अकबर के शासन काल में मेरठ में थी तांबे के सिक्कों की टकसाल

मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक
14-03-2019 09:00 AM
अकबर के शासन काल में मेरठ में थी तांबे के सिक्कों की टकसाल

भारत में मुस्लिम आक्रमण 1000 ईस्‍वी के आस पास प्रारंभ हो गये थे। कुछ मुस्लिम आक्रमणकारी भारत से अपार धन संपदा लूटकर ले गये, तो कुछ ने भारत पर अपना कब्‍जा कर लिया। 1191 में मेरठ और इसके आसपास के क्षेत्रों में मुस्लिम आक्रमण हुए तथा इस क्षेत्र को क़ुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा हड़प लिया गया। इसी दौरान भारत में गुलाम वंश की स्‍थापना हुयी, इसका प्रथम शासक क़ुतुब-उद-दीन ऐबक था जो स्‍वयं भी एक दास था। दिल्‍ली सल्‍तनत काल के दौरान मेरठ इसके उत्‍तराधिकारियों के अधीन रहा। आगे चलकर मेरठ मुगल साम्राज्‍य के अधीन आया, मुगल साम्राज्‍य के पतन के दौरान (1788) मराठों ने इस पर कब्‍जा कर लिया। मुगल शासन काल के दौरान मेरठ तांबे के सिक्‍कों की टकसाल के लिए प्रसिद्ध हुआ।

भारत में मुगल साम्राज्‍य की नींव 1526 ईस्वी में बाबर द्वारा रखी गयी। 1526 से 1857 तक लगभग संपूर्ण दक्षिण एशिया में मुगल साम्राज्‍य का आधिपत्‍य रहा। इनके शासन के दौरान काफी उतार चढ़ाव आये, इस बीच अकबर जैसे महान शासक ने भी मुगल साम्राज्‍य की बागडौर संभाली। अकबर के पिता हुमायूँ को पठान शासक शेर शाह सूरी द्वारा हराया गया। शेर शाह सूरी की मृत्‍यु के बाद इनका साम्राज्‍य कमजोर पड़ गया, इस अवसर का फायदा उठाते हुए हुमायूँ भारत लौट आया तथा अकबर ने पठानों की शक्ति को कुचल दिया और पुनः मुगल साम्राज्‍य की स्‍थापना की। अकबर एक साहसी योद्धा के साथ साथ एक कुशल प्रशासक भी था। इसके शासनकाल के दौरान भारत का सर्वांगीण विकास हुआ। व्यापार और वाणिज्य फले-फूले, कला और सौंदर्यशास्त्र ने नई ऊंचाइयां प्राप्त की साथ ही धार्मिक समन्‍वय की भावना का भी विकास हुआ।

मुगल सम्राट अकबर की मौद्रिक एवं अन्‍य प्रशासनि‍क नीति काफी हद तक शेरशाह सूरी की नीतियों से प्रभावित थी। शेरशाह ने सबसे पहले रूपया की शुरूआत की जो एक चांदी की मुद्रा थी। इसका वजन 178 ग्रेन था। अकबर ने भी अपने नाम वाले सिक्‍के जारी किये। अकबर ने विश्‍व में सिक्‍के के लिए उपयोग की जाने वाली तीन धातुओं (सोना, चांदी, तांबा) के सिक्‍के जारी किये। सोने के सिक्‍के को मौहर के नाम से जाना जाता था, इनका वजन लगभग 170 ग्रेन था। यह मुख्य रूप से व्यापारियों द्वारा बड़े व्यापारिक सौदों के लिए उपयोग किया जाता था। इसका उपयोग शाही लोगों, जमींदारों और क्षेत्रीय राज्यपालों द्वारा बड़ी मात्रा में भुगतान के लिए भी किया जाता था। रूपया का प्रयोग निरंतर रहा तथा अकबर ने एक अलग किस्म का चांदी का सिक्का भी जारी किया, जिसे शाहरुखी के नाम से जाना जाता है। यह रूपया की तुलना में बहुत हल्का था। एक विशिष्ट शाहरुखी का वजन लगभग 72 ग्रेन था। तीसरा सिक्‍का तांबे का था जिसे दाम कहा जाता था। दाम का वजन लगभग 330 ग्रेन था। शाहरुख़ी और दाम को बड़ी संख्या में जारी किया गया तथा आम लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। अकबर के शासन काल के दौरान मेरठ में तांबे के सिक्कों के लिए एक टकसाल बनायी गयी थी, जिसका उल्‍लेख आइन-ए-अकबरी में मिलता है।

अकबर के सिक्‍कों में जारी करने वाले वर्ष और टकसाल के स्थान का विस्तृत विवरण अंकित किया गया था। साथ ही इसमें सम्राट की पूर्ण उपाधी को भी अंकित किया गया था। इस प्रथा का पालन बाद के सभी मुगल सम्राटों द्वारा भी किया गया। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरूआत भी मुगल साम्राज्‍य के दौरान हुयी, इनके व्‍यापार पर भी मुगल सिक्‍कों का प्रभाव रहा।

संदर्भ:
1. https://www.coin-competition.eu/history/the-coins-of-akbar-the-great-mogul/
2. https://bit.ly/2EvoegY
3. Image Reference - wikicommons

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