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लाखों वर्ष पहले से ही भारत के ज्योतिष शास्त्रियों को तारों, दिशाओं, ग्रहों तथा उनकी स्थितियों का ज्ञान था। जिसे समझने के लिये अन्य देश के खगोलशास्त्रियों को काफी समय लग गया। भारतीय ज्योतिष खगोल विद्या का उपयोग प्राचीन काल से ही कालगणना के लिये होता आ रहा है। कालगणना का आधार हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली सूर्य, दूसरी नक्षत्र और तीसरी चंद्र की गति। इसमें नक्षत्र को सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आज हम श्री सुभाष काक द्वारा लिखे गए पेपर 'बेबीलोनियन एंड इंडियन एस्ट्रोनॉमी: अर्ली कनेक्शंस' (Babylonian and Indian Astronomy: Early Connections) का अध्ययन कर इस विषय में थोड़ा और ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।
आकाश में स्थिर तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े होते हैं। इन्हीं 27 नक्षत्रों के आधार पर एक वर्ष को 12 मास अर्थात महीनों में बांटा गया है। 27 नक्षत्रों के नाम निम्नलिखित हैं:
परंतु नक्षत्र और नक्षत्र मास को जानने के पहले आईये जानते हैं सौर्य और चंद्र मास क्या हैं?
सौर्य मास:
ऋग्वेद में सूर्य पथ को बारह भागों में बांटने और 360 दिनों के समय चक्र का वर्णन मिलता है। साथ ही साथ, सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन में छः-छः मास रहने का संकेत भी ‘तैत्तिरीय संहिता’ में मिलता है। सौर मास की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है। मूलत: सौर वर्ष 366 दिन का होता है। सौरवर्ष के दो भाग हैं जिन्हें संक्रांति कहते हैं, उत्तरायण और दक्षिणायन सूर्य। उत्तरायण, सूर्य की एक दशा है, जिसमें पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दिन लम्बे तथा रातें छोटी हो जाती हैं। उत्तरायण का आरंभ 21 या 22 दिसम्बर से होता है। यह दशा 21 जून तक रहती है। दक्षिणायन के दौरान सूर्य दक्षिण की ओर गमन करता है, और दिन छोटे होते जाते हैं और रातें बड़ी होती हैं। इसके आरंभ का समय 21 जून से लेकर 22/23 दिसंबर का होता है।
एक सौरवर्ष को तैत्तिरीय संहिता में छः ऋतुओं और बारह सौर्य मास में बांटा गया है:
1. वसंत ऋतु के लिये दो मास मधु- माधव,
2. ग्रीष्म के लिये शुक्र-शुचि,
3. वर्षा के लिये नभ-नभस्य,
4. शरद ऋतु के लिये इष-ऊर्जा,
5. शीतकालीन के लिये सहस-सहस्य तथा
6. शिशिर के लिये तप और तपस्या
सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। सूर्य जब धनु राशि से मकर में जाता है, तब उत्तरायण होता है। सूर्य मिथुन से कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब दक्षिणायन होता है। उत्तरायण के समय चन्द्रमास का पौष-माघ मास चल रहा होता है।
चंद्र मास:
चंद्रमा की कला की घटने-बढ़ने वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। चंद्रमास तिथि के घटने-बढ़ने के अनुसार यह मास 29, 30, 28 एवं 27 दिनों का भी होता है। कुल मिलाकर चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है। सूर्य और चंद्र मास में 12 दिन का अंतर आता है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण भी हुआ है। चंद्रमास के नाम:
1. चैत्र
2. वैशाख
3. ज्येष्ठ
4. आषाढ़
5. श्रावण
6. भाद्रपद
7. आश्विन
8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष
10. पौष
11. माघ
12. फाल्गुन
नक्षत्र मास:
चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है। वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। चंद्रमा 27-28 दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गुजरता है इसीलिए 27-28 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है। जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन तक भ्रमण करता है, उसी तरह चन्द्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है तथा वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। नीचे महीनों के नाम, पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है तथा उनके साथ नक्षत्रों के आदित्यों के नाम भी दिए गये हैं:
नक्षत्रमास का ज्ञान धरती के समय निर्धारण और खगोलीय घटनाओं के पूर्वानुमान में भी काफी महत्वपूर्ण है। वैदिक ऋषियों ने इन नक्षत्रों के आधार पर इस तरह का कैलेंडर बनाया है जो पूर्णत: वैज्ञानिक हो और उससे धरती और ब्रह्मांड का समय निर्धारण किया जा सकता हो। वेदों के ब्राह्मणा : तैत्तिरीय ब्राह्मणा, मैत्रायणी ब्राह्मणा, शतपथ ब्राह्मणा आदि में भी समय निर्धारण की घटनाओं का उल्लेख किया गया है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है भारत के शुरुआती समय में 2,700 वर्षों के समय चक्र के साथ एक शताब्दी कैलेंडर मौजूद था, जिसे सप्तर्षि कैलेंडर कहा गया था। यह अभी भी भारत के कई हिस्सों में उपयोग में लाया जाता है। माना जाता है कि इस कैलेंडर का निर्माण 3076 ईसा पूर्व शुरू किया था परंतु इतिहासकार प्लाइनी और अरायन की मानें तो यह कैलेंडर 6676 ईसा पूर्व में शुरू किया गया था।
संदर्भ:
1.Babylonian and Indian Astronomy: Early Connections, Subhash Kak
2.https://goo.gl/1GEqRV
3.https://goo.gl/Y5qefE
4.https://goo.gl/LMeofg
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