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भारत बहुत ही समृद्ध देश है तथा ये समृद्धता यहां की जनसंख्या में भी देखने को मिलती है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे संसाधनों की मांग में भी निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। ऊर्जा संसाधन भी इन्हीं संसाधनों में से एक हैं जिनका मानव द्वारा बहुत अधिक दोहन किया जा रहा है। भारत में यह अवस्था चरम पर है जिस कारण भारत को ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ताओं की सूची में शामिल किया गया है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत और ऊर्जा तीव्रता को निम्नलिखित सारणी से समझा जा सकता है:
ऊर्जा संसाधनों की बढ़ती मांग के कारण अब कई क्षेत्रों में इनकी आपूर्ति कर पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश राज्य भी शामिल है जहां ऊर्जा संसाधनों की मांग तो बहुत अधिक है किंतु संसाधनों की कमी के कारण इनकी आपूर्ति नहीं की जा सकती है। पिछले 20 वर्षों में यहां बिजली की कमी 10-15% के दायरे में बनी हुई है। 2013 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में बिजली की मांग और बिजली की आपूर्ति के बीच 43% का अंतर देखा गया था जिसके प्रभाव से यहां औद्योगिक निवेश भी बाधित हुए। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार को बिजली भारत के अन्य राज्यों से उच्च कीमतों पर खरीदनी पड़ती है। इससे राज्य विद्युत बोर्ड (Board) को भरी वित्तीय नुकसान पहुंचता है तथा यह शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे सामाजिक विकास के क्षेत्रों में राज्य के व्यय को भी बाधित करता है। 1999 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के बिजली क्षेत्र में सुधार करने के लिए बिजली क्षेत्र का पुनर्गठन और निजीकरण किया तथा इसे तीन स्वतंत्र सहयोगों- उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (Power Corporation Limited -यूपीपीसीएल), उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उद्योग निगम (State power industry corporation -यूपीआरवीयूएनएल) और उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम (Hydropower corporation -यूपीजेवीएनएल) में विभाजित किया हालांकि बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा।
कई क्षेत्र जहां ऊर्जा की मांग बहुत अधिक है में, वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है। इनकी मुख्य विशेषता यह है कि इनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है अर्थात ये स्रोत नवीकरणीय हैं। इन स्रोतों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, बायोमास (Biomass), जैव इंधन, ज्वारीय उर्जा आदि सम्मिलित हैं। उत्तर प्रदेश में इन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग किसी चुनौती से कम नहीं है। राज्य विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत, विभिन्न राज्य-स्तरीय बिजली नियामकों ने एक नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व निर्दिष्ट किया जिसके अनुसार ऊर्जा का एक प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के लिए यह लक्ष्य 5% निर्धारित किया गया था है जिसमें से 0.5% सौर ऊर्जा निर्धारित की गयी। परन्तु उत्तर प्रदेश इस लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहा। सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली के उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश के अन्य राज्यों से बहुत पीछे है। यहां उत्पादित अधिकांश बिजली कोयले पर निर्भर है, जबकि कोयले की सीमित उपलब्धता और उच्च कीमतों ने यहां अनिश्चित बिजली की स्थिति को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। इसलिए राज्य में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को विकसित करने की बहुत अधिक आवश्यकता है।
राज्य नवीकरणीय ऊर्जा जैसे बायोमास, सौर और जैव ईंधन में समृद्ध है, जिनमें से केवल बायोमास का ही अधिक प्रयोग किया जाता है। क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपार संभावनाएं हैं और इनका उपयोग और वृद्धि निश्चित रूप से राज्य को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेगा। राज्य में पवन ऊर्जा बिजली मांगों को पूरा करने में बहुत अधिक सहायता कर सकती है। इसके माध्यम से बहती वायु से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। 2022 तक भारत ने हवा से 60 गीगावॉट (GW) बिजली हासिल करने का लक्ष्य रखा है। भारत के दक्षिण, पश्चिम और उत्तर क्षेत्रों में पवन ऊर्जा से बहुत अधिक मात्रा में बिजली उत्पन्न की जा रही है। उत्तर प्रदेश के लिए पवन ऊर्जा संयंत्र ऊर्जा आपूर्ति में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
संदर्भ:
1.https://energypedia.info/wiki/Uttar_Pradesh_Energy_Situation
2.https://bit.ly/2NddYNM
3.http://www.altenergy.org/renewables/renewables.html
4.https://indien.um.dk/en/innovation/sector-updates/renewable-energy/wind-energy-in-india/
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