व्यसन को एक बीमारी के रूप में देखा जाना है आवश्यक

व्यवहारिक
02-03-2020 12:00 PM
व्यसन को एक बीमारी के रूप में देखा जाना है आवश्यक

वर्तमान समय में व्यसन भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक बन गया है। यह एक ऐसी समस्या है जिसमें आधे से अधिक आबादी किसी न किसी प्रकार के व्यसन की लत या आदत से प्रभावित है। फिर चाहे वह शराब की हो, ड्रग्स (Drugs) की हो या अन्य मादक द्रव्यों की। व्यसन एक प्रकार का मस्तिष्क विकार है, जिसमें व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ के सेवन का आदी हो जाता है। यह जानते हुए भी कि वह पदार्थ उसके शरीर और मस्तिष्क पर कितना अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, फिर भी वह उसका सेवन करता है क्योंकि उसे नशीले पदार्थ का सेवन करने पर आनंद या लाभ की अनुभूति होती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति खुद को किसी नशीले पदार्थ का उपयोग करने से रोकने में असमर्थ हो जाता है।

कई मनोसामाजिक कारकों की भागीदारी के बावजूद, एक जैविक प्रक्रिया (जो एक नशे की लत उत्तेजना के बार-बार उजागर होने से प्रेरित होती है) एक मुख्य विकृति है जो किसी लत के विकास और रखरखाव को संचालित करती है। वे दो गुण जो सभी व्यसनी उत्तेजनाओं की विशेषता है, वे ये हैं कि व्यसनी पदार्थ इस संभावना को बढ़ाते हैं कि कोई व्यक्ति उनका बार-बार सेवन करे। दूसरा यह कि व्यक्ति उसे ग्रहण करने से आनंद महसूस करता है। यह विकार ट्रांसक्रिप्शनल (transcriptional) और एपिजेनेटिक (epigenetic) तंत्र के माध्यम से उत्पन्न होता है। भारत में नशे की व्यापकता को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया गया। जिसमें 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आने वाले 186 जिलों में 2 लाख घरों और 4.73 लाख लोगों को आवरित किया गया। इस सर्वेक्षण में 10-75 वर्ष के बीच आने वाली सामान्य आबादी को आवरित किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार भारत में छह करोड़ लोग शराब के आदी हैं। यह लत एक ऐसी स्थिति है जिसमें चिकित्सीय उपचार की आवश्यकता होती है, लेकिन यह उपचार मुश्किल से केवल 3% से भी कम लोगों को मिल पाता है।

देश में बड़ी संख्या में लोग विभिन्न प्रकार के ड्रग्स के आदी हैं। पिछले एक साल में 3.1 करोड़ से अधिक भारतीयों (2.8%) ने कैनबिस (Cannabis) उत्पादों जैसे भांग, गांजा, चरस, हेरोइन और अफीम का उपयोग किया। भारत की कुल शराब खपत में देशी शराब का 30% हिस्सा होता है, और भारतीय निर्मित विदेशी शराब भी उतनी ही मात्रा में होती है। पंजाब और सिक्किम में, भांग से ग्रसित लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक (तीन गुना अधिक) है। राष्ट्रीय स्तर पर हेरोइन सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला नशीला पदार्थ है, जिसके बाद ओपोइड (opioids) तथा ओपियम (opium - एफिम) का उपयोग किया जाता है। 1% से कम या लगभग 1.18 करोड़ लोग शामक पदार्थों का उपयोग करते हैं। चिंताजनक बात यह है कि इनका सेवन करने वालों में बच्चों और किशोरों की संख्या सर्वाधिक है।

बच्चों में यह लत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा में अधिक देखने को मिलती है। नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों को अक्सर निराशाजनक सामाजिक अनुपयुक्त व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। आज का समाज नशीली दवाओं का सेवन करने वाले लोगों को बुरा और खतरनाक समझता है। तथा उनका मानना है कि नशे का सेवन करने वाले व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की सहानुभूति की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार ज्ञान की कमी तथा इस विश्वास का परिणाम है, कि लत सिर्फ गैर-जिम्मेदार व्यवहार का एक और रूप है। हालांकि यह सच है कि कुछ व्यसनी हताशा के कारण आपराधिक या असामाजिक व्यवहार में लिप्त होते हैं। दिमाग पर मादक द्रव्यों से होने वाले नुकसान के कारण उनमें से अधिकांश शायद ही अपने मानसिक संकायों के नियंत्रण में हैं।

अमेरिकन सोसाइटी ऑफ एडिक्शन मेडिसिन (American Society of Addiction Medicine) और अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) सहित प्रमुख चिकित्सा संघों ने नशीली दवाओं और शराब के दुष्प्रयोग को एक बीमारी के रूप में चिन्हित किया है। यहां तक कि अफोर्डेबल केयर एक्ट (Affordable Care Act) के तहत मादक द्रव्यों के सेवन और लत को अच्छे स्वास्थ्य के आवश्यक स्तंभों में से एक के रूप में शामिल किया गया है, जिसका अर्थ है कि व्यसन को एक बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा यह उनकी बीमा योजनाओं का हिस्सा है। चिकित्सा की दृष्टि से, व्यसन एक जटिल बीमारी है जो मस्तिष्क और पूरे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। यह एक बीमारी है क्योंकि यह मस्तिष्क के उन क्षेत्रों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है जो प्रेरणा, प्रतिफल, स्मृति, अधिक महत्वपूर्ण निर्णय आदि के लिए उत्तरदायी हैं। व्यसन न केवल शरीर प्रणालियों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि परिवारों, पारस्परिक संबंधों, स्कूलों, कार्यस्थलों और पड़ोस पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसलिए व्यसन को एक बीमारी के रूप में देखा जाना आवश्यक है।

नशीली दवाओं के प्रभाव, परिणामों, रोकथाम और उपचार इत्यादि को समझने के लिए अक्सर ही पशुओं जैसे चूहे, बन्दर इत्यादि पर शोध किया जाता है। जानवरों के अध्ययन से यह मौलिक अंतर्दृष्टि मिलती है कि लोग नशीली दवाओं का दुरुपयोग क्यों करते हैं और नशीली दवाओं का सेवन कैसे अनिवार्यता या बाध्यता तथा अव्यवस्थित सोच का कारण बन जाता है। जानवरों पर किया जाने वाला शोध नशीले पदार्थों के दुरुपयोग और लत को रोकने और इलाज के लिए रणनीतियाँ बनाने का सुराग भी प्रदान करता हैं। इसके साथ वे संभावित नए टीकों और दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता के परीक्षण भी सहायता प्रदान करते हैं। ये सभी परीक्षण या शोध जंतुओं के उस व्यवहार पर आधारित हैं जो वे मादक पदार्थों के सेवन से प्रदर्शित करते हैं। इससे इस बात की पुष्टि होती है की जंतुओं पर मादक पदार्थों का प्रभाव होता है, और वे भी इनकी लत का शिकार हो सकते हैं। जब प्रयोगशाला में नियंत्रित परिस्थितियों में जानवरों (चूहों, बंदर इत्यादि) को मादक पदार्थों के सम्पर्क में लाया जाता है, तो वे उस व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं, जिसे हम लत या आदत का नाम देते हैं। जैसे वे उन पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करते हैं, उसे पाने के लिए अत्यधिक समय और ऊर्जा खर्च करते हैं, प्रतिकूल परिणामों के बावजूद इसे लेना जारी रखते हैं आदि। इस प्रकार जानवर भी नशीले पदार्थों के आदी हो सकते हैं।

पशुओं पर किया जाने वाला शोध नशीली दवाओं के प्रभाव, परिणामों, रोकथाम और उपचार में अत्यधिक सहायक है। ऐसा जरूरी नहीं है कि केवल नियंत्रित परिस्थितियों में ही जंतु मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं। यह प्रक्रिया खुले जंगलों में स्वयं पशुओं द्वारा भी हो सकती है। जैसे मादक पदार्थ के सेवन के लिए हाथी मारुला (Marula) के पेड़ की तलाश करते हैं, उसके मीठे फलों पर पानी फेरते हैं, और थोड़ा किण्वित रस के नशीले प्रभाव का आनंद लेते हैं। इसके प्रभाव से वे आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। मादक पदार्थों के प्रति पशुओं का व्यवहार एक सहज आनुवंशिक संविधान पर आधारित होता है। उनके दिमाग में रासायनिक प्रतिक्रियाएं उत्तेजक और संवेदनाएं पैदा करती हैं जो उन्हें संकेत देती हैं कि उन्हें मादक पदार्थ खाने चाहिए। कई परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए वे मादक पदार्थों का सेवन करते हैं तथा इनकी लत जानवरों में मनुष्य की अपेक्षा बहुत कम होती है।

सन्दर्भ:
1.
https://bit.ly/3cmyHdI
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Addiction
3. https://detoxofsouthflorida.com/understanding-addiction-disease-rather-taboo/
4. https://bit.ly/2vuR0Na
5. https://www.recoveryfirst.org/blog/can-animals-become-addicted-to-drugs/
6. https://www.searidgedrugrehab.com/article-animals-and-addiction.php
7. https://www.bbc.com/future/article/20140528-do-animals-take-drugs

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