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प्रकृति में हमें काफी विभिन्नताएं देखने को मिलती हैं, खासकर प्राकृतिक पेड़ों में, जो काफी विशालकाय होते हैं। लेकिन जरा सोचिए कि आम, जामुन, नीम, बरगद, शीशम, इमली व पीपल जैसे पेड़ हम अपने घर के ड्राइंगरूम (Drawing room) में सजा सकें तो कैसा लगेगा? यकीनन एक अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा। इस अद्भुत नज़ारे को हम बोन्साई की मदद से देख सकते हैं। यह काष्ठीय पौधों को लघु आकार किन्तु आकर्षक रूप प्रदान करने की एक जापानी कला या तकनीक है।
यद्यपि ‘बोन्साई’ शब्द जापानी है, लेकिन यह कला का उद्भूत चीन साम्राज्य में हुआ था। 700 ईस्वी तक चीन में पुन-साई के नाम से कंटेनरों में विशाल पेड़ों के छोटे रूप में विकसित करने की नई तकनीकों का उपयोग करना शुरू कर दिया गया था। चीन में यह कला आमतौर पर केवल समाज के अभिजात वर्ग द्वारा की जाती थी, और पूरे चीन में उपहार के रूप में इसे फैलाया गया। कामाकुरा काल के दौरान यह कला जापान में आयी, जब जापान ने चीन के अधिकांश सांस्कृतिक ट्रेडमार्क (Trademark) को अपनाया था। जापान में ज़ेन बौद्ध धर्म के प्रभाव के साथ ही बोन्साई को विकसित किया गया था। बोन्साई और उससे संबंधित कलाओं के बारे में 26 भाषाओं में 1200 से अधिक किताबें हैं। विभिन्न भाषाओं में 50 से अधिक प्रिंट आवधिक पत्र हैं, और केवल अंग्रेजी में पांच ऑनलाइन पत्रिकाएं हैं।
बोन्साई पेड़ या पौधों को लगाने के लिए कई तकनीक शामिल हैं। बोन्साई के पेड़ और पौधे उगाने के लिए ज्यादा जगह नहीं चाहिए होती है, इसको उगाने के लिए थोड़ी सी जगह भी काफी होती हैं। वहीं इन्हें लगाने से पहले हमें उपयुक्त पौधे का चयन करना होता है, फिर उसके बाहरी भाग की कांट-छांट इस प्रकार करनी होती है कि वांछित शैली के अनुसार पूर्व निर्धारित आकार दिया जा सके। जड़ों की कांट-छांट कर (जड़ों को 1/2 से 1/3 काटें और अधिकतर पतली सफेद जड़ें और कुछ पुरानी मोटी जड़ों को छोड़कर) इसे एक कंटेनर में रोप दें। बोन्साई हेतु बीज से तैयार पौधे ठीक रहते हैं। कंटाई-छंटाई का मुख्य उद्देश्य पौधे को आकार प्रदान करना होता है। आप उन्हें अपना पसंदीदा आकार भी दे सकते हैं। बोन्साई को लकड़ी इत्यादि का सहारा नहीं देना चाहिए। पतली शाखाओं को तांबे या एल्युमिनियम (Aluminum) के तारों के सहारे सुनिश्चित दिशा दी जा सकती है। शाखाओं के मजबूत होने पर तारों को हटा दें। वहीं फूलों और फलों वाले बोन्साई के लिए चार से पांच घंटों की धूप चाहिए होती है। साथ ही इन्हें पानी तब ही दें जब इनकी मिट्टी गीली ना हों।
बोन्साई को बनाने की विभिन्न शैलियां निम्न हैं :-
औपचारिक सीधी शैली (चोककान) :- इस पारंपरिक शैली में, पेड़ का तना सीधा और नीचे से मोटा और ऊपर की ओर पतला होता है।
अनौपचारिक सीधी शैली (मोयोगी) :- मोयोगी में उगाए जाने वाले पेड़ के लिए, शाखाएं या तना थोड़ा सा मुड़ा हुआ रहता है। तने का शीर्ष हमेशा एक सीधी रेखा पर होता है, जो जमीन से लंबवत होता है जहां से जड़े शुरू होती हैं।
तिरछा (शाकन) :- यह औपचारिक सीधी शैली की तरह ही होती है, बस इसमें पेड़ का तना तिरछा जमीन से कोण की तरह उभरता है।
कास्केड (केन्गई) :- इस शैली में पानी के पास या पहाड़ों पर पेड़ के विकास का प्रतिलिपिकरण किया जाता है। एक पूर्ण कास्केड में, पेड़ का शीर्ष कंटेनर की सीमा से आगे को झुककर बढ़ता है। और मिट्टी में पुरी तरह से डुबा रहता है।
वहीं अब आपके मन में यह प्रश्न आ रहा होगा कि कौन-सा बोन्साई लगाया जा सकता है। वैसे तो सिर्फ नारियल और ताड़ के पेड़ को छोड़कर सभी पेड़ बोन्साई के लिए उपयुक्त हैं। विशेष रूप से एक छोटे और परिपक्व वृक्ष का चयन करें, जैसे गूलर, नीलबदरी आदि। साथ ही यह वृक्ष प्रकृति में स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं, ज्यादातर खाली पड़े हुए भवनों, कुओं आदि में इन्हें देखा जा सकता है। जितना पुराना पेड़ होता है वो उतना ही बहुमूल्य होता है। जापान के शाही महल में 1400 वर्षीय बोन्साई पेड़ हैं, जिन्हें शाही वायुमंडल के रूप में संरक्षित किया जाता है।
भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त कुछ पौधे निम्न है :-
संदर्भ :-
1. https://www.bonsaiempire.com/origin/bonsai-historyA. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
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