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कोरोनावायरस की महामारी के बाद उत्पन्न हुए हालात के बीच सरकार लोगों को समाज से कम संपर्क रखने की सलाह दे रही है। ऐसे में विभिन्न दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए घर से काम करना अति आवश्यक हो गया है। जहां वर्तमान समय में हम सभी घर से काम करना सीख रहें हैं, तो चलिए साथ ही हम घर से कार्य करने के दो महत्वपूर्ण दृष्टिकोण के बीच के अंतर को भी समझ लेते हैं।
1) कार्य और शौक के बीच अंतर :-
अधिकांश लोग “कार्य और शौक” दो पृथक शब्दों को अक्सर मिश्रित कर देते हैं, लेकिन इन दोनों शब्दों के अर्थ और तर्क दोनों में भारी अंतर होता है। हमारे करियर (Career) और हमारे शौक के बीच का अंतर प्रत्येक व्यक्ति के लक्ष्य पर निर्भर करता है, चाहे वह महत्वाकांक्षा हो या आनंद हो। करियर एक प्रकार से एक पेशा या व्यवसाय होता है जो प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में विशिष्ट, केंद्रित लक्ष्य के साथ अनुगमन किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को जिम्मेदारी के साथ प्रयास, अभ्यास और प्रशिक्षण से प्रगति करने की आवश्यकता होती है। दूसरी ओर, शौक को उन गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिन्हें आप विश्राम और आनंद के लिए करते हैं, ये एक प्राथमिक व्यवसाय के रूप में नहीं माना जाता है।
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि पेशे और व्यवसाय को एक व्यक्ति अपनी जीविका चलाने के लिए करते हैं, ऐसे ही कई लोग पैसे कमाने के लिए शौक का भी उपयोग कर लेते हैं। रचनात्मक लेखन, चित्रकारी, सिलाई, और बढ़ईगिरी जैसे शौक एक व्यक्ति को पैसे कमाने की क्षमता प्रदान करते हैं। हालांकि इन दोनों के बीच का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि आपका शौक कितना फायदेमंद है। आम तौर पर, आपको अपने शौक को व्यवसाय का रूप देने के लिए अनुमानतः लगभग तीन से पांच साल के बीच में उससे लाभ प्राप्त करना होगा।
उदाहरण के लिए, शौक और कार्य के अंतर के उदहारण को समझने के लिए इस कहानी को देख सकते हैं, जिसमें एक बच्चे को खिलौने वाले घोड़े पर घुड़सवारी करने का शौक था। वहीं आगे चलकर वो ही बच्चा असली घोड़े पर घुड़सवारी करना शुरू कर देता है और अपने शौक से लाभ उठाने लगता है, तभी वह अपने शौक को कार्य में बदलकर उससे मुनाफा कमाने लगता है।
मान लीजिए कि एक व्यक्ति को संगीत पसंद है और उसके चलते उसने गिटार (Guitar) बजाना सीख लिया और भविष्य में अपनी इस प्रतिभा को उसने करियर में बदल लिया। शौक को करियर में बदलने के बाद वो व्यक्ति अपनी प्रतिभा को एक विपणन कौशल में सुधारने के लिए घंटों अभ्यास करता है। वो पेशेवरों के साथ काम करने के साथ अपने कौशल को लोगों के समक्ष पेश करता है। हालांकि वो व्यक्ति गिटार बजाने के साथ जीवनयापन करने की आवश्यकता से बढ़कर काफी कुछ हासिल कर सकता है।
हालांकि, अर्थशास्त्रियों ने व्यवसाय के दो सामान्य प्रकारों की पहचान की है: औपचारिक और अनौपचारिक। यद्यपि दोनों प्रकार के कार्यों में धन या लाभ के बदले में कार्य किये जाते हैं, लेकिन अनुबंध, क्षतिपूर्ति और नौकरी सुरक्षा जैसी चीजों को लेकर दोनों के बीच कुछ अंतर देखा जा सकता है।
2) औपचारिक रोजगार और अनौपचारिक रोजगार के बीच अंतर :-
एक औपचारिक रोजगार नौकरी सुरक्षा, निश्चित मुआवजा और श्रम कानून संरक्षण (भुगतान, छुट्टी इत्यादि) प्रदान करता है। ये आधिकारिक दस्तावेज (जिसे मुख्य रूप से अनुबंध कहा जाता है) में अच्छी तरह से परिभाषित होते हैं। इसमें आम तौर पर 30 दिनों से 1 वर्ष (अस्थायी अनुबंध) से लेकर जीवन भर (आजीवन अनुबंध) के लिए एक कार्यस्थल, काम के घंटे और संबंधित मुआवजे की शर्तों के साथ रोजगार होता है। वहीं दूसरी ओर अनौपचारिक रोजगार में किसी भी प्रकार के लिखित अनुबंध का अभाव होता है और श्रमिकों को अपरिभाषित काम के घंटे, अलग-अलग वेतन, अचानक समाप्ति और अन्य अवैध कृत्यों का सामना करना पड़ता है।
इनमें एक और बड़ा अंतर यह है कि औपचारिक कार्य आम तौर पर अनौपचारिक कार्य की तुलना में उच्च मजदूरी का भुगतान करता है। जिसका कारण यह है कि औपचारिक कार्य में अनौपचारिक कार्य की तुलना में उच्च स्तर की शिक्षा या प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, एक कंप्यूटर प्रोग्रामर (computer programmer) का कार्य एक प्रकार से औपचारिक होता है, क्योंकि इसके लिए एक व्यक्ति को एक विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, एक पुराने कंप्यूटर को एक पुनरावृत्ति ढेर में फेंकने का कार्य करने वाला व्यक्ति एक प्रकार से अनौपचारिक कार्य करता है, क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। परिणामस्वरूप, औपचारिक कार्यकर्ता आम तौर पर अनौपचारिक श्रमिकों की तुलना में उच्च वेतन और मजदूरी कमाते हैं।
वहीं दूसरी ओर करों से भी औपचारिक और अनौपचारिक कार्य के मध्य अंतर देखा जा सकता है। औपचारिक श्रमिकों को मौजूदा कर दिशानिर्देशों के तहत कर लगाया जाता है और उसी के अनुसार उन्हें तनख्वाह मिलती है। जबकि अनौपचारिक श्रमिकों पर कर नहीं लगाया जाता है और वे स्वयं कर का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। नतीजतन, एक देश जो ज्यादातर अनौपचारिक कार्यों पर निर्भर रहता है, वो कानून के तहत सभी करों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उस देश में लाखों कर्मचारी मौजूद हो सकते हैं जो अपनी आय का विवरण नहीं देते हैं और उस आय पर करों का भुगतान नहीं करते हैं।
भारत में, लगभग 480 मिलियन से भी अधिक श्रमिकों में से लगभग 35 मिलियन औपचारिक श्रमिक हैं और बाकी या तो उद्यमी या देहाती (अनौपचारिक श्रमिक) हैं। 35 मिलियन औपचारिक श्रमिकों में से लगभग 23 मिलियन सरकारी दफ्तरों (केंद्रीय, राज्य और सार्वजनिक उपक्रम) में कार्यरत हैं। वहीं यदि बात की जाएं अनौपचारिक श्रमिकों की संख्या कि तो भारत में लगभग 90% अनौपचारिक श्रमिक हैं, जिन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ, नौकरी अनुबंध या यहां तक कि उचित और समय पर भुगतान की भी गारंटी नहीं मिलती है। वहीं बढ़ते अनौपचारिक व्यवसायों से भारत में बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि स्वाभाविक है, जिसको देखते हुए उन्हें अपने स्वयं के व्यवसायों को औपचारिक रूप देने के लिए प्रेरित करना चाहिए, जिससे उनके श्रमिकों को भी औपचारिकता का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा।
संदर्भ :-
http://bit.ly/2VpoAzN
http://bit.ly/2Pd99EN
http://bit.ly/2V3zwCm
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में संलग्नित दोनों चित्र प्रारंग द्वारा लिए गए चित्र हैं।
pixabay.com - कार्यालय में कार्यकर्ता
लेख में संलग्नित तृतीय और चतुर्थ चित्र प्रारंग द्वारा लिए गए हैं।
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