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उत्तर भारत की जीवनदायिनी नदी गंगा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक विशाल जनसंख्या का पालन पोषण कर रही है। यदि बात की जाए कृषि क्षेत्र की तो उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े कृषि उत्पादक राज्यों में से है, जहां सिंचाई आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा गंगा नदी से प्राप्त किया जाता है। गंगा नदी अपने मार्ग में आने वाले शहरों के साथ-साथ विभिन्न नहरों के माध्यम से अन्य क्षेत्रों में भी सिंचाई आपूर्ति करती है।
दोआब (गंगा, यमुना) के क्षेत्रों में सिंचाई हेतु गंगा नहर निकाली गयी है। 1837-38 के अकाल में जब करीब 8,00,00 लोग मारे गये थे, तथा राहत दिलाने हेतु ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) को लगभग एक करोड़ रूपए का खर्चा उठाना पड़ा था, तब इस हादसे से कुछ सीख लेकर ब्रिटिश सरकार ने एक सुचारू सिंचाई प्रणाली विकसित करने का निर्णय लिया। जिसे पूरा करने में कर्नल प्रोबी कॉटली का विशेष योगदान रहा। इनके अटल विश्वास से ही लगभग 500 किलोमीटर लंबी इस नहर का निर्माण संभव हो पाया। परियोजना को पूरा करते समय इन्हें विभिन्न भौतिक (पहाड़ी अवरोध, धरातलीय), वित्तीय, धार्मिक मान्यताओं आदि के अवरोधों का सामना करना पड़ा। नहर की खुदाई का काम अप्रैल 1842 में शुरू हुआ तथा इसमें प्रयोग होने वाली ईंटों के निर्माण हेतु कॉटली ने ईंटों के भट्टे भी बनवाये। इसमें भी हरिद्वार के हिंदू पुजारियों ने इनका विरोध किया, इनकी मान्यता थी कि गंगा नदी को कैद करना अनुचित होगा। कॉटली ने इन्हें गंगा नदी की धारा को निर्बाध रूप से प्रवाहित करने के लिए, बांध में एक स्थान खाली छोड़ने का आश्वासन दिया, साथ ही इन्होंने पुजारियों को खुश करने के लिए नदी किनारे स्थित स्नान घाटों की मरम्मत कराने का भी वादा किया। कॉटली ने नहर निर्माण कार्य का उद्घाटन भी भगवान गणेश की वंदना से किया।
8 अप्रैल 1854 को नहर औपचारिक रूप से शुरू की गयी। यह वाहिका 560 किमी लंबी थी तथा इसकी शाखाएं 492 किमी लंबी थी एवं विभिन्न उपशाखाएं लगभग 4,800 किमी लंबी थी। मई 1855 में सिंचाई शुरू कर दी गयी, जिसमें 5,000 गांवों में 7,67,000 एकड़ (3,100 स्क्वायर कि.मी.) से अधिक भूमि को सिंचित किया गया। गंगा नहर को दो भागों में बांटा गया है, ऊपरी गंगा नहर जो हरिद्वार में हर की पौड़ी से प्रारंभ होकर, मेरठ, बुलंदशहर से अलीगढ़ में स्थित ननऊ तक जाती है तथा निचली गंगा नहर ननऊ से 48 किमी आगे से कटती है। इनमें प्रमुख नहर ऊपरी गंगा नहर है। गंगा नहर का मुख्य उद्देश्य सिंचाई आपूर्ति करना है किंतु कुछ क्षेत्रों में इसका उपयोग परिवहन हेतु भी किया जाता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जो आवश्यक सिंचाई प्रणाली हेतु नदियों तथा वर्षा ऋतु पर निर्भर है।
भारत में कृषि फसल वर्ष (जुलाई से जून) के अतंर्गत मुख्यतः दो मौसम क्रमशः रबी (अक्टूबर-मार्च) और खरीफ (जुलाई-अक्टूबर) आते हैं। भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने फसल प्रारूप को परिभाषित करने के लिए 'खरीफ' और 'रबी' शब्दों का प्रयोग करते हैं। 'खरीफ' और 'रबी' शब्द अरबी भाषा से उत्पन्न हुए हैं, जहां खरीफ का अर्थ शरद और रबी का अर्थ वसंत से है। खरीफ फसलों में चावल, मक्का, बाजरा (अनाज), अरहर (दालें), सोयाबीन, मूंगफली (तिलहन), कपास आदि शामिल हैं। रबी की फसलों में गेहूं, जौ, जई (अनाज), चना (दालें), अलसी, सरसों (तिलहन) आदि शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के दोआब में बसा मेरठ शहर कृषि उत्पादक शहर है, जिसकी सिंचाई आपूर्ति ऊपरी गंगा नहर से की जाती है।
मेरठ में ऊपरी गंगा नहर के पानी वितरण का मानदंड प्रमुख अभियंता द्वारा निर्धारित किया जाता है। रबी के मौसम के शुरू होने से पहले ही ऊपरी गंगा नाहर से उपयोग किये जाने वाले पानी की संभावित उपलब्धता का आकलन और निर्णय लेने के लिये मेरठ के मुख्य अभियंता द्वारा इस कार्य से सम्बंधित सभी अन्य अभियंताओं को बुलाकर एक मीटिंग का आयोजन किया जाता है। साथ ही प्रत्येक विभाग के लिए खरीफ के दौरान पानी के आवंटन की गणना भी की जाती है।
हालाँकि, साप्ताहिक आधारित पानी के निस्तारण को वास्तविक जल प्रवाह के आधार पर परिवर्तित किया जा सकता है, और पानी की अधिक या कम मात्रा को अगले सप्ताह में परिवर्तित किया जा सकता है।
संदर्भ:
1. http://planningcommission.nic.in/reports/sereport/ser/ugc/ch1.pdf
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganges_Canal
3. https://bit.ly/2EosE6w
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