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भारत एक अत्यंत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण देश रहा है, यही कारण है कि यहाँ पर अनेकों विदेशियों का आना जाना लगा रहा था। यहाँ पर आये हुए अनेकों विदेशियों में से कईयों ने यहाँ के विषय में विस्तार से लिखा या कुछ न कुछ यहाँ से सम्बंधित बनाया। उदाहरण के लिए हुएन सांग (Hiuen tsang) , फाह्यान (Faxian) आदि जिन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और यहाँ के बारे में लिखा, आज वे सारे लेख इतिहासकारों तथा पुरातत्वविदों के लिए एक प्रमुख श्रोत का कार्य कर रहे हैं। मध्यकालीन भारत एक हॉटस्पॉट (Hotspot) के रूप में विकसित हुआ था जब यहाँ पर अरब से लेकर जापान (Japan), लन्दन (London), चीन (China), रूस (Russia) आदि क्षेत्रों से लोगों के आने का तांता लगा रहा।
भारत के इतिहास में 1857 की घटना को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है जब यहाँ के वीर सपूतों ने आज़ादी का बिगुल मेरठ से फूंका था। हम सभी इस इतिहास को जानते हैं कि किस प्रकार से मेरठ से उठी चिंगारी ने दिल्ली, झांसी, लखनऊ, जौनपुर, कानपुर आदि स्थानों पर क्रान्ति को अपनी पराकाष्ठा पर पहुंची। 1857 की क्रान्ति को भारत में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है, यह लेख इस क्रान्ति से जुड़े हुए एक वाकिये से है जो कि क्रान्ति के दमन होने के बाद गढ़ी गयी थी। इस वाकिये को कैद किया था रूसी सैनिक कलाकार वसीली वीरेशचेन (Vasily Vereshchagin) ने जो कि 1857 की क्रान्ति के बाद भारत आया था उसने अपने कला में उस वाकिये को दर्ज किया जो कि अंग्रेजों द्वारा क्रान्ति के दमन के बाद यहाँ के वीर सपूतों के साथ किया गया था।
यह एक चित्रकला है जो कि अंग्रेजों द्वारा की गयी बर्बरता को प्रस्तुत करती है तथा यह बताने का प्रयत्न करता है कि किस प्रकार से अंग्रेजों ने भारतीय वीर सपूतों को तोप के मुँह पर बाँध कर उन्हें उड़ा दिया था। उसके द्वारा बनाया गया यह चित्र वसीली द्वारा बनायी गयी तमाम चित्रों में से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और मास्टर-पीस (master-piece) चित्र है। वसीली का जन्म 26 अक्टूबर 1842 में हुआ था जो कि रूस के सबसे व्यापक तौर पर पहचाने जाने वाले कलाकारों में से एक थे। वसीली बचपन से ही सेना के प्रति आकर्षित थे तथा उन्होंने अपने शुरूआती दिनों में सेना में नौकरी करनी शुरू की और कालांतर में उन्होंने अपने कला के प्रशिक्षण पर ही ध्यान केन्द्रित कर लिया और सेना की नौकरी छोड़ दी। वसीली ने अपने कला के लिए कई देशों का भ्रमण किया और उन देशों के कई अनूठे पहलुओं को उन्होंने अपने चित्रों में जगह दी।
वसीली ने 1873 में तथा 1884 में भारत की यात्रा किये जिसमे उनके कई ऐसे चित्र भी है जो कि उनकी यात्रा के समय हिमालय के दर्रों और कठिन मार्गों को प्रस्तुत करती हैं। उनके द्वारा बनाया गया चित्र जिसमे वेल्स के राजकुमार के स्वागत को प्रदर्शित किया गया है दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा चित्र है। उन्होंने भारत में ताजमहल, और अन्य महलों और भवनों को अपने चित्र में दर्शाया। इन सभी चित्रों में से 1884 में बनाया गया सप्रेसन ऑफ़ द इंडियन रिवोल्ट बाय द इंग्लिश ( Suppression of the Indian Revolt by the English) एक ऐसा चित्र है जो कि भारतीय इतिहास के उस मार्मिक दृश्य को दर्शाता है जो कि अत्यंत ही भयावह है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र वसीली द्वारा ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता के सैनिकों को तोप से उड़ाने का मार्मिक चित्र (Flickr)
2. युद्ध के एपोथीसिस (1871) (Wikimedia)
3. प्रिंस ऑफ़ वेल्स का उदयपुर में भव्य स्वागत (Publicdomainpictures)
4. भारतीय फ़क़ीर (Flickr)
5. ताजमहल का चित्र (British Museum)
सन्दर्भ
1. https://www.dailyartmagazine.com/vasily-vereshchagin-journey-through-india/
2. https://www.rbth.com/blogs/tatar_straits/2016/04/16/retracing-a-russian-artists-epic-voyages-to-india_585245
3. https://theculturetrip.com/europe/russia/articles/introduction-to-vasily-vereshchagin-in-10-paintings/
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