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मेरठ स्थित औघड़नाथ मंदिर में हर साल लाखों कांवड़ियां और शिव भक्त महाशिवरात्रि के अवसर पर गंगा जल चढ़ाते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करने में इन लाखों कांवड़ियों को कई दिन लगते हैं जिसे वे एक यात्रा के रूप में पूरा करते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाता है। कांवड़ यात्रा हरिद्वार, उत्तराखंड के गौमुख और गंगोत्री और बिहार के सुल्तानगंज से गंगा नदी के पवित्र जल को लाने की शिव भक्तों की वार्षिक तीर्थयात्रा है। लाखों भक्त गंगा से पवित्र जल इकट्ठा करते हैं और इसे सैकड़ों मील तक चलकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। मेरठ में मुख्यतः पुरामहादेव और औघड़नाथ मंदिर में गंगा जल चढ़ाया जाता है। शिव भक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आसपास के राज्यों से आकर कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं।
हिंदू पुराणों में कांवड़ यात्रा का सम्बंध समुद्र मंथन से है। माना जाता है कि समुद्र मंथन में जब अमृत से पहले ज़हर बाहर आया तो धरती उसकी ऊष्मा से जलने लगी। यह देखते हुए भगवान शिव ने उस ज़हर को पी लिया। किंतु पीने के तुरंत बाद भगवान शिव ज़हर की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे। त्रेता युग में शिव के अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया तथा कांवड़ का उपयोग कर गंगा के पवित्र जल को लाकर शिव के पुरामहादेव मंदिर में चढ़ाया। इस प्रकार उसने भगवान शिव को ज़हर की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त किया। कांवड़ यात्रा का नाम ‘कांवड़’ जोकि बांस से बनी एक छड़ है, के नाम पर रखा गया है जिसके दोनों सिरों पर एक-एक लगभग बराबर भार बंधे होते हैं। छड़ के बीच के भाग को एक या दोनों कंधों पर संतुलित करके रखा जाता है। कांवड़ियां कांवड़ में अपने ढके हुए गंगा जल को रखते हैं तथा इसे कंधे पर लेकर यात्रा पूरी करते हैं। यात्रा मुख्य रूप से सावन के महीने में होती है जिसमें सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए जाते हैं। मंदिरों में विशिष्ट कमांडो (Commando) के साथ-साथ अर्धसैनिक और स्थानीय पुलिस बल को भी तैनात किया जाता है। सुरक्षा के लिए औघड़नाथ मंदिर परिसर में कंट्रोल रूम (Control room) बनाया जाता है, जिसे मंदिर परिसर और आसपास लगाए गए सीसीटीवी कैमरों (CCTV Cameras) से जोड़ा जाता है। इन कैमरों से पूरे क्षेत्र की निगरानी की जाती है। सभी प्रकार के वाहनों को एक सीमित दायरे में प्रतिबंधित किया जाता है।
बाबा औघड़नाथ की महिमा केवल मेरठ के आसपास ही नहीं बल्कि सात समंदर पार भी फैली है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने कुछ समय से मंगल आरती के पहले बाबा औघड़नाथ का नयनाभिराम श्रृंगार करने की शुरुआत की है। यह तैयारी सुबह तीन बजे से ही शुरू हो जाती है। पांच छह भक्तों का समूह रोज़ाना अलग-अलग तरह से भगवान का श्रृंगार करता है। भक्तों द्वारा एक वाट्सएप ग्रुप (Whatsapp group) बनाया गया है, जिसमें मंगलआरती के पूर्व होने वाले श्रृंगार की फोटो (Photo) साझा की जाती है। मंगलआरती का वीडियो (Video) भी अपलोड (Upload) किया जाता है। इस ग्रुप से जुड़े लोग अमेरिका में भी रहते हैं और रोज़ाना बाबा के दर्शन कर कृतार्थ होते हैं। हर सोमवार और शिवरात्रि पर शाम सात बजे होने वाली महाआरती के समय चांदी निर्मित पंचमुखी महादेव का सौ कमलपुष्पों से श्रृंगार करने की परंपरा है। किंतु मंगलआरती के पूर्व श्रृंगार की नई परंपरा कुछ समय पूर्व से ही शुरू हुई है जिसमें स्वयंभू शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है तथा सात समंदर पार रह रहे भक्त भी नियमित रूप से बाबा के दर्शन कर अनुगृहित होते हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Kanwar_Yatra
2. https://bit.ly/2HxPtZ0
3. https://bit.ly/326kyfR
4. https://bit.ly/3bMm37h
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