन्न कम्पनियां अपने शेयर को वापस खरीद (बायबैक- Buyback) रही हैं। बायबैक में, एक कंपनी बाजार में जाती है और एक इच्छुक विक्रेता से प्रचलित बाजार मूल्य पर अपने स्वयं के शेयर खरीदती है और फिर बकाया शेयरों की संख्या को कम कर उन शेयरों को वापस ले लेती है। हालांकि बायबैक अक्सर कार्यकारी वेतन और आय असमानता से सम्बंधित चिंताओं से जुड़ा होता है, लेकिन यह सीधे मजदूरी और मुआवजे को प्रभावित नहीं करते कंपनी की क्षतिपूर्ति योजना और लाभ मार्जिन (Margin) प्राथमिक कारक हैं जो भुगतान परिणाम चलाते हैं। यह हो सकता है कि कंपनियां अपने शेयरों को वापस खरीद रही हैं, क्योंकि उनके पास विकास के लिए उत्पादक विचारों की कमी है - और अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहतर है कि वे अनुत्पादक विचारों में निवेश करने की तुलना में पूंजी को पुनः प्राप्त करें। कई मामलों में, बायबैक बहुत सारी पूंजी के साथ व्यवसायों से पैसे को अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित करने में मदद कर सकता है। ऐसे महत्वपूर्ण चरणों में, कंपनियां शेयर की कीमतों में गिरावट को स्थिर करने के लिए बाजार खरीद के माध्यम से बायबैक की घोषणा करती हैं। कंपनियों के बोर्डों द्वारा बनाई गई पूंजी के प्रबंधन में लचीलापन भी ऐसी स्थितियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बायबैक के रूप में मूल्य स्थिरीकरण बाजार को एक मजबूत संकेत भेजता है, आत्म विश्वास की भावना और आशंकाओं को बढ़ाता है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में बेलआउट को कलात्मक रूप से प्रदर्शित किया गया है। (Prarang)
2. द्वितीय चित्र में एक कंपनी में कार्य रत लोग हैं। पार्श्व में कम्पनी द्वारा आर्थिक परेशानी के कारण पृथक लोगों को दिखाया गया है। (Freepik)
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Aq8axy
2. https://www।bbc।com/news/world-asia-india-52117704
3. https://tcrn.ch/3gH430L
4. https://bit।ly/3grASyu
5. https://www।financialexpress।com/opinion/buybacks-in-the-time-of-coronavirus/1901239/
6. https://cnb.cx/3gGQEWm
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