छात्रों के चहुँमुखी विकास में सहायक है पाठ्य सहगामी क्रियाएं

नगरीकरण- शहर व शक्ति
09-07-2019 12:28 PM
छात्रों के चहुँमुखी विकास में सहायक है पाठ्य सहगामी क्रियाएं

वर्तमान में शिक्षा स्तर में आये हुए बदलावों के कारण छात्रों पर पढ़ाई का अत्यंत बोझ है जिसके साथ-साथ उन पर अकादमिक रूप से भी बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव निरंतर बना रहता है। किंतु इस दबाव से छात्रों का समुचित विकास सम्भव नहीं है। अगर अकादमिक पढ़ाई के साथ कुछ पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर भी ध्यान दिया जाये तो छात्रों का चहुँमुखी विकास सम्भव हो पायेगा। पाठ्य सहगामी क्रियाओं की मदद से छात्र जहां अपनी अकादमिक शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन करेंगे वहीं अपनी अन्य खूबियों को भी विकसित कर पायेंगे जो उनके पेशेवर जीवन के लिये भी कुछ अच्छा करने में मदद करेगा। सह-पाठ्यचर्या के अंतर्गत अकादमिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों जैसे गायन, वादन, पेंटिंग, सजावट, रंगोली, कला और शिल्प, योगा, कंप्यूटर आदि पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है।

आइये सर्वप्रथम यह समझने का प्रयास करें कि पाठ्य सहगामी क्रियाएं बच्चे के समग्र विकास के लिये क्यों आवश्यक हैं:
• बच्चों का शिक्षाविदों पर ध्यान केंद्रित करना अच्छी बात है किंतु कहीं ऐसा तो नहीं कि वे अक्सर अत्यधिक दबाव के कारण तनाव में आ जाते हों। अगर ऐसा है तो जरूरी है कि उन्हें तनाव से बाहर निकालने या मनोदशा को बेहतर करने के लिये सह-पाठ्यचर्या गतिविधियों में सलंग्न किया जाये।

• दबाव के कारण बच्चे अपने पाठ्यक्रम को रटने में अधिक विश्वास करने लगते हैं इससे उनके बुद्धि कौशल का विकास अधूरा रह जाता है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं के माध्यम से वे चीजों का प्रयोग करना सीखते हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये वे विश्लेषण, संश्लेषण और मूल्यांकन करते हैं जिससे उनका बौद्धिक विकास होता है।

• पाठ्य सहगामी क्रियाओं के अंतर्गत बच्चे सामूहिक कार्यों के मूल्यों को सीखते हैं क्योंकि वे एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। इस प्रकार उनमें सामाजिक कौशल का विकास होता है।

• शिक्षाविदों के अलावा जब पाठ्य सहगामी क्रियाओं के तहत किसी अन्य चीज के लिए बच्चों की सराहना की जाती है तो उनके आत्मसम्मान के साथ-साथ मनोदशा भी बढ़ जाती है और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगता है।

• हर बच्चे में एक विशेष प्रतिभा निहित होती है जो शिक्षाविद के माध्यम से बाहर नहीं आ सकती। पाठ्य सहगामी क्रियाओं में बच्चों की वह छिपी हुई प्रतिभा बाहर आती है जिससे उनके सपनों के पंखों को सही दिशा प्राप्त होती है।

आज कई स्कूलों में शिक्षाविदों को पाठ्य सहगामी क्रियाओं के साथ विलय कर दिया गया है। और उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह जरूरी भी है। इससे स्कूलों के शैक्षिक स्तर में भी वृद्धि हुई है तथा उनका शैक्षणिक ग्राफ भी निरंतर बढ़ रहा है। विज्ञान या कंप्यूटर लैब, व्यावहारिक प्रयोग और परियोजना पाठयक्रम का हिस्सा है लेकिन इसके साथ स्कूलों में आयोजित विभिन्न कार्यक्रम अन्य क्षेत्रों के लिये भी छात्रों का प्रोत्साहन बढ़ा रहा है। स्कूलों में राष्ट्रीय आयोजनों, सांस्कृतिक और पारम्परिक कार्यक्रमों से सांस्कृतिक मूल्यों की समझ छात्रों को हो रही है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं के तहत स्कूलों में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन छात्रों के व्यक्तित्व का विकास कर रहा है। इसके अंतर्गत स्कूलों में विभिन्न प्रकार के खेलों का आयोजन किया जा रहा है जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन छात्रों में विकसित हो रहा है। स्कूल में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे शिक्षाविदों का हिस्सा हैं और छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए शिक्षण और सीखने के अनुभव को रोमांचक बनाते हैं। इस प्रकार की गतिविधियाँ बच्चों को अनुशासन सीखने, उनके दिमाग को प्रशिक्षित करने और उनके शरीर को मजबूत बनाने में मदद करती हैं।

पाठ्य सहगामी क्रियाओं में माता-पिता और स्कूलों की अहम भूमिका होती है। स्कूलों को इन गतिविधियों को विद्यालय में सुचारू रूप से चलाना चाहिए ताकि बच्चों का रूझान इन गतिविधियों की तरफ बढ़ता चला जाये। इसी प्रकार माता-पिता को बच्चों की रुचियों को समझना चाहिए तथा इन गतिविधियों की ओर उन्हें जाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इससे बच्चों में छिपी प्रतिभा विकसित होती है और उनके आत्मबल में भी बढ़ोत्तरी होती है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं के कारण संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक सौंदर्य प्रभावित होते हैं। यह कक्षा शिक्षण को मजबूत करता है और विषयों की अवधारणा को साफ करने में मदद करता है।

वर्तमान समय में नौकरियों के लिए आवेदन किया जाता है तो भर्तीकर्ता शैक्षणिक उपलब्धि के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है जिसमें समाज की भागीदारी, स्वयंसेवा, इंटर्नशिप और अंशकालिक कार्य शामिल हो सकते हैं। इस प्रकार भर्तीकर्ताओं को प्रभावित करने के परिपेक्ष में भी सह-पाठयक्रम सहायक है।

कई विश्वविद्यालयों में छात्र समाज स्थापित हैं जिसके जरिए आप अपना समाज भी स्थापित कर सकते हैं। पूरे वर्ष भर में नियोक्ताओं द्वारा प्रायोजित बिजनेस गेम्स (Business Games), स्वैच्छिक कार्यों, क्लास प्रतिनिधि बनने, केस स्टडी (case study) चुनौतियों में प्रतिस्पर्धा करने तथा कुछ अतिरिक्त कौशल प्रशिक्षण लेने के लिए यहां बहुत सारे अवसर होंगे। अपने समय का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए उन गतिविधियों का चयन करना अच्छा होगा जिनमें आप रुचि रखते हैं। इसके अतिरिक्त आप भविष्य की नौकरियों के आधार पर भी अपने विशिष्ट कौशल को चुन सकते हैं।

यदि सह-पाठयक्रम को सुचारू रूप से सभी स्कूलों और अन्य क्षेत्रों में चलाया जाये और सभी छात्र इसमें रूचि लें तो यह प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण करने में बहुत सहायक सिद्ध होगा तथा समाज और देश के विकास में अपनी भागीदारी देगा।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2S32XAn
2. https://bit.ly/2NG0FsD
3. https://bit.ly/32dT7As
4. https://bit.ly/2JqxA0h

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.