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फव्वारे का इतिहास प्राचीन क्रीट और ग्रीस से संबंधित है तथा हज़ारों साल पुराना है। जहां फव्वारे प्रारंभिक शहरी जीवन के मूलभूत निर्माण खंड थे, वहाँ उनका 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्माण किया गया, ताकि लोगों तक आसानी से साफ पानी पहुँच सके। उस समय, कई गरीब लोगों को निजी कंपनियों (Companies) से पानी मिलता था, क्योंकि शहर का अधिकतर पानी मानव अपशिष्ट और अन्य अपशिष्टों से प्रदूषित हो रखा था। साथ ही उस समय निःशुल्क साफ पानी मिलना एक बड़ा वरदान था।
मेट्रोपॉलिटन ड्रिंकिंग फाउंटेन एसोसिएशन (Metropolitan Drinking Fountain Association) ने अप्रैल 1859 में पहला पानी पीने का फव्वारा खोला और इसको चालू होते ही देखने के लिए हज़ारों लोग इकट्ठा हुए थे। यह पानी पीने का फव्वारा इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके बाद के दशकों में एसोसिएशन ने यूनाइटेड किंगडम में सैकड़ों और फव्वारे खोल दिए और 1879 तक, अकेले लंदन में लगभग 800 पानी पीने के फव्वारे थे।
न्यूयॉर्क ने लंदन के कुछ ही महीनों बाद अपना पहला पानी पीने का फव्वारा स्थापित किया लेकिन इसे लोकप्रिय होते-होते सन 1880 आ गया। पानी पीने के फव्वारे तो स्थापित हो गए थे परंतु सार्वजनिक लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले धातु के कप (Cup) से बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ गया। लेकिन जब बिना कप के पानी पीने के फव्वारे पहली बार अस्तित्व में आए, तो कुछ लोगों ने उन्हें पुरानी, कप-निर्भर शैली से अलग करने के लिए ‘बब्लर’ (Bubbler) नाम दिया। परंतु बब्लर से भी एक घिनौनी समस्या उजागर हो गई। लोगों ने पानी को मुंह लगाकर पीना शुरू कर दिया। फिर लगभग 1920 के आसपास, पानी को सबसे सुरक्षित प्रारूप देने के लिए पानी को स्लानटेड जेट (Slanted jet) के साथ फव्वारे के रूप में बनाया गया। इसे वर्तमान में भारत के हवाई अड्डों पर भी देखा जा सकता है।
मेरठ के छावनी क्षेत्र (देश का दूसरा सबसे बड़ा) में 2001 और 2006 के बीच 30 फव्वारों को सुसज्जित किया गया था। लेकिन वर्तमान में, इनमें से 10 काम नहीं करते हैं। मेरठ के गांधी बाग में संगीतमय फव्वारा सबसे लोकप्रिय है। यह एक पसंदीदा अड्डा हुआ करता था, क्योंकि इसमें पानी संगीत के स्वर में बहता था लेकिन फव्वारे के सूखने के बाद अब इसका संगीत भी फीका पड़ गया है। यहाँ अधिकांश फव्वारे गोलचक्कर और प्रमुख चौराहों पर लगाए हुए हैं।
वहीं फव्वारों के आने से, हमारे पारंपरिक मिट्टी के बर्तन (मटका) कहीं खोने लग गये हैं। मटका पानी को शीतल और ठंडा रखता है, साथ ही उसके स्वाद को भी बरकरार रखता है। कई भारतीय घरों में गर्मी के दिनों में आज भी मटका रखा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मटके में पानी रखने से कुछ स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं, जो कुछ निम्नलिखित हैं:
गर्मी से होने वाले तापघात को रोकता है :- विटामिन और खनिज जो पानी से प्राप्त होते हैं, विशेष रूप से मिट्टी के बर्तनों में संग्रहित पानी से स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। ठंडा पानी शरीर को ठंडक देने में मदद करता है और अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली समस्याओं को भी रोकता है।
क्षारीय गुण :- यदि मानव शरीर की बात करें तो यह प्रकृतिक रूप से अम्लीय है, जबकि मिट्टी में क्षारीय गुण होते हैं। मिट्टी के बर्तनों में संग्रहित पानी पीने से शरीर के पीएच (pH) को बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे एसिडिटी (Acidity) और गैस्ट्रिक (Gastric) की समस्या दूर रहती है।
गले में हुई खराश का इलाज करता है :- गर्मी के मौसम में गले की खराश का इलाज करने के लिए मिट्टी के बर्तन का पानी एक बढ़िया उपाय है। कमरे के तापमान पर रखा गया पानी काफी गरम होता है और वहीं फ्रिज (Fridge) से लिया गया पानी बहुत ठंडा होता है। इसलिए जो लोग खराब गले या श्वसन संबंधी किसी समस्या से पीड़ित हैं, उन्हें मिट्टी के बर्तन से पानी पीना चाहिए, क्योंकि यह न तो बहुत ठंडा होता है और न ही गर्म, और पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है।
चयापचय और पाचन में सुधार करता है :- जब पानी को मिट्टी के बर्तन में संग्रहित किया जाता है और उसका उपभोग किया जाता है, तो यह और भी बेहतर कार्य सुनिश्चित करता है क्योंकि इसमें रसायन नहीं होते हैं। यह पाचन में सुधार करने में मदद करता है जो वज़न कम करने और शरीर को सामान्य रूप से स्वस्थ रखने में भी काफी लाभदायक होता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2mgmTEp
2. https://bit.ly/2lLD6RJ
3. https://bit.ly/2lRDxdi
4. https://bit.ly/2lLCOdB
5. https://www.huffingtonpost.in/2015/01/14/history-of-water-fountains_n_6357064.html
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