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मछलियां पानी के अधिकांश निकायों में प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। उच्च पर्वतीय धाराओं से लेकर लगभग सभी जलीय वातावरण में इनका निवास हो सकता है। पर क्या आप जानते हैं कि इनके अस्तित्व को हिंदू पौराणिक कथाओं में भी विभिन्न रूपों में वर्णित किया गया है जिनमें से एक कहानी है मत्स्य की।
मत्स्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "मछली"। इस शब्द का ज़िक्र सबसे पहले ऋग्वेद में किया गया। मत्स्य को भगवान विष्णु के दस प्राथमिक अवतारों में से एक भी माना जाता है। कथाओं के अनुसार मत्स्य ने मनु (जल-प्रलय का मुख्य पात्र और द्रविड़ साम्राज्य के राजा) और अच्छे प्राणियों को भयंकर जलप्रलय के समय बचाया। राजा मनु श्रद्धादेव मनु के नाम से भी जाने जाते थे। आइये सर्वप्रथम इस प्रसंग को संक्षिप्त रूप में समझें।
मतस्य पुराण के अनुसार राजा मनु एक बार नदी में किसी दैवीय प्रतिष्ठान के लिये गये। जब वे सूर्य को जल दे रहे थे तो अनायास ही एक छोटी सी मछली उनके हाथ में आ गयी। जैसे ही मनु मछली को पुनः नदी में स्थानांतरित करने लगे तो मछली बोली, “मेरी रक्षा कीजिए। अगर मैं यहां रही तो बड़े जीव-जंतु मुझे खा जायेंगे।” मनु उस मछली को अपने साथ ले आये और एक छोटे से डिब्बे में बंद कर दिया किंतु उसका आकार दिन प्रतिदिन इतना बढ़ता रहा कि हर जगह उस के लिये छोटी पड़ने लगी। अंत में मनु ने उसे एक महासागर में स्थानांतरित किया जो कि उसके लिये उपयुक्त स्थान था। कथाओं के अनुसार वास्तव में वह मछली भगवान विष्णु का अवतार थी। राजा मनु की दयाभावना को देख भगवान विष्णु ने उन्हें भविष्य में होने वाले जलप्रलय के बारे में अवगत कराया तथा मानवता को बचाने के लिये कहा। उन्होंने मनु को एक बड़ी नाव बनाने तथा सभी जीव-जंतुओं को उसमें ले जाने का निर्देश दिया। जल प्रलय के समय मनु ने नाव को मछली के सींग से बाँधा ताकि नाव को नियंत्रित किया जा सके।
इस प्रसंग के प्राचीनतम लेख वैदिक सतपथ ब्रह्मणा में लिखे गये। लेकिन बाद में इसे भागवत पुराण और मत्स्य पुराण के साथ-साथ महाभारत में भी वर्णित किया गया। भागवत पुराण में मनु के किरदार को बद्रायणी नाम से वर्णित किया गया है। महाभारत महाकाव्य में मछली के अवतार को भगवान ब्रह्मा से संदर्भित किया गया है। इसके अनुसार जब जल प्रलय समाप्त हो जाता है तो मछली स्वयं को ब्रह्मा जी के रूप प्रकट करती है और मनु को सृष्टि की शक्ति प्रदान करती है।
इन सभी वृत्तांतों में जल प्रलय का मुख्य पात्र मनु को ही माना गया है।
आपके लिये यह जानना दिलचस्प होगा कि ठीक ऐसे ही प्रसंग का ज़िक्र बाइबिल में भी किया गया है जिसमें कथा का मुख्य पात्र नोआ (इब्राहिम में श्रद्धा रखने वाले धर्मों के प्रमुख संदेशवाहक और पूर्वज) है। नोआ और जलप्रलय की कहानी का ब्यौरा बाइबिल की बुक ऑफ जेनेसिस (Book of Genesis) के अध्याय 6 से 9 में दर्ज है। इसके अनुसार मनुष्य की दुष्टता को चरम अवस्था पर पहुंचे देख परमात्मा ने पृथ्वी के निर्माण पर पश्चताप किया और निर्णय लिया कि वे पृथ्वी को समाप्त कर देंगे। नोआ (जो परमात्मा के प्रिय थे) को उन्होंने जलप्रलय के समय न्यायोचित प्राणियों को बचाने के लिए कहा तथा एक ऐसी नाव के निर्माण के लिये कहा जिस पर सवार होकर सब न्यायोचित प्राणी बच जायें। यूं तो नोआ की कहानी में जलप्रलय का कारण दैवीय सज़ा जबकि मनु की कहानी में प्राकृतिक कारण को बताया गया है किंतु फिर भी इन दोनों में बहुत समानताएं हैं जैसे- नोआ और मनु दोनों ही गुणी व्यक्ति थे। दोनों के तीन पुत्र थे। दोनों को ही परमात्मा द्वारा नाव बनाने का निर्देश प्राप्त हुआ। जलप्रलय के बाद नोआ की नाव अरारत के पहाड़ों पर जा गिरी जबकि मनु की नाव मलाया पहाड़ों के शीर्ष पर स्थानांतरित हुई। दोनों ही दिव्य व्यक्तियों ने पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया।
इस प्रसंग का मुख्य पात्र भले ही कोई भी रहा हो किंतु इसमें मछली की भूमिका को समझना बहुत ही रोमांचक है तथा ऐसे तथ्य हमें ये भी सिखाते हैं कि अंत में, सभी धर्म एक ही शिक्षा प्रदान करते हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2XJ9oxN
2. https://www.speakingtree.in/allslides/are-manu-and-noah-the-same/manu-and-matsya
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Matsya
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Shraddhadeva_Manu
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