समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
मानव तथा अन्य जीवों को लाभ पहुंचाने हेतु जैविक क्रियाओं, प्रतिरूपों तथा तंत्रों का अधिक से अधिक उपयोग ही जैव तकनीकी या जैव प्रौद्योगिकी है। जैव तकनीकी विज्ञान की नवीन और तीव्रता से वृद्धि करने वाली शाखा है। इसमें आणविक विज्ञान, पादप रोग विज्ञान तथा ऊतक संवर्धन अनुवांशिक अभियांत्रिकी को शामिल किया गया है। विगत कुछ दशक में जैव तकनीकी के शुद्ध तथा आवश्यक पहलुओं में तेजी से वृद्धि हुई है। विभिन्न नई तकनीकों का विकास हुआ है, जिसके कारण सजीवों की आनुवंशिकी, वृद्धि, परिवर्द्धन आदि से संबंधित नवीन सूचनाओं की प्राप्ति हुई ।
आज हम विभिन्न क्षेत्रों जैसे चिकित्सा, फसल उत्पादन, कृषि, औद्योगिक फसलों तथा अन्य उत्पादों (जैसे बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक (biodegradable plastics), वनस्पति तेल, जैव ईंधन) और पर्यावरणीय उपयोग सहित विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में इसका प्रयोग देख सकते हैं।
चिकित्सा एवं दवाओं के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी:
बढ़ते प्रदूषण, खाद्य मिलावट तथा अव्यवस्थित जीवन के कारण आये दिन नई नई बीमारियां उभरकर सामने आ रही हैं। इनसे निजात दिलाने में जैव प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसमें अनुवांशिक अभियांत्रिकी द्वारा जीन थेरेपी (gene therapy), डीएनए (DNA) पुनः संयोजन तकनीक, पोलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (polymerase chain reaction) जैसी तकनीकों को प्रारंभ किया गया है। इन तकनीकों के माध्यम से बीमारियों का उपचार डीएनए और जीन के अणुओं द्वारा किया जाता है, जिसमें क्षतिगस्त कोशिकाओं को प्रतिस्थापित करने के लिए शरीर में स्वस्थ जीन डाले जाते हैं।
जैवोषध: जैवोषध प्रमुखतः बिना किसी दुष्प्रभाव के शरीर में छिपे रोगाणुओं को समाप्त कर देते हैं। जैवोषध को तैयार करने में किसी प्रकार के रसायनों तथा कृत्रिम उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाता है इसका मुख्य स्त्रोत प्रोटीन के अणु हैं। अब वैज्ञानिक जैवोषध के माध्यम से हेपेटाइटिस (hepatitis), कैंसर और हृदय रोग जैसी बीमारियों के उपचार करने का प्रयास कर रहे हैं।
जीन थेरेपी (Gene therapy): कैंसर और पार्किंसन (Parkinson’s) जैसे भयावह रोगों से निजात दिलाने हेतु इस प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में स्वस्थ जीन के माध्यम से क्षतिग्रस्त या मृत कोशिकाओं को प्रतिस्थापित किया जाता है तथा यह अन्य उपचारों में भी सहायक सिद्ध होते हैं।
फार्माको जीनोमिक्स (Pharmaco-genomics): फार्मास्यूटिकल्स (pharmaceuticals) और जीनोमिक्स (genomics) मिश्रित इस प्रणाली का प्रयोग व्यक्ति की अनुवांशिक सूचनाओं को जानने तथा उनके भीतर अनुवांशिक सूचनाओं को पहुंचाने के लिए किया जाता है।
अनुवांशिक परीक्षण: इस तकनीक में डीनए के माध्यम से अनुवांशिक रोगों का उपचार किया जाता है साथ ही यह तकनीक अपराधियों को पकड़ने तथा बच्चों के माता पिता की जांच में सहायक होती है।
वर्तमान समय में वैज्ञानिकों द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में जितने भी नवीन शोध किये जा रहे हैं उनमें जैव प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग :
मानव कहीं उत्पादक के रूप में तो कहीं उपभोक्ता के रूप में कृषि से जुड़ा हुआ है। जहां जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम विभिन्न फसलों के अध्ययन, जीन परिवर्तन तथा प्रतिरूपण की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं :
टीके : अविकसित देशों में फसलों की बढ़ती बीमारियों के उपचार हेतु ओरल या मौखिक टीके सहायक सिद्ध हो रहे हैं। अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के एंटीजनिक प्रोटीन (antigenic protein) को रोग प्रतिरक्षक के रूप में अन्य फसलों को बीमारी से बचाने के लिए किया जाऐगा। यह प्रक्रिया टीके माध्यम से की जाएगी।
प्रतिजीवी (Antibiotocs): मानव और पशुओं दोनों के प्रतिजीवी तैयार करने के लिए पौधों का उपयोग किया जाता है। एक विशेष प्रतिजीवी प्रोटीन को अनाज भण्डारण और पशुचारे में प्रयोग किया जाता है जो पारंपरिक प्रतिजीवी से सस्ता होता है। किंतु इनके अनावश्यक उपयोग से प्रतिजीवी प्रतिरोधी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है।
पुष्प : जैव प्रौद्योगिकी खाद्य फसलों को रोग रहित बनाने के साथ साथ सजावटी पौधों तथा फूल इत्यादि के रंग, गंध, आकार तथा अन्य गुणवत्ता को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जैव ईंधन : कृषि उद्योग जैव ईंधन उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैव प्रौद्योगिकी कृषि से प्राप्त कच्चे उत्पाद से जैव-तेल, जैव-डीजल और जैव-इथेनॉल (bio-ethanol) प्राप्त करने हेतु उनके किण्वन और सफाई हेतु उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
इसी प्रकार कृषि के अन्य क्षेत्र जैसे कीटनाशक प्रतिरोधी फसलें, पोषक तत्व पूरक खाद्य फसलें, तंतुओं की उत्पादकता बढ़ाने आदि में जैव प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रयोग देखने को मिल रहा है।
खाद्य प्रसंस्करण में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग :
खाद्य प्रसंस्करण मानव द्वारा भोजन या पेय के रूप में ग्रहण किये जाने वाले कच्चे पदार्थों को खाद्य या पेय योग्य बनाने या उन्हें संरक्षित करने हेतु एक विशेष तकनीक है, जिसे किण्वन (fermentation) कहा जाता है। विश्व के लगभग एक तिहाई भोजन (जैसे- पनीर, इडली, डोसा, मक्खन, दही आदि) किण्वित होता है। खाद्य प्रसंस्करण में भी जैव प्रौद्योगिकी मूलभूत आवश्यकता बनती जा रही है। यह भोजन की खाद्यता, बनावट और भण्डारण में सहायता करता है तथा भोजन या दुग्ध उत्पादों को जीवाणुओं के प्रभाव व विषाक्तता से रक्षा प्रदान करता है।
पर्यावरण में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग :
वर्तमान समय में पर्यावरण की समस्या एक विकट रूप धारण करती जा रही है। इन परिस्थितियों में पर्यावारण की समस्याओें को कम करने तथा पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने में पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी अहम भूमिका अदा कर रही है। पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैविक प्रणालियों को विकसित कर पर्यावरण में प्रदूषण तथा भूमि, वायु और जल प्रदूषण को रोकने में सहायता करता है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी के पांच प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं :
बायोमार्कर (bio-marker):
विभिन्न रसायनों के उपयोग से पर्यावरण में होने वाले हानिकारक प्रभावों को मापने का कार्य करता है।
जैविक ऊर्जा (Bio-energy):
बायोगैस (Biogas), बायोमास (Biomass), ईंधन, और हाइड्रोजन (Hydrogen) के समूह को जैविक ऊर्जा कहा जाता है। बायोएनर्जी का उपयोग औद्योगिक, घरेलू तथा अंतरिक्ष के क्षेत्र में देखने को मिलता है। पिछले कुछ अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि हमें स्वच्छ ऊर्जा का वैकल्पिक स्त्रोत खोजने की आवश्यकता है। जिसमें जैविक ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
जैविक उपचार:
खतरनाक पदार्थों को स्वच्छ कर गैर-विषाक्त यौगिक के रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को जैविक उपचार कहा जाता है। इसमें किसी भी प्रकार की तकनीक के लिए प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।
जैव परिवर्तन:
इसका प्रयोग विनिर्माण क्षेत्र में किया जाता है। इसमें जटिल यौगिक को सरल विष रहित पदार्थ या अन्य रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी विशेष रूप से भावी पीढ़ी के लिए पर्यावरण को सुरक्षित रखने का कार्य करता है। यह अपशिष्ट पदार्थों से वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन हेतु मार्ग प्रशस्त कराता है। इसके अनगिनत लाभों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न देश जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दे रहे हैं, भारत में भी विशेष जैव प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना की गयी है साथ ही यहां स्नातक स्तर पर विद्यार्थियों को जैव प्रौद्योगिकी की शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। मेरठ में भी विभिन्न शिक्षण संस्थाएं आज जैव प्रौद्योगिकी की शिक्षा उपलब्ध करा रही हैं।
संदर्भ :
1. https://www.iasscore.in/upsc-prelims/applicationsA. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.