मेरठ में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही टेराकोटा की परंपरा

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
30-09-2019 11:02 AM
मेरठ में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही टेराकोटा की परंपरा

भारत में प्राचीन कला और संस्कृति का इतिहास समृद्ध है तथा इसे देश के कई कारीगरों ने आज तक संरक्षित किया हुआ है। इस संरक्षित कला में टेराकोटा (Terracotta) से बनी वस्तुएं भी शामिल हैं जिनका भारतीय इतिहास के साथ गहरा संबंध है। टेराकोटा की ललित कला अभी भी जीवित है और इसके बहुउपयोगी गुणों के कारण इसे आज भी संरक्षित किया जा रहा है।

मेरठ में बड़ी मात्रा में मिट्टी की विभिन्न वस्तुएं बनायी जाती हैं जो विभिन्न कलाओं और उनकी महानता का प्रतिनिधित्व करती हैं। विभिन्न खुदाई के माध्यम से हस्तिनापुर से कई टेराकोटा (बर्तन, आभूषण, आदि) और सिरामिक (Ceramic) कला और शिल्प का पता लगाया गया। टेराकोटा जहां लोगों को आजीविका या कौशल प्रदान करती है वहीं एक कला के रूप में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पीढ़ियों से चली आ रही है। अत्याधुनिक उच्च तकनीकी सजावटी वस्तुओं के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को देखते हुए टेराकोटा के कारीगरों ने इस कला के अस्तित्व को संरक्षित किया हुआ है। इन पारंपरिक वस्तुओं की मांग केवल शहरी भारत में ही नहीं बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में भी बढ़ रही है। इन मांगों को पूरा करने के लिए टेराकोटा ने लैंप (Lamp), फूलदान, पेंटिंग (Painting), मूर्तियों जैसे सजावटी सामान तथा कटोरे और कप (Cup) आदि का रूप ले लिया है।

यूं तो पारंपरिक हस्तशिल्प आज प्रायः लुप्तप्राय होती जा रही है किंतु टेराकोटा का महत्व आज भी बरकरार है। इसी प्रकार सिरामिक ने भी फूलदान, कप, कटोरे, प्लेटों (Plates) आदि के रूप में अपनी जगह बना रखी है। टेराकोटा का उपयोग भारत में सदियों से किया जाता रहा है तथा ऐसा विश्वास है कि यह महत्वपूर्ण तत्वों - वायु, पृथ्वी, अग्नि और जल के संयोजन से बनी हुई है। सिंधु घाटी सभ्यता के बाद से टेराकोटा भारतीय निर्माण और संस्कृति का मुख्य आधार रही है जो 3300 और 1700 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थी। खुदाई में कई प्राचीन देवताओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जो टेराकोटा से बनी हुई हैं। अब तक की सबसे बड़ी टेराकोटा की मूर्ति अयनार घोड़े की थी जिसे तमिलनाडु में बनाया गया था।

राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्र में टेराकोटा को अपने सफेद रंग के फूलदानों के लिए जाना जाता है। गुजरात में इन्हें पहिया का उपयोग करके बनाया जाता है जिन्हें फिर हाथ से रंगा जाता है। मध्य प्रदेश का बस्तारा भी टेराकोटा से बनी वस्तुओं की समृद्ध संस्कृति और परंपरा के लिए बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है जिनमें घोड़ों, हाथियों और पक्षियों के साथ-साथ मंदिर आदि भी शामिल हैं। हरियाणा राज्य में इससे मुख्य रूप से पारंपरिक हुक्कों का निर्माण किया जाता है।

वर्तमान में टेराकोटा से विभिन्न गहनों, सजावटी मूर्तियों, क्रॉकरी (Crockery), फर्नीचर (Furniture) आदि का निर्माण किया जा रहा है जिन्हें विभिन्न डिज़ाईनों (Design‌) के द्वारा सुंदर व आकर्षक रूप दिया जाता है। भारत के लिए टेराकोटा बहुत ही महत्वपूर्ण है जिस कारण पूरे देश में टेराकोटा को ढूंढना अपेक्षाकृत आसान है। त्यौहारी मौसम में टेराकोटा से बनी वस्तुओं की मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है। दीवाली के दौरान इससे बड़ी संख्या में दीपों का निर्माण किया जाता है जो घर को सुशोभित करते हैं और रोशनी फैलाते हैं। ठीक इसी प्रकार से दशहरा के दौरान भी टेराकोटा से सुंदर-सुंदर खिलौने बनाए जाते हैं। भारत में टेराकोटा का संग्रहालय ‘भारतीय टेराकोटा का संस्कृति संग्रहालय’ है जो नई दिल्ली में स्थित है।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2QAvE5V
2. https://bit.ly/2nQtvtB
3. https://bit.ly/2maKsyy
4. https://contentwriter.in/terracotta-art-india/

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