पूर्ण ध्यान के लिए उपयुक्त है भगवान शिव की ध्यान मुद्रा

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
04-03-2019 09:22 AM
पूर्ण ध्यान के लिए उपयुक्त है भगवान शिव की ध्यान मुद्रा
ध्यान एक ऐसी क्रिया है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन की अनेक समस्याओं का निवारण कर सकते हैं। ध्यान एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसका उपयोग काफी समय से होता आ रहा है। यहाँ तक की भगवान शिव द्वारा भी कैलाश पर्वत में बैठकर ध्यान लगाया जाता था। भगवान शिव द्वारा आधी आंख बंद कर ध्यान लगाने की मुद्रा, एक मनुष्य में पूर्णता की सर्वोच्च स्थिति के प्रतीक को दर्शाती है।

उनकी ये मुद्रा पूर्ण आंतरिक सद्भाव और संतुलन का प्रतीक है, जिसे केवल एक अनुभवी व्यक्ति द्वारा ही महसूस किया जा सकता है। इस मुद्रा में व्यक्ति को ईश्वर-चेतना में समर्पित होना चाहिए, साथ ही परलौकिक जीवन का चिंतन करना चाहिए और सांसारिक विश्व की पीड़ा और क्लेश को त्याग देना चाहिए। यह मुद्रा वातावरण और परिस्थिति में पूर्ण शांति और समता बनाए रखती है।

जिस स्थान पर शिव विराजमान होकर ध्यान लगाते थे उस स्थान का पृष्ठभाग बर्फ से ढका होता है, इस बर्फ का सफेद रंग मन की पूर्ण शुद्धता का प्रतीक है। वहीं जब मन अशांत और उत्तेजित होता है तब हम देवत्व का अनुभव नहीं कर सकते हैं। स्वयं में देवत्व को पहचानना पानी के कुंड में प्रतिबिंब देखने जैसा है। जब पानी गंदा या अशांत होता है तो उसमें आपको अपना प्रतिबिंब नहीं दिख पाता है। इसी प्रकार जब विचार तामसिक या राजसिक हो जाते हैं, तो हमारे अंदर से देवत्व खो जाता है। तब हमें अध्यात्मिक प्रथाओं द्वारा अपने व्यक्तित्व को तामसिक और राजसिक अवस्था से सात्विक अवस्था में परिवर्तित करना चाहिए। सात्विक अवस्था वह अवस्था है जिसमें मन बिलकुल शुद्ध और स्थिर होता है। कैलाश में भगवान शिव भी इसी अवस्था में होते हैं।

भगवान शिव न केवल मनुष्य में पूर्णता की सर्वोच्च अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वे अपनी मुद्रा से इस अवस्था में पहुंचने का मार्ग भी बताते हैं। शिव की अधमुंदी आंखें (जो ना पूरी बंद होती हैं और ना ही पुरी तरह खूली) ध्यान लगाने की मुद्रा को संभवी-मुद्रा कहा जाता है। पूरी तरह से आँखें बंद करने से यह तात्पर्य है कि व्यक्ति संसार से बाहर हो गया है और वहीं पूरी तरह से आँखें खोलने से तात्पर्य है कि व्यक्ति पूर्ण रूप से संसार में शामिल है। वहीं आधी बंद आँखें मन का आंतरिक आत्मा में लीन होना और शरीर का बाहरी दुनिया में मौजुद होने का संकेत हैं। ऐसे व्यक्ति का एक पहलू ईश्वर-चेतना में निहित होता है, जबकि दूसरा पहलू सांसारिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को संभालने में लगा रहता है।

ईश्‍वर में विलिनता या आत्‍मसाक्षात्‍कार का अंतिम प्रवेश द्वार ध्‍यान है। किंतु वास्‍तविक ध्‍यान के लिए मन की शुद्धि अत्‍यंत आवश्‍यक है, मन की शुद्धि के लिए इस नश्‍वर संसार में निरपेक्ष निस्‍वार्थ एवं समर्पित भाव से कर्म करना अनिवार्य है। ऐसे कर्मों से आपके मन से अहंकार और अहंकारी भावनाऐं समाप्‍त हो जाती हैं तथा मन शुद्ध हो जाता है। ऐसी अवस्‍था में व्‍यक्ति ध्‍यान लगा सकता है तथा इसके माध्‍यम से उसे अपनी सर्वोच्‍चता का आभास होता है। इस आभास के लिए व्‍यक्ति भगवान शिव की मुद्रा का अनुसरण कर सकता है। वहीं महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव नृत्‍य करते हैं। इनके नृत्‍य की मुद्रा को नटराज कहा जाता है। नृत्य ईश्वर-से साक्षात्कार के रोमांच का प्रतीक है। सांसारिक मोह माया से परे यह ईश्‍वर में विलिनता के आनंद का प्रतीक है।

वास्तविक मनुष्य वह होता है जिसने अपने अहंकार पर विजय प्राप्त कर ली हो, अपने अहंकार पर नियंत्रण पा लिया हो। हिंदू शास्त्रों में भी सर्प के रूप में अहंकार का प्रतिनिधित्व किया गया है। अहंकार रूपी सर्प अपनी इच्छाओं के जहर से आपको दुखी करता है और अपके जीवनकाल में इच्छाओं के दबाव से आपको वास्तविकता की दिव्य दृष्टि प्राप्त नहीं करने देता है। परंतु जब आप शरीर, मन और बुद्धि से अपना ध्यान हटा कर अपने आप में लगा देते है तो आपकी पहचान अपनी अविस्मरणीय आत्म के साथ हो जाती है और आप अमर शिव हो जाते हैं, अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर लेते है।

कहा जाता है कि भगवान शिव के पास ज्ञान चक्षु है। ज्ञान चक्षु का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान की आंख। उस आंख से वे वह सब कुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता। उनका यह तीसरा नेत्र ज्ञान को दर्शाता है। भगवान शिव के पास वास्तविकता की दिव्य दृष्टि है। इसका अर्थ है कि साधारण दृष्टि केवल धारणाओं, भावनाओं और विचारों तक ही सीमित है लेकिन जब आप अपने शरीर, मन और बुद्धि की सीमाओं को पार करते हैं, तो आप अपने भीतर के बोध को प्राप्त करते हैं, यहीं ब्रह्मांड में झांकने का माध्यम है। इसके जाग्रत हो जाने पर ही कहते हैं कि व्यक्ति के ज्ञान चक्षु खुल गए अर्थात उसे निर्वाण प्राप्त हो गया या वह अब प्रकृति के बंधन से मुक्त होकर सब कुछ करने के लिए स्वतंत्र है, अब व्यक्ति के पास दिव्य नेत्र है।

संदर्भ :-
1. Parthasarathy, A. (1989) The Symbolism Of Hindu Gods And Rituals. Vedanta Life Inst.

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.