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दिवाली उत्साह का समय होता है, यह वह समय होता है जब हम अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। इस पर्व पर चारों ओर मनोरंजन और प्रेम का माहौल छाया हुआ देखा जा सकता है। लेकिन इन खुशियों के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात हम भूल जाते हैं कि दिवाली पर जलाए जाने वाले पटाखे हमारी माँ तुल्य प्रकृति के लिए कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दौरान और इसके पश्चात हमारे देश में प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है।
वैसे ही वायु पहले से ही इतनी प्रदूषित है और इसमें और अधिक प्रदूषण के लिए कोई जगह नहीं बची है। त्यौहार की तरह ही इसके बाद होने वाले प्रदूषण की चर्चा भी एक वार्षिक अनुष्ठान बन गया है। क्या हम दिवाली के त्यौहार के प्रति इतने गंभीर हो चुके हैं कि अपने आस-पास के लोगों और पर्यावरण के बारे में सोचना ही भूल गए हैं।
पटाखे न केवल प्रदूषण के स्तर को बढ़ाते हैं, बल्कि ये घातक कैंसर (Cancer) पैदा करने वाले पदार्थों को भी प्रभावित करते हैं। पटाखों को बंद करवाने का नीतिगत अभियान केवल चीनी पटाखों को बाज़ार से बाहर करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन यहाँ बात स्वदेशी और बाहरी की नहीं है, सभी पटाखे ज़हरीले और हानिकारक प्रभावों से फेफड़ों, हृदय, दिमाग और अन्य शारीरिक हिस्सों में प्रभाव डालते हैं। भारत में कई जगहों की वायु काफी प्रदूषित है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 41 शहरों में, ज्यादातर उत्तर और मध्य भारत में, 8 नवंबर, 2018 को दिवाली के एक दिन बाद हवा की गुणवत्ता काफी खराब पाई गई थी।
दिवाली में पटाखों का संपूर्ण रूप से त्याग न करने पर लोगों के सामान्य बहाने होते हैं कि ‘यह केवल एक दिन की ही तो बात है’ और ‘हम अपने बच्चों को मनोरंजन करने से कैसे मना कर सकते हैं’। लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि जिन पटाखों से आपके बच्चे आज मनोरंजन करेंगे उन्हीं पटाखों के चलते वे कल कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ सकते है। बच्चे सबसे ज़्यादा पटाखे के प्रदूषण के संपर्क में आते हैं क्योंकि उनका रक्षा तंत्र काफी कमज़ोर होता है। शारीरिक गतिविधियों के उनके उच्च स्तर को देखते हुए, वे वयस्कों की तुलना में हवा में अधिक सांस लेते हैं और इसलिए अधिक प्रदूषण की चपेट में आते हैं। संभवतः इन पटाखों के धुएं वायु से कुछ घंटों के भीतर गायब हो जाते हैं, लेकिन प्रदूषक हमारे चारों ओर मिट्टी, वनस्पति, फसल और पानी में अदृश्य रूप से बस जाते हैं। केवल इतना ही नहीं ये हानिकारक तत्व हमारी खाद्य श्रृंखला के माध्यम से हमारे पास वापस आ जाते हैं।
पटाखों को जलने के लिए कार्बन (Carbon) और सल्फर (Sulphur) की ज़रूरत होती है जो गैसों की एक श्रृंखला का उत्पादन करते हैं। इसमें स्टेबलाइज़र (Stabilizer), ऑक्सीडाइज़र (Oxidizer) और बाइंडर (Binder) के रूप में कार्य करने के लिए बड़ी संख्या में रसायनों को जोड़ा जाता है। ये घातक रसायन हैं – आर्सेनिक (Arsenic), मैंगनीज़ (Manganese), सोडियम ऑक्सालेट (Sodium Oxalate), एल्युमिनियम (Aluminium), पोटेशियम परक्लोरेट (Potassium Perchlorate), स्ट्रोंशियम (Strontium), बेरियम नाइट्रेट (Borium Nitrate) आदि।
दिवाली में आसमान में दिखाई देने वाले ये रंग बिरंगे पटाखों के रंगों का रासायनिक नाम भी होता है - लाल रंग के लिए स्ट्रोंशियम, हरे रंग के लिए बेरियम, नीले रंग के लिए तांबा, बैंगनी रंग के लिए तांबे और स्ट्रोंशियम का मिश्रण। इन रंग बिरंगे पटाखों की चमक के लिए सल्फाइड (Sulphide) का उपयोग किया जाता है, जो फेफड़ों के कैंसर और त्वचा संबंधित विकारों का कारण बनते हैं। हरे रंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला बेरियम नाइट्रेट ज़हरीला होता है, जिससे सांस और जठरांत्र संबंधी समस्याएं और मांसपेशियों में कमज़ोरी आती है। नीला रंग त्वचा विकारों, कैंसर और हार्मोनल (Hormonal) असंतुलन को उत्पन्न करता है। परक्लोरेट फेफड़ों के कैंसर और थायरॉयड (Thyroid) जटिलताओं के लिए ज़िम्मेदार होता है। लेड (Lead) और क्लोराइड शिशुओं और अजन्मे बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक साबित होता है।
दिल्ली के अस्पतालों में घरघराहट, सांस की बीमारी, दमा, ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) आदि के बिगड़ने में कम से कम 30-40% वृद्धि का विवरण है। इंडिया चेस्ट सोसाइटी (India Chest Society) द्वारा पालतू जानवरों पर सुनने में कमी, रक्तचाप, दिल की बीमारियों और मतली के प्रभावों के बारे में बताया गया है। वहीं सरकार को इन सभी चीजों को मद्देनज़र रखते हुए पटाखों पर प्रतिबंध लगाने जैसे मामलों में देश के 135 करोड़ से अधिक लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार और पटाखा निर्माताओं के आजीविका के अधिकार सहित कई बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
वहीं हम में से अधिकांश लोग ग्रीन (Green) पटाखों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। ऐसे ही विशाखापत्तनम के अधिकांश पटाखा व्यापारियों के पास भी ग्रीन पटाखे के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी उपलब्द नहीं है। पारंपरिक पटाखों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही यह जानकारी सामने आई है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान ने एक ऐसे पटाखे को डिज़ाइन (Design) किया है जिसमें बेरियम नाइट्रेट की मात्रा को कम करने और इसे किसी अन्य रसायन के साथ बदलने के लिए कहा गया है ताकि प्रदूषकों का उत्सर्जन लगभग 30% कम हो जाए और शोर का स्तर 160 डेसिबल (Decibel) से 125 डेसिबल तक गिर जाए। यदि निरमाताओं तथा उपभोक्ताओं तक इसके बारे में प्रभावी संचार किया जाए तो हालात सुधर सकते हैं। तो यह प्रत्येक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अपना संपूर्ण सहयोग करें ताकि आने वाली पीढ़ी इस सुंदर पर्यावरण का मज़ा उठा सके।
संदर्भ:
1.https://www.downtoearth.org.in/blog/air/diwali-dark-underbelly-of-light-56158
2.https://www.indiaspend.com/day-after-diwali-toxic-smog-over-41-indian-cities/
3.https://bit.ly/31Ak5Rc
4.https://bit.ly/2yy3xO9
5.https://bit.ly/2o4RSED
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