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आए दिन विश्व के किसी ना किसी कोने से आतंकवादी हमले की खबर सुनने में आ ही जाती है। हाल ही में श्रीलंका में हुआ दिल दहला देने वाला आतंकवादी हमला इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। संसार में दो तरह के लोग होते हैं, एक जो इस प्रकार के आतंवादी हमलों को अंजाम देते हैं और दूसरे वे जो इन हमलों के परिणाम भोगते हैं। जबकि दोनों ही इंसान हैं, तो ऐसे क्या कारण होते हैं कि एक व्यक्ति इतना अमानवीय कदम उठाने को विवश हो जाता है। आज हम इनकी मानसिक स्थिति और सामाजिक स्थिति को थोड़ा गहनता से समझेंगे।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं किंतु उसके भीतर कुछ अनैतिक प्रवृत्तियां (लोभ, इर्ष्या, क्रोध, घृणा, बदले का भाव, आदि) होती हैं। यह प्रवृत्तियां तभी प्रभावी होती हैं जब व्यक्ति की आकांक्षा या आवश्यकता के अनुरूप कोई कार्य नहीं होता है या फिर कोई व्यक्ति समाज में उचित स्थान प्राप्त करने में विफल हो जाता है। तो वे अक्सर गुनाहों की दुनिया में कदम रखने लगते हैं, जो उन्हें किसी की जान लेने तक के लिए विवश कर देता है। वास्तव में आतंकवाद का मुख्य कारण गरीबी, प्रतिशोध की भावना, धार्मिक भावना, वैश्वीकरण इत्यादि को बताया जाता है। कई अमेरीकी मनोवैज्ञानिकों (American Psychologists) ने आतंकवादियों के दिमाग का अध्ययन करने का प्रयास किया है। ऐसे ही दो वैज्ञानिक डॉ. रेमंड लॉयड रिचमंड ( Dr. Raymond Lloyd Richmond) और डॉ. रॉबर्ट एल. लेहि (Dr. Robert L. Leahy) द्वारा किये गए अध्ययन से आज हम इस प्रवृत्ति को समझने की कोशिश करेंगे।
कल्पना कीजिए एक बच्चे का पिता उसके साथ निरंतर दुर्वव्यवहार करता है और यही व्यक्ति बाहर समाज में एक आदर्श की प्रतिमा के रूप में कार्य करता है तो वह अपने बच्चे के लिए एक धोखेबाज और समाज के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसी स्थिति में जब बच्चा बड़ा होगा, तो वह अपना जीवन इस संसार में सच को उजागर करने हेतु लगा देगा। उसे समाज के आदर्श, मूल्य और अनुशासन जैसी बातें पाखण्ड लगने लगेंगी। प्रतिशोध की भावना में वह अपने पिता की वास्तविकता को समाज के सामने लाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, इसके लिए वह किसी प्रकार के नैतिक मूल्यों की ओर ध्यान नहीं देगा। जबकि उसके ये प्रयास असल में अपने पिता से एक आदर्श व्यवहार की चाह में किये जाएंगे परन्तु इस प्रयास में वह कुछ हासिल करने के बजाय सब नष्ट कर बैठेगा।
समाज में आज चारों ओर धोखा देखने को मिलता है, फ्रांसीसी मनोविश्लेषक जैक्वेस लैकान (French psychoanalyst Jacques Lacan) ने संपूर्ण समाज को ही एक धोखा बताया है। जहां आए दिन दिखने वाले भ्रामक विज्ञापन हमें आनंद पहुंचाने के उद्देश्य से मानवीय गरिमाओं को आहत कर, संपूर्ण मानव जाति को धोखा देते हैं। तो वहीं राजनेता विकास के झूठे वादे कर हमारी आंखों में धूल झोंकते हैं। शिक्षा प्रणाली राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वास्तविक शिक्षा का त्याग करती है। स्वास्थ्य प्रणाली में दवाओं और प्रौद्योगिकी के माध्यम से हमारे शरीर में फेरबदल किया जाता है। मीडिया (Media) जिसे लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ भी कहा जाता था, आज इसकी वफादारी पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं। समाज और मानव को भ्रमित करने में मीडिया कोई कसर नहीं छोड़ रही है। हम स्वयं ही अपनी झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए सामाजिक प्रपंचों का हिस्सा बन जाते हैं।
मनोविज्ञान मानव को इन सांसारिक प्रपंचों में फंसने से बचा सकता है। यह व्यक्ति को धोखाधड़ी को उजागर करने योग्य बनाता है न कि उसे हृदय के किसी कोने में रहस्य बनाने योग्य। क्योंकि यह रहस्य देखते ही देखते हमारे शत्रु बन जाते हैं और हम समाज के शत्रु बन जाते हैं। मनोविज्ञान हमें कड़वाहट और घृणा को त्यागने तथा इन रहस्यों का समाधान निकालने योग्य बनाता है।
मनुष्य की अभिलाषा उसे धोखे और फरेब की दुनिया की और ले जाती हैं, जिसकी जितनी ज्यादा अभिलाषा होगी वह दूसरे को उतनी ही क्षति पहुंचाने का प्रयास करेगा, जबकि जिसकी जितनी कम अभिलाषा होगी वह उतना ही विनम्र तथा मानव जाति से प्रेम करने वाला होगा। हमारे धर्म हमें सिखाते हैं विरोध या आतंकवाद के माध्यम से शांति प्राप्त नहीं की जा सकती है। शांति का एकमात्र मार्ग आपके अपने हृदय की शुद्धि से है। धर्म मनोविज्ञान की सीमाओं को पार कर सकता है क्योंकि यह भगवान को इंगित करता है जिसमें हम अपना पूरा विश्वास रख सकते हैं। ईश्वर के प्रति सार्वजनिक प्रेम जब सबके व्यक्तिगत प्रेम को पार कर जाये तब संसार में परोपकार के वास्तविक कार्य और सार्थक सामाजिक परिवर्तन के वास्तविक कार्य किये जा सकते हैं।
उपरोक्त कहानी में प्रतिशोध की भावना में वह बालक आतंकवादी प्रवृत्ति का हो जाता है, जहां वह बातचीत करके समस्या का समाधान निकालने को अपना अपमान समझता है, उसका मुख्य उद्देश्य होता है अपने पिता को अपमानित करना, उससे बदला लेना। अक्सर आतंकवादी भी युद्ध और विनाश को अपना अभिमान समझते हैं। वे समाधान को स्वीकार नहीं करते हैं, यही आतंकवाद की सबसे बड़ी समस्या है। मनोविज्ञान भी आतंकवाद की इसी समस्या को इंगित करता है।
हमें समझना होगा कि आतंकवाद का उद्देश्य लोगों को डराना और यह विश्वास दिलाना है कि हम खतरे में हैं। जबकि ऐसा नहीं है। आतंकवाद की तुलना में मनुष्य के बिमारियों से मरने की संभावना अधिक होती है। समस्या यह है कि लोग कई अपरिमेय कारकों के आधार पर अपने आप को जोखिम में महसूस करते हैं।
सबसे पहले तो यह सोचना कि कोई घटना होने पर हम अधिक जोखिम में हैं। एक घटना की पुनरावृत्ति घटना के डर को और अधिक बढ़ा देती है। दूसरा, हम 24 घंटे समाचारों पर आतंकवादी घटनाओं को ही देखते या सुनते हैं, हम त्वचा कैंसर, स्तन कैंसर, हृदय रोग, कार दुर्घटनाओं, या मोटापे या शराब के प्रभाव की खबरें नहीं देखते जबकि ये बीमारियाँ कई अधिक खतरनाक हैं, और कई अधिक लोगों को मारती हैं। हम ऐसे समाचार नहीं देखते जो ‘वास्तविकता’ का गठन करते हैं। यदि खतरे का कारण अदृश्य है तो हम स्वयं को अधिक जोखिम में महसूस करते हैं। जब हमें जोखिम अनिश्चित दिखाई देते हैं तो हम स्वयं को और अधिक जोखिम में महसूस करते हैं जिससे हम हर समय भय में ही रहते हैं।
इस भय के कारण हर दिन न जाने कितने प्रतिशत लोग मर रहें हैं। वास्तव में जोखिम काफी कम होता है, लेकिन भय यह होता है कि कहीं आतंकवाद का निशाना हम तो नहीं। यह मानव स्वभाव है। जबकि इसके होने की संभावना बहुत कम होती है। ISIS की रणनीति खुद को प्रासंगिक और शक्तिशाली बनाने की है। किन्तु दशकों से आतंकवादियों की विफल नीतियों को भी देखा गया है, इसलिए इनसे डरने की आवश्यकता नहीं है। वे आतंकवादी बनते हैं, क्योंकि उनके पास अच्छे विचारों और नीतियों की कमी होती है। लोगों को भयभीत करके, खबरों में आकर, प्रतीकात्मक लक्ष्यों पर प्रहार कर आतंकवादी क्षण भर में शक्तिशाली और महत्वपूर्ण बन जाते हैं, लेकिन वे वास्तविक खतरा नहीं हैं। आतंकवादियों का एक और लक्ष्य कई लोगों द्वारा साझा की गई शिकायतों को व्यक्त करना भी होता है। नए आतंकवादियों की भर्ती करना भी आतंकवाद का एक अतिरिक्त लक्ष्य है। आतंकवाद एक राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक रणनीति है, यदि हम इससे मुक्ति पाना चाहते हैं तो हमें स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक संस्थानों, शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति, महिलाओं के अधिकार, समलैंगिक व्यक्तियों की गरिमा और सत्य की शक्ति के मूल्यों को पहचानना होगा। यही वह कारण है जिससे आतंकवादी डरते हैं। वे जानते हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धार्मिक उत्पीड़न से मुक्ति और जीवन के बेहतर तरीके की खोज के लिए दुनिया भर में एक बड़ी अपील है। अगर कोई चीज बड़ी है तो वह है आत्मज्ञान और अंधकार के बीच की लड़ाई जिससे हम सभी ऊपर उठना चाहते हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2WmHQud
2.https://www.psychologytoday.com/intl/blog/anxiety-files/201802/how-think-about-terrorism
चित्र सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2UZtGh9
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