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पहले के समय में, बहुत सारे जैविक पारा यौगिकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था, उदाहरण के लिए कुछ पेंट (Paint), फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals), सौंदर्य प्रसाधनों, कीटनाशकों आदि में। जबकि वर्तमान समय में इन सभी यौगिकों का उपयोग विश्व भर के कुछ हिस्सों में कम कर दिया गया है। इसके द्वारा मनुष्यों में होने वाले दुष्प्रभावों के चलते इसका उपयोग कम कर दिया गया है। पारा एक प्राकृतिक घटक है, जो पृथ्वी की भूपर्पटी में लगभग 0.05 मिलीग्राम/किग्रा की औसत प्रचुरता के साथ स्थानीय विविधताओं में पाया जाता है।
200 से अधिक साल पहले मिखैल लोमोनोसोव (Mikhail Lomonosov) ने धातुओं की एक सरल और स्पष्ट परिभाषा बनाई थी, जो कुछ इस प्रकार थी कि “धातु ठोस, लचीले और चमकदार होते हैं”। ये परिभाषा लोहे, एल्यूमीनियम (Aluminium), तांबा, सोना, चांदी, टिन और अन्य धातुओं में सही लागू होती है। लेकिन सामान्य परिस्थिति में कुछ धातु तरल भी होते हैं, जैसे ‘पारा’। जैसा कि अधिकांश लोग जानते ही होंगे कि ठंड के तापमान में भी पारा तरल रहता है और इसे केवल माइनस 38.9 डिग्री सेल्सियस (Celsius) पर ही जमाया जा सकता है।
पारे को पहली बार 1759 में जमाया गया था और इस अवस्था में उसे सिल्वर-ब्लू (Silver-Blue) धातु कहा जाता है, जो दिखने में लेड (Lead) के समान होता है। यदि पारे को हथौड़े की आकृति में ठंडा करके ढालते हैं तो यह इतना कठोर हो जाता है कि आप इस हथौड़े से एक कील ठोक सकते हैं। 13.6 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर घनत्व वाला पारा सभी ज्ञात तरल पदार्थों में सबसे भारी है। उदाहरण के लिए एक लीटर पारे की बोतल का वज़न एक बाल्टी पानी से अधिक होता है। रोगनिवारक उद्देश्यों के लिए पारे का उपयोग कभी-कभी स्पष्ट रूप से संदिग्ध माना जाता था। इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए, कि पारा और इसकी भाप तीव्र विषाक्तता का कारण बन सकती है। उदाहरण के लिए, 1810 में ब्रिटिश जहाज़ ट्रायम्फ (Triumph) पर एक पीपे से बहने वाले पारे से 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
इससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाली हानियों को देखते हुए वैश्विक पारे की खपत में गिरावट देखी गई है। लेकिन इसके बावजूद भी प्रतिस्पर्धी स्रोतों और कम कीमतों से आपूर्ति के कारण खनन से पारे का उत्पादन अभी भी कई देशों में हो रहा है। भारत में इस खतरनाक धातु के लगभग 3,000 औद्योगिक अनुप्रयोग हैं। भारत ने 2012-13 में 165 टन पारे का आयात किया था, जिसमें से 45 टन को उसी वर्ष अन्य देशों को निर्यात कर दिया गया था, जिससे यह पता चलता है कि शेष पारे का उपयोग भारत के उत्पादों के निर्माण के लिए किया गया था। 2014 में, भारत द्वारा 6 से 10 साल के बीच पारे के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया था।
भारत में पारे का उत्सर्जन निम्न योगदानकर्ताओं से होता है:
इस्पात उद्योग : अलौह धातु उद्योग; उष्मीय ऊर्जा संयंत्र; सीमेंट (Cement) उद्योग; कागज़ उद्योग।
अपशिष्ट : अस्पताल अपशिष्ट; म्युनिसिपल (Municipal) अपशिष्ट; इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) अपशिष्ट।
कोयले के जलने से : बिजली और ऊष्मा का उत्पादन।
अपशिष्ट भरावक्षेत्र और श्मशान
उत्पाद: थर्मामीटर; रक्तचाप के उपकरण; दवाइयाँ; कीटनाशक।
विश्व में सबसे ज्यादा पारे का निक्षेप स्पेन (Spain) के अल्माडेन (Almadén) में होता है। रोम (Rome) द्वारा स्पेन से सालाना लगभग 4.5 टन पारा खरीदा जाता है। विश्व बाज़ार में उपलब्ध पारे की आपूर्ति कई विभिन्न स्रोतों से की जाती है, जिसमें शामिल हैं:
• प्राथमिक पारे का उत्पादन या तो खनन गतिविधि के मुख्य उत्पाद के रूप में, या अन्य धातुओं (जैसे जस्ता, सोना, चांदी) के खनन या शोधन के उपोत्पाद के रूप में या खनिज के रूप में होता है।
• प्राकृतिक गैस (Gas) के शोधन से प्राथमिक पारा बरामद किया जाता है।
• औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के कचरे से या क्षीण किए गए उत्पादों से पुनरावर्तित पारा बरामद किया जाता है और आदि कई निजी उत्पादों से लिया जाता है।
संदर्भ:
1. https://archive.org/details/VenetskyTalesAboutMetals/page/n186/mode/2up
2. https://www.greenfacts.org/en/mercury/l-3/mercury-5.htm
3. https://meerut.prarang.in/posts/2510/Mercury-emissions-Increases-the-risk-
4. https://timesofindia.indiatimes.com/home/environment/pollution/Mercury-ban-in-India-within-6-to-10-years/articleshow/43475389.cms
5. https://www.researchgate.net/figure/Sources-of-mercury-in-India-Modified-from-Srivastava-2003_fig5_227153535
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