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हम जानते ही हैं कि 1758 में अमेरिका के मैसाचुसेट्स (Massachusetts) में पैदा हुए डेविड ऑक्टरलोनी (David Ochterlony) को भारत की ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) में शामिल होने के लिए भारत भेजा गया था और भारत में फिर वे दिल्ली में मुगल राजा के महत्वपूर्ण राजदूत बन गए। वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी में रहते हुए और कार्य करते समय उनके द्वारा मेरठ को नियंत्रित किया गया था। इनकी जुलाई, 1825 में मृत्यु हो गई और इन्हें मेरठ के सेंट जॉन्स चर्च (St. John’s Church) में दफनाया गया।
ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन काल में उन्होंने भारतीय नवाबी जीवन शैली को अपनाया था और उनकी एक से अधिक पत्नियाँ थी। सभी पत्नियों में से उनकी सबसे प्रिय पत्नी मुबारक बेगम (जिसे जनराली बेगम के रूप में भी जाना जाता है) को माना जाता है। मुबारक बेगम ऑक्टरलोनी की मृत्यु के बाद भी एक रानी की तरह रहती थी। हालांकि, बहुत कम लोग ही जानते हैं कि मुबारक बेगम को मेरठ में नहीं बल्कि पुरानी दिल्ली में दफनाया गया था और अभी भी दिल्ली में अधिकांश लोग मुबारक बेगम की छोटी सी मस्जिद को ‘रंडी की मस्जिद’ के रूप में जानते हैं। यह शब्द उस समय की तवायफ या नाचने वाली लड़कियों के लिए तिरस्कार को दर्शाता है। जहां ऑक्टरलोनी ने एक भोली लड़की को अपनी बेगम के रूप में रखा और उसे सत्ता में लाया, वहीं नृत्य करने वाली उस लड़की को अपनी पृष्ठभूमि के कारण जनता द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।
मुबारक बेगम की मस्जिद वर्तमान समय में पुरानी दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले इलाके में स्थित है, लेकिन इस भीड़ से होकर गुज़रने के बाद मस्जिद की खड़ी सीढ़ियों से जब अंदर प्रवेश किया जाता है तो वहाँ मौजूद आँगन को देख एक सुखद खुलापन पाया जाता है। इस मस्जिद के प्रार्थना कक्ष में लगभग 10 लोग बैठ सकते हैं। इसकी घरेलू लघुता गुंबदों की कृत्रिमता पर ज़ोर देती है। फर्श संगमरमर का है, दीवारें पीले रंग की हैं और मेहराब चमकदार हरे रंग का है।
जहां पहले नृत्यांगनाओं को दरबार में एक विशिष्ट भूमिका (जैसे, उनके रहने और खाने के लिए शाही स्थान और भोजन) दी जाती थी, वहीं अवध साम्राज्य को ब्रिटिश द्वारा हड़पे जाने के बाद और राजाओं और कई दरबारियों के निर्वासन के बाद नृत्यांगनाओं के लिए शाही सहायता बंद हो गई। साथ ही 1857 के सिपाही विद्रोह ने भी नृत्यांगनाओं के लिए सब कुछ बदल कर रख दिया। ब्रिटिश विश्लेषण ने विद्रोह के लिए उन ब्रिटिश अधिकारियों को दोषी ठहराया जो भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक लिप्त होने और उनके ईसाई मूल्यों को भूलने लगे थे।
केवल इतना ही नहीं कुछ विश्लेषणों से यह पता चलता है कि ब्रिटिश द्वारा नृत्यांगनाओं के विरुद्ध चलाए गए अभियानों के पीछे का असली कारण यह था कि ब्रिटिश ने नृत्यांगनाओं की संपत्ति को लक्षित किया हुआ था, क्योंकि वे उच्चतम कर वर्ग से संबंधित थीं और सर्वश्रेष्ठ इलाकों में विशाल घरों में रहती थीं। अंग्रेजों के भारत में शासन करने के बाद से जो नृत्यांगनाएं कुलीन वर्ग में आती थीं, वे बाद में अपना भरण-पोषण करने के लिए छोटे राजाओं के लिए प्रदर्शन करने लगीं।
वहीं समय के साथ, बहुत कुछ बदल गया और कुछ लेखकों जैसे मयंक ऑस्टेन सूफी के शोध से पता चलता है कि कई दिल्ली की नृत्यांगनाओं की बेटियों ने शुरुआती बॉलीवुड (Bollywood) की फिल्मों में अभिनेत्रियों के रूप में बड़े पैमाने पर स्वीकृति प्राप्त करी, जैसे "नसीमन बानो (सायरा बानो की मां), नरगिस की मां जद्दन बाई और कुछ लोगों का मानना है कि मधुबाला भी एक नृत्यांगना ही थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पिता उनके अभिनय के लिए निर्देशकों से मोल-भाव करते थे। हालांकि इन सभी बातों का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/David_Ochterlony
2.https://www.cntraveller.in/story/old-delhi-randi-ki-masjid-got-name/
3.https://www.livemint.com/Leisure/RjIN9mLmEqU8OJTM1BkjqM/A-poignant-Delhi-mosque.html
4.https://scroll.in/magazine/849681/a-search-for-tawaifs-in-old-delhi-reveals-a-present-thats-not-always-comfortable-with-the-past
5.https://en.wikipedia.org/wiki/David_Ochterlony#/media/File:DavidOchterlonyResidentDelhi.jpg
चित्र सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/David_Ochterlony#/media/File:DavidOchterlonyResidentDelhi.jpg
2. https://www.flickr.com/photos/varunshiv/6652374129
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