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अध्यात्म और अध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित स्थानों का वर्तमान काल में अपना एक अलग ही महत्त्व है। ये स्थान इतिहास की अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं तथा यह वर्णित ग्रंथों की प्रमाणिकता पर भी अपनी छाप छोड़ते हैं। कृष्णा कथा में वर्णित स्थानों में गोवर्धन एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान काल में गोवर्धन पर्वत मथुरा के वृन्दावन के समीप ब्रज क्षेत्र में उपस्थित है। यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। यह पर्वत अरावली क्षेत्र में आता है और यह पहाड़ी बलुए पत्थर का एक वृहत भण्डार है। अब यदि नाम के विषय में बात करें तो यह पता चलता है गोवर्धन 2 शब्दों के मेल से बना है, इसमें ‘गो’ का आशय है गाय और ‘वर्धन’ का आशय है सेवा। इसके अलावा अन्य गो का अर्थ है ‘इन्द्रियां’ और वर्धन का अर्थ है ‘बढ़ाना’।
यह भी कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत की तलहटी में निवास करने से दिमाग सुदृढ़ और तेज़ होता है। गोवर्धन पर्वत का भगवत पुराण से एक अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्ता है और इस पर्वत की महत्ता भगवत पुराण में वर्णित घटनाओं से ही प्रेरित है। गोवर्धन पर्वत मेरठ से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और करीब 3 घंटे की यात्रा पर स्थित है। यहाँ तक पहुचने के लिए ईस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेसवे (Eastern Peripheral Expressway) या राष्ट्रीय महामार्ग 19 और 44 से जाया जा सकता है।
गोवर्धन पर्वत की शास्त्रोक्त कहानी निम्नलिखित रूप से है-
एक बार की बात है कि कई वरिष्ठ लोग जिनमें राजा नन्द भी शामिल थे ने भगवान इंद्र की पूजा करने का सोचा और बाल कृष्ण ने इसपर यह सवाल पूछा कि हम यह आखिर क्यों कर रहे हैं। यह सवाल सुनने के बाद नन्द ने कृष्ण को समझाया कि हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि भगवान इंद्र खुश होकर ब्रज के लोगों को आवश्यकता के अनुसार बारिश प्रदान करें। इस पर कृष्ण ने लोगों को कहा कि वे अपनी खेती और अपने मवेशियों पर ध्यान दें और उन्हें किसी भी प्राकृतिक घटना के लिए पूजा-पाठ से ज़्यादा इन सब चीज़ों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। छोटे कृष्ण की बात सुनकर ब्रज के लोगों ने पूजा नहीं की। इस बात से इंद्र क्रुद्ध हो गए कि लोगों ने उनकी पूजा न कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की। ब्रज के लोगों से इंद्र ने बदला लेने की सोची और उन्होंने अत्यंत तीव्र गति की बारिश और आंधी भेज दी जिससे पूरा ब्रज तहस नहस हो गया। तेज़ बारिश से पूरा ब्रज पानी में डूब गया। अब इंद्र के क्रोध से भयभीत वहां के लोगों ने बाल कृष्ण से संपर्क साधा।
छोटे कृष्ण ने ब्रज के लोगों को गोवर्धन पर्वत के पास बुलाया और उसे अपनी छोटी उंगली पर पूरी तरह से उठा लिया जिससे वहां पर स्थित सभी मनुष्य, गाय और अन्य जानवर गोवर्धन पर्वत के नीचे आ गये। यह सब देख कर इंद्र स्तब्ध रह गए और उन्होंने बारिश को रोक दिया। अब बारिश ख़त्म होने पर कृष्ण ने सब से कहा कि वे अपने घर को लौट जाएँ और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उसी स्थान पर पुनः रख दिया। वर्तमान काल में गोवर्धन पर्वत पर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में अनेकों मंदिरों आदि का निर्माण हुआ है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Govardhan_Hill
2. https://krishnabhumi.in/blog/the-story-of-shri-krishna-lifting-govardhan-hill/
3. https://bit.ly/2MDYsg6
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://media-cdn.tripadvisor.com/media/photo-s/08/41/52/21/krishna-mandapam.jpg
2. https://i.pinimg.com/originals/24/99/88/2499884b0ff64a83625dc45320ead097.jpg
3. https://pixabay.com/photos/kusum-sarovar-india-travel-asia-1195694/
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