भारत के संदर्भ में स्व-चालित वाहनों की उपयोगिता और चुनौतियां

नगरीकरण- शहर व शक्ति
03-10-2019 02:02 PM
भारत के संदर्भ में स्व-चालित वाहनों की उपयोगिता और चुनौतियां

सड़क वाहन हमारे जीवन का अब एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गये हैं क्योंकि इनके द्वारा हम छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी दूरियों को महज़ कुछ ही समय में पूरा कर लेते हैं। वर्तमान समय में लोग विभिन्न प्रकार के वाहनों का उपयोग करते हैं ताकि वे अपने कीमती वक्त को बचा पायें तथा अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच पायें। इसके महत्व को देखते हुए अब ऑटोमोबाईल (Automobile) उद्योगों द्वारा ऐसी गाड़ियों को सड़क पर उतारने की योजना बनाई जा रही है जो चालक रहित हों, अर्थात स्वचालित हों। स्वचालित वाहन के माध्यम से हमारे जीवन की गुणवत्ता में काफी वृद्धि हो सकती है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि 90% से अधिक सड़क दुर्घटनाएं मानवीय भूल से होती हैं। भारतीय सड़कों पर दुर्घटनाओं का चलन आम सा हो गया है। यहाँ हर 4 मिनट में सड़क दुर्घटनाओं के कारण एक मौत होती है। दिल्ली-मेरठ राजमार्ग को विशेष रूप से सड़क दुर्घटनाओं के केंद्र के रूप में चिह्नित किया गया है।

ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के संदर्भ में स्वचालित गाड़ियाँ महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं क्योंकि ये गाड़ियाँ चालक रहित हैं जिस कारण मानव चालित गाड़ियों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं। ये गाड़ियाँ निम्नलिखित कारणों से उपयोगी हो सकती हैं:
• स्व-चालित गाड़ियाँ चालक की थकान या बीमारी जैसे कारकों से अप्रभावित रहती हैं जोकि उन्हें बहुत सुरक्षित बनाता है।
• स्व-चालित गाड़ियाँ हमेशा चौकन्नी और सक्रिय होती हैं, अपने वातावरण का अवलोकन करती हैं और कई दिशाओं को स्कैन (Scan) कर सकती हैं।
• स्व-चालित गाड़ियाँ सुरक्षित सड़क मार्ग को बढ़ावा देंगी जिससे आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं, महंगी बीमा प्रीमियमों (Premiums) आदि की मांग कम हो जायेगी।

स्व-चालित गाड़ियों में तीन तकनीकों को विशेष रूप से विकसित किया गया है:
IoT सेंसर (IoT Sensors): इन गाड़ियों में कई प्रकार के सेंसर उपलब्ध होते हैं। ब्लाइंड-स्पॉट मॉनीटरिंग (Blind-spot monitoring) के लिए सेंसर, टक्कर की चेतावनी, रडार (Radar), कैमरा, एलआईडीएआर (LIDAR), और अल्ट्रासोनिक (Ultrasonic) सभी एक स्व-चालित कार के नेविगेशन (Navigation) को संभव बनाने के लिए एक साथ काम करते हैं। IoT कनेक्टिविटी (IoT Connectivity): ये गाड़ियाँ ट्रैफ़िक डेटा (Traffic data), मौसम, मैप्स (Maps) आदि के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing) का उपयोग करती हैं। इससे उन्हें अपने परिवेश की बेहतर निगरानी करने और सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।

सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम (Software algorithms): एकत्र किए जाने वाले सभी डेटा को उपयोग में लाने के लिए सर्वोत्तम मार्ग को निर्धारित करने हेतु विश्लेषण की आवश्यकता होती है। यह कार्य नियंत्रण एल्गोरिदम और सॉफ्टवेयर के माध्यम से होता है।
इन सभी तकनीकों के कारण स्व-चालित गाड़ियों का अस्तित्व संभव हो सकता है। गूगल (Google) और टेस्ला (Tesla) द्वारा बनायी गयी स्व-चालित गाड़ियाँ आज अस्तित्व में हैं। इन स्व-चालित गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए भारत में ट्रैफिक पैटर्न (Traffic pattern), सड़क व्यवहार और बुनियादी ढांचे आदि की स्थिति पर डेटा एकत्र करना शुरू कर दिया गया है।


माउंटेन व्यू (Mountain View), कैलिफ़ोर्निया (California) स्थित कंपनी इस डाटा का उपयोग करके ऐसा एल्गोरिदम विकसित करने की योजना बना रही है जो भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा और मानव के बजाय इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics) और मशीन द्वारा वाहन को चलाने में सक्षम करेगा। इन परियोजनाओं को वर्तमान में इंटेल (Intel) द्वारा तेलंगाना और कर्नाटक में अंजाम दिया जा रहा है जिसके बाद गोवा तक इसे विस्तारित किया जायेगा। इसके लिए कंपनी ने राज्य सरकारों के साथ भी साझेदारी की है क्योंकि डेटा का उपयोग करने के लिए राज्य सरकारों की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। भारत उन गिने-चुने बाज़ारों में से है जहां इंटेल इस तरह के कार्यक्रम लागू कर रहा है। विकसित देशों में चालक रहित गाड़ियों का परीक्षण शुरू किया जा चुका है। ऊबर (Uber), टेस्ला (Tesla), ऑडी (Audi), फोर्ड (Ford), बीएमडब्ल्यू (BMW), निसान (Nissan) और टोयोटा (Toyota) आदि कंपनियां स्वायत्त वाहनों पर काम करने लगी हैं। स्वचालित वाहनों के विकास के लिये बड़ी मात्रा में पैसा लगाया जा रहा है तथा विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2020 तक सड़क पर 1 करोड़ स्वचालित गाड़ियाँ होंगी तथा 2030 तक चार गाड़ियों में से एक गाड़ी स्वचालित होगी। किंतु वर्तमान में कई ऐसी बाधाएं हैं जो स्व-चालित गाड़ियों की सफलता के मार्ग में चुनौतियां उत्पन्न करती हैं। इन बाधाओं में से कुछ तकनीकी विकास हैं जबकि कई बाधाएं राजनीतिक और नियामक हैं। अमेरिका के कई राज्यों में स्व-चालित गाड़ियों को अवैध करार दिया गया है। इन्हें मानव-चालित वाहनों की दुनिया में सुरक्षित रूप से एकीकृत करना भी इन वाहनों के विकास के लिए चुनौती है।

हमारा देश भी वर्तमान में स्वचालित गाड़ियों के उपयोग करने की पहुंच से बहुत दूर है। क्योंकि देश बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है। तथा सरकार किसी भी ऐसी तकनीक या नीति को बढ़ावा नहीं देना चाहती जो लोगों को और अधिक बेरोज़गार कर दे। आंकड़ों के अनुसार भारत में 22,00,000 वाहन चालकों की भारी कमी है जिस कारण भारत में वाणिज्यिक चालकों की वर्तमान मांग को पूरा करने के लिए सरकार ने पूरे देश में 100 वाहन चालक प्रशिक्षण संस्थान खोलने की योजना बनाई है। उनकी योजना के तहत एक ऐप (App) भी विकसित की जा रही है जो वर्तमान में ऊबर और उसके भारतीय प्रतियोगी ओला (Ola) को चुनौती देगा तथा छोटे वाणिज्यिक वाहन उद्यमों को एक समान मंच प्रदान करेगा। भारत के असंगठित क्षेत्र में नौकरियों को बचाने के परिपेक्ष में तकनीकी प्रगति और स्वचालित वाहनों के उपयोग से अभी भारत बहुत दूर है। वास्तविकता यह है कि आज का बुनियादी ढांचा स्वायत्तता के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित नहीं है। संक्षेप में, सड़कों के गड्ढे, खराब लेन मार्किंग (Lane marking), और हमारे देश के बुनियादी ढांचे के अन्य सभी ढहते पहलू अच्छी तरह से उच्च तकनीकी का समर्थन नहीं कर सकते हैं।

संदर्भ:
1.
https://www.iotforall.com/how-do-self-driving-cars-work/
2. https://bit.ly/2nUIdAu
3. https://bit.ly/2o2te7m
4. https://bit.ly/2n8nh8x

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