समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
अक्सर त्यौहारों पर घर के किसी स्थल को रंगने के लिए गेरू (अंग्रेज़ी में ओकर - Ochre) का उपयोग आज भी किया जाता है। ताकि स्थल को लाल, हल्का पीला, या भूरा रूप दिया जा सके। वास्तव में गेरू एक प्रकार का खनिज है जोकि हल्के पीले से लेकर गहरे लाल, भूरे या बैंगनी रंग का हो सकता है। ये रंग मुख्य रूप से आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) से ढके होने के कारण हो सकते है। गेरू का इस्तेमाल प्राचीन काल से विभिन्न संस्कृतियों द्वारा किया जा रहा है। इसके उपयोग के साक्ष्य मध्य पाषाण युग और मध्य पुरापाषाण युग के हैं। इसका पहला साक्ष्य अफ्रीका से प्राप्त हुआ है जो लगभग 2,85,000 वर्ष पूर्व का है।
कई मध्य पाषाण युग के स्थलों पर इसका उपयोग लगभग 1,00,000 साल पहले से अधिक होने लगा था। ऑरिग्नैशियन (Aurignacians) काल में गेरू का प्रयोग मानव द्वारा नियमित रूप से अपने शरीर को रंगने के लिए किया जाता था। वे अपने जानवरों की खाल को भी गेरू से रंगते थे। अपने हथियारों तथा आवास की ज़मीन को लेपने के लिए भी गेरू का प्रयोग किया जाता था। इसके अलावा घरेलू जीवन के हर चरण में सजावटी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गेरू का प्रयोग एक पेस्ट (Paste) के रूप में होता था। इस प्रकार गेरू का उपयोग एक वर्णक की भांति किया जाता था। अफ्रीका में, प्राचीन काल से लोग इसका उपयोग सूर्य की तेज़ किरणों तथा मच्छरों जैसे कीड़ों से बचने के लिए करते आ रहे हैं। इसमें एंटी-बैक्टीरियल (Anti-bacterial) गुण होते हैं जो कोलेजन (Collagen) को टूटने से रोकते हैं तथा खाल को संरक्षित करने में मदद करते हैं। पराबैंगनी विकिरण के प्रभावों को रोकने के लिए भी गेरू को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया गया है।
ये मुख्य रूप से लोहे से समृद्ध चट्टानें होती हैं जो लोहे के आक्साइडों (Oxides) या ऑक्सीहाइड्रॉक्साइड (Oxyhydroxides) से बनी होती हैं। मध्य पाषाण युग में गेरू को पाउडर (Powder) रूप में परिवर्तित करने के लिए मोटे बलुआ पत्थर की पटिया पर इसके टुकड़ों को पीसा जाता था। आज भी गेरू का उपयोग सनस्क्रीन (Sunscreen) के रूप में किया जाता है। व्यापक रूप से पेंट (Paint) और कलाकृति में भी इसका उपयोग किया जाता है। दुनिया भर में लाल और पीले रंग के कई रॉक आर्ट पैनल (Rock art panels) गेरू आधारित पेंट से बनाए जाते हैं। गेरू को कला और प्रतीकात्मकता का सबसे प्रारंभिक रूप माना गया है। किंतु अपने उपयोग के साथ यह ये बताता है कि कैसे प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक मानव मस्तिष्क विकसित हुआ और विकास के साथ किस-किस प्रकार से इसका उपयोग कई लाभकारी वस्तुओं के निर्माण के लिए किया गया।
कला और विज्ञान के बीच अंतर या विभाजन करने की समझ को भी गेरू की ही देन माना जाता है। गेरू को अक्सर मानव समाधि के साथ भी जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए अरीन कैंडाइड (Arene Candide) के ऊपरी पैलियोलिथिक (Paleolithic) गुफा स्थल में 23,500 साल पहले एक युवा व्यक्ति की कब्र पर गेरू का उपयोग किया गया था। अब तक खोजे गए गेरू का सबसे पहला संभव उपयोग लगभग 2,85,000 साल पुराने एक होमो इरेक्टस साइट (Homo erectus site) से है। इसका उपयोग सोने के आभूषणों पर चमक लाने तथा कपड़ा रंगने के विविध प्रकार के रंगों को तैयार करने में होता है। हीरा, सोना, यूरेनियम (Uranium), लाइम स्टोन (Lime Stone), बॉक्साइट (Bauxite), पोटाश लवण (Potash salts), ग्लास सैंड (Glass Sand) इत्यादि खनिजों के साथ गेरू भी उत्तर प्रदेश राज्य के कुछ हिस्सों में पाया जाता है जिनमें से बांदा एक है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2RIQ4f4
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Ochre
3. https://bit.ly/3atLhGZ
4. https://bit.ly/2GeVLMt
5. https://www.thoughtco.com/ochre-the-oldest-known-natural-pigment-172032
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.