शहीद-ए-आज़म उद्धम सिंह का बदला

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
12-04-2019 07:00 AM
शहीद-ए-आज़म उद्धम सिंह का बदला

इस वर्ष (2019) जलियांवाला बाग की घटना को 100 वर्ष पूरे हो जाएंगें किंतु इस काले दिन की भयानक स्‍मृति शायद ही कभी हमारे यादों से नहीं मिट पाएगी। यह घटना है 13 अप्रैल 1919 की। इस दिन बैसाखी के अवसर पर बड़ी संख्‍या में भीड़ अमृतसर के जलियांवाला बाग में एकत्रित हुई, जिसमें बच्‍चे, बूढ़े जवान सभी शामिल थे। इनका मुख्‍य उद्देश्‍य देश के दो राष्ट्रीय नेताओं डॉ. सत्य पाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की सज़ा के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध करना था। तत्‍कालीन कर्नल रेजिनाल्ड डायर(Colonel Reginald Dyer) के नेतृत्‍व में ब्रिटिश भारतीय सेना ने इस उद्यान में एकत्रित हुई भीड़ को चारों ओर से घेर लिया। सेना ने सर्वप्रथम टैंकों के माध्‍यम से प्रवेश द्वार को बंद किया फिर लगभग 10 मिनट तक निहत्‍थी भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियां चलाई। परिणामस्‍वरूप हज़ारों की संख्‍या में लोग मारे गये तथा 1,200 के करीब लोग घायल हुए। ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार, इस घटना में 379 लोग मारे गए, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1,000 से अधिक लोगों की हत्या का अनुमान लगाया। कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए खुले फाटकों से भागने का प्रयास किया तो कुछ कुंए में कूद पड़ें। इस अमानवीय घटना ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नई चिंगारी को प्रज्वलित किया, जिससे अंततः ब्रिटिश साम्राज्य का पतन हुआ।

इस घटना की दिखावटी जांच के लिए हण्‍टर आयोग (Hunter Commission) की स्‍थापना की गयी जिसने जनरल डायर के आचरण की आलोचना की, लेकिन उसके खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही नहीं की गयी, मात्र उन्‍हें सेना से निष्‍कासित कर दिया गया था। आश्चर्यजनक रूप से, ब्रिटिश जनता ने जनरल डायर के साथ एकजुटता दिखाई- उसके लिए 30,000 पाउंड एकत्र किए साथ ही ब्रिटिश भारत के एक रक्षक के रूप में सम्‍म‍ानित किया गया। भारत में इस घटना के विरूद्ध रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने नाइटहुड की उपाधि को त्याग दिया था। महात्मा गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान उनकी सेवाओं के लिए अंग्रेजों द्वारा 'कैसर-ए-हिंद' की उपाधि दी गयी थी, गांधी जी ने इस उपाधि को त्‍याग दिया। एक और व्‍यक्ति थे उद्धम सिंह, जिन्‍होंने जलियांवाला बाग हत्‍याकांड को प्रत्‍यक्ष रूप से देखा था, उस दौरान इनकी आयु महज 20 वर्ष थी किंतु इस घटना ने इन्‍हें अन्‍दर तक हिला कर रख दिया। इन्‍होंने इस घटना का बदला लेने का प्रण लिया।

आगे चलकर उद्धम सिंह पंजाब के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उभरे। उद्धम सिंह ग़दर पार्टी के सदस्‍य रह चुके थे। इन्‍होंने जलियांवाला बाग हत्‍याकांण्‍ड का बदला लेने के उद्देश्‍य से 13 मार्च, 1940 को भारत में पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट राज्यपाल (Governor) माइकल ओ ड्वायर (Michael o’ Dwyer) की हत्‍या कर दी, यह जलियांवाला बाग हत्‍याकांण्‍ड के समय पंजाब के राज्यपाल रह चुके थे। इनके द्वारा डायर की कार्यवाही को मंजूरी दी गई थी। मिशन को अंजाम देने के लिए उद्धम सिंह लंदन गये। 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी(Royal Central Asian Society) की लंदन के काक्सटन हॉल (Caxton Hall) में आयोजित एक बैठक में इन्‍होंने माइकल ओ ड्वायर की गोली मारकर हत्‍या कर दी। इन्‍होंने अपनी बन्दूक एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए इन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे बन्दूक आसानी से छिपाया जा सके। ड्वायर की हत्‍या करने के बाद इन्‍होंने स्‍वयं को वहां की पुलिस के हवाले कर दिया। सिंह के हथियार, एक चाकू, एक डायरी और शूटिंग की एक गोली ब्लैक म्यूज़ियम, स्कॉटलैंड यार्ड (Black Museum, Scotland Yard) में रखी गई है। उद्धम सिंह को भारत में शहीद-ए-आज़म (महान शहीद) की उपाधि दी गई। जलियांवाला बाग हत्‍याकाण्‍ड को अंजाम देने वाले रेजिनाल्ड डायर की मृत्‍यु बिमारी के कारण हुयी तथा उन्हें लंदन में पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ दफन किया था।

जलियांवाला नरसंहार के पीछे प्रमुख कारण बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलनों के प्रति ब्रिटिशों का भय था। हालाँकि, इस घटना के बाद भारतीय डरे नहीं वरन् वे बड़ी संख्‍या में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। इस घटना ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन को भी जन्म दिया जिसने मुस्लिमों के खिलाफत आंदोलन को भी स्वांगीकृत कर दिया तथा यह 1922 तक जारी रहा। अंततः 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा।

संदर्भ:

1. https://socialissuesindia.wordpress.com/indian-freedom-struggle-from-1857-to-1947/
2. https://bit.ly/2UawCXQ
3. https://bit.ly/2D7sToq

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