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आभूषण या गहने भला किसे नहीं पसंद? आज वर्तमान काल में दुनिया भर में लोग आभूषणों का शौक रखते हैं और यही कारण है कि इससे सम्बंधित लाखों उद्योग आज इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। आभूषणों का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है तथा यह मनुष्य के विकास काल से ही शुरू हो गया था। विभिन्न स्थानों की खुदाई में कई मनके मिले हैं जो करीब 72,000 वर्ष पुराना है, यदि इस साक्ष्य के माध्यम से अब देखा जाए तो यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि पाषाणकालीन मानव आभूषण का प्रयोग करता था।
हाल ही में प्राप्त एक पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष से हमें टैटू (Tattoo) के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। जहाँ तक आभूषणों की बात की जाए तो मेरठ के समीप ही बसे हस्तिनापुर से कांच के मनके और काले और भूरें रंग की चूड़ियाँ मिली हैं। हस्तिनापुर एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण पुरातात्विक पुरास्थल है जहाँ से चित्रित धूसर मृद्भांड परंपरा के अवशेष हमें प्राप्त हुए हैं तथा इस पुरास्थल को हम महाभारत काल से भी जोड़ कर देखते हैं। यहाँ से प्राप्त कांच के आभूषणों की तिथि करीब 1,000 ईसा पूर्व की है। इन चूड़ियों को विभिन्न रसायनों और तत्वों के संयोग से बनाया गया था। भारत में कांच के आभूषण बनाने का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन तथा दिलचस्प है, इस लेख के माध्यम से हम इसके इतिहास को जानने की कोशिश करेंगे। जब हम वैश्विक स्तर पर देखते हैं तो हमें पता चलता है कि मेसोपोटामिया (Mesopotamia) की सभ्यता में कांच बनाने का इतिहास करीब 3600 ईसा पूर्व तक जाता है। पुरातात्विक अध्धयन से यह पता चलता है कि पहला वास्तविक कांच सीरिया (syria) के उत्तरी तटीय भाग, मेसोपोटामिया या मिश्र (Egypt) की सभ्यता में बनाया गया था यह तिथि करीब 2,000 ईसा पूर्व की है। इस समय में कांच के मनके बनाए जाते थे। भारत में कांच से बनी वस्तुओं का शुभारम्भ 1,730 ईसा पूर्व के करीब शुरू हुआ था। रोमन (Roman) साम्राज्य में भी पुरातत्ववेत्ताओं ने कांच के पुरावशेषों की प्राप्ति की है जिसका प्रयोग घरेलु कार्यों और कब्र में रखने की वस्तु के रूप में किया जाता था। हस्तिनापुर से जो कांच के अवशेष प्राप्त हुए हैं वे ताम्रपाषाण काल से सम्बन्ध रखते हैं।
भारत में कांच का सबसे प्राचीन साक्ष्य सिन्धु सभ्यता से एक भूरे रंग के कांच के मनके से प्राप्त हुआ है, जिसे 1,700 ईसा पूर्व का माना गया है। यह मनका पूरे दक्षिण एशिया (Asia) में सबसे पहला कांच से सम्बंधित अवशेष है जो यह ये भी प्रतिस्थापित करता है कि आज से करीब 3,700 वर्ष पहले सिन्धु सभ्यता के आखिरी काल में वहां के लोग कांच से परिचित हो चुके थे। प्राचीन भारतीय ग्रन्थ जैसे कि शतपथ ब्राह्मण और बौद्ध ग्रन्थ विनय पीटक में भी कांच का उल्लेख किया गया है। ऐसे ही कई पूरास्थलों से कई कांच के अवशेष प्राप्त होते हैं हांलाकि सबसे पहला और कांच का बड़े पैमाने पर जो प्रयोग किया गया उसका सबूत हमें तक्षशिला से मिलता है, जहाँ से चूड़ियों, मनकों आदि बड़ी मात्रा में प्राप्त हुयी हैं। भारत में स्थानीय स्तर पर कांच के निर्माण की पहली पुरास्थल उत्तर प्रदेश में स्थित है जिसे कोपिया नाम से जाना जाता है, यहाँ से प्राप्त तिथि सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व तक की मानी जाती है। हस्तिनापुर से जो अवशेष मिले हैं उनका निर्माण सोडा-लाइम-सिलिकेट (Soda-Lime-Silicate) और पोटेशियम (Potassium) तथा लोहे के यौगिकों की भिन्न मात्रा के साथ बने हुए थे। भारत में करीब 30 से अधिक ऐसे पुरास्थल हैं जहाँ पर बड़ी संख्या में कांच के अवशेष प्राप्त हुए है, कर्नाटक के रायचूर जिले के मस्की नामक गावं से भी कांच के अवशेष प्राप्त होते हैं। हरियाणा के भगवानपुरा में जो कि एक चित्रित धूसर मृद्भांड संस्कृति का पुरातात्विक स्थल है से भी कांच के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनकी तिथि करीब 1,200 ईसा पूर्व तक आँकी जाती है।
इतिहास की पहली शताब्दी ईस्वी तक भारत में कांच का उपयोग अपने चरम तक पहुँच चुका था तथा इसका प्रयोग आभूषण आदि बनाने के लिए किया जाने लगा। भारतीय कामगारों का ग्रीको-रोमन (Greco-roman) सभ्यता के संपर्क में आने के बाद यहाँ के कारीगर कांच की मोल्डिंग (Molding) की तकनिकी तथा उनको रंगने में भी महारत हासिल कर चुके थे। भारत में सातवाहन राजवंश के काल में मिश्रित कांच के छोटे सिलेंडर (Cylinder) का भी उत्पादन किया गया था। अब तक हमने कांच के इतिहास के विषय में पढ़ा अब हम जानेंगे की इसके कला का विकास कैसे हुआ और यह इतना लोकप्रिय कैसे है? इसकी शुरुआत मिश्र देश और असुर साम्राज्य से हुयी। प्राचीन काल में प्याले से लेकर मंदिरों और खिडकियों में कांच का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया तथा स्टेंड ग्लास (Stained Glass) के विकास के साथ ही यह एक नयी उंचाई पर पहुँच गया। कांच के आभूषणों में सबसे पहला आभूषण मनका ही है जिसको सबसे पहले बनाया गया था। कालान्तर में इसके द्वारा पॉकेट (Pocket) घड़ियाँ आदि भी बनायी जाने जा लगीं। 20वीं शताब्दी में तो कांच के वस्त्रों का भी निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में कांच की मूर्तियाँ, कला के स्टूडियो (Art studio) आदि का भी निर्माण किया गया है। कांच के प्राचीन और आधुनिक कला के प्रतिमानों को सहेज कर रखने के लिए संग्रहालयों का भी निर्माण किया गया है। उदाहरण के लिए म्यूजियम ऑफ़ ग्लास (Museum of Glass) टकोमा (Tacoma)।
प्राचीन सभ्यताओं से लेकर वर्तमान समय तक कांच के विभिन्न प्रकार के आभूषण पाए जाते हैं, जिसमें से एक है फ्युज्ड (Fused) कांच के आभूषण। इस प्रकार के कांच से मुख्य रूप से आभूषण जैसे झुमके, पेंडेंट (Pendant) आदि बनाया जाता है। इस तरह का कांच बनाने के लिए कांच के छोटे-छोटे रंगीन टुकड़ों को भट्टी में करीब 1,200 से 1,700 के तापमान पर गर्म किया जाता है जिसके बाद इसे ठंडा कर के विभिन्न आकार में ढाल लिया जाता है। इसके अलावा कांच का एक अलग प्रकार है जिसे डाइक्रो-ग्लास (Dichroic-glass) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के कांच के आभूषण फ्युज्ड कांच के गहने के सामान ही बनाए जाते हैं परन्तु इनका अपना एक अलग प्रकार या वेश-भूषा होती है। इसमें कांच के अन्दर चमकीले टुकड़ों को मिलाया जाता है जो कांच को झिलमिलाता हुआ परिवेश प्रदान करता है। इस कांच का प्रयोग सर्वप्रथम नासा ने अंतरिक्ष यात्रियों के चेहरे को ढकने के लिए किया था कारण इसमें विभिन्न धातुओं की लगभग 50 सूक्ष्म और पतली परते होती हैं। इस कांच को पिघला के फ्युज्ड कांच के तकनिकी पर ही आभूषण बनाए जाते हैं। अगली तकनिकी या आभूषण मनकों की है। कांच के मनके कंगन, हार, झुमके आदि बनाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। इनको लैंपवर्क (Lampwork) नामक तकनिकी पर बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए तरह तरह के कांच की छड़ों को एक नियत तापमान पर मशाल की तरह पिघलाया जाता है, पिघलाते वक्त पानी की बूँद की तरह कांच चूता है इसी तरह इसे किसी भी आकर के रूप में ढाला जा सकता है। इनको मोतियों पर भी पिघलाया जाता है जिसमे मोती गर्मी से ख़त्म हो जाती हैं और कांच के मनके हमें प्राप्त हो जाते हैं। मुरानो ग्लास (Murano glass) भी एक तकनिकी है जो प्राचीन काल से वेनिस (Venice), इटली (Italy) में विकसित किया गया था। ये अत्यंत ही बहुमूल्य कांच होता है जिसमें कांच के अन्दर कई छोटे-छोटे फूल बनाए जाते हैं। समुद्री कांच एक अन्य तरह का कांच है जिसमें आम कांच को समुद्र में फेंक दिया जाता है और उसे तब तक समुद्र में छोड़ कर रखा जाता है जब तक की वह लहर थपेड़ों आदि से घिस कर चिकना और अपारदर्श ना हो जाए। इस प्रकार के कांच से विभिन्न प्रकार के आभूषण बनाए जाते हैं। आज वर्तमान जगत में कांच के आभूषण अत्यंत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हैं जिसका कारण है इनके विभिन्न चमकीले रंग और भिन्न प्रकार। इनसे बनी सजावटी वस्तुएं भी मनुष्य अपने घरों में रखना चाहता है क्यूंकि ये एक अलग ही खूबसूरती प्रस्तुत करती हैं।
हस्तिनापुर से प्राप्त कांच के अवशेषों के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।
चित्र (संदर्भ):
1. मुख्य चित्र में कांच की चूड़ियां दिखाई दे रही हैं।
2. दूसरे चित्र में हडप्पा से मिले सिंधु सभ्यता के गहने दिखाए गए हैं।
3. तीसरे चित्र में पिघला हुआ कांच दिख रहा है।
4. अंतिम चित्र में कांच के मनके हैं।
सन्दर्भ
1. https://bit.ly/3fS9kSO
2. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_glass
3. http://www.historyofglass.com/
4. https://www.glassofvenice.com/venetian_beads_history.php
5. https://bit.ly/2LtqzvN
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Glass_art#Jewelry
7. https://www.indianmirror.com/culture/jewelry/glass-jewelry.html
8. https://en.wikipedia.org/wiki/Bead
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