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सूक्ष्मजीव और उनकी गतिविधियां पृथ्वी पर लगभग सभी उपयोगी क्षेत्रों, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सेवाओं और कृषि आदि के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। सूक्ष्मजीव हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं। मनुष्यों और पशुओं में होने वाली बीमारियों में इन सूक्ष्म जीवों की भूमिका अहम है और इनके उपचार में भी। सूक्ष्म जीवों की मदद से ही दवाओं का निर्माण किया जाता है। ये सूक्ष्म जीव पर्यावरण में लगभग हर स्थान पर पाए जाते हैं, यहां तक कि ये हमारे अंदर भी पाए जाते है। सूक्ष्म जीव कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कृषि के सूक्ष्मजीव, भोजन में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव, इंडिस्ट्रयल सूक्ष्मजीव आदि।
सूक्ष्मजैविकी उन सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है, जो एककोशिकीय या सूक्ष्मदर्शीय कोशिका होते हैं। इनमें कवक एवं प्रोटिस्ट, जीवाणु, वायरस, प्रोटोजोआ, शैवाल और विषाणु आदि आते हैं। संक्षेप में सूक्ष्मजैविकी उन सजीवों का अध्ययन है, जो कि नग्न आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। इसमें माइक्रोबायोलॉजिस्ट (Microbiologist) इन जीवाणुओं के इंसानों, पौधों और पशुओं पर पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को जानने की कोशिश करते हैं। ये सूक्ष्मजीव पोषक चक्र, बायो़डीग्रेडेशन/बायोडिटिरीयरेशन (Biodegradation/biodeterioration), जलवायु परिवर्तन, खाद्य पदार्थों का खराब होना, जैव ईंधन का निर्माण, खाद्य और पेय का उत्पादन/प्रसंस्करण, और जैव प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
परंतु कहते हैं न एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक तरफ तो सूक्ष्मजैविकी में कई बीमारियों के उपचार के लिये सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है और कई दवाएं और एंटीबायोटिक (Antibiotic) भी बनाई जाती हैं परंतु आज के समय में एंटीबायोटिक और दवाओं के लगातार इस्तेमाल से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण एक प्रतिरोध क्षमता पैदा हो गई है। कुछ सूक्ष्मजीव अब इतने ताकतवर हो गये हैं कि उन पर दवाओं का असर कम होने लगा है या हम ये भी कह सकते हैं कि बिल्कुल से खत्म होने लगा है।
आइये जानें सूक्ष्मजैविकी के अंतर्गत सूक्ष्मजीवों के अध्ययन से हमारे जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के बारे में:
सकारात्मक प्रभाव:
वैसे तो ज्यादातर सूक्ष्मजीवों को उनके विभिन्न मानवीय रोगों से सम्बन्धित होने के कारण नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है, परंतु क्या आपको पता है कि सूक्ष्मजीव कई लाभदायक प्रक्रियाओं के लिये भी उत्तरदायी होते हैं, जैसे औद्योगिक प्रकिण्वन (उदाहरण स्वरूप अल्कोहॉल/Alcohol एवं दही-उत्पाद), जैवप्रतिरोधी उत्पादन आदि इन सभी लाभों का अध्ययन सूक्ष्मजैविकी के अंतर्गत ही किया जाता है।
खाद्य पदार्थों में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन खाद्य सूक्ष्मजैविकी के अंतर्गत किया जाता है। सूक्ष्मजैविकी की इस शाखा का प्रमुख उद्देश्य खाद्य पदार्थों की सुरक्षा तथा रोगजनकों जैसे कि बैक्टीरिया और वायरस आदि (जो भोजन के माध्यम से आसानी से हमारे अंदर आक्रमण कर देते हैं) से सुरक्षा प्रदान करना है। खाद्य सूक्ष्मजैविकी के अंतर्गत खाद्य पदार्थों में ऐसे सूक्ष्मजीवों का अध्ययन भी शामिल है जो हानिकारक रोगजनक सूक्ष्मजीवों को मार देते हैं या उनकी वृद्धि रोक देते हैं, जैसे कि प्रोबायोटिक बैक्टैरिया (Probiotic bacteria) तथा जीवाणुभोजी।
प्रोबायोटिक बैक्टैरिया जिनसे बैक्टीरियोसिन्स (bacteriocins) उत्पन्न होता है, रोगजनक कारकों को नष्ट कर देता है। जीवाणुभोजी एक ऐसा वायरस है जो केवल बैक्टीरिया को संक्रमित करता है, इसका उपयोग रोगजनक जीवाणुओं को मारने के लिए किया जा सकता है।
इतना ही नहीं, पर्यावरण में जो प्रदूषण होता है, उसका नियंत्रण भी काफी हद तक सूक्ष्मजीव ही करते हैं। इसके अलावा कीटनाशकों का निर्माण और दवाओं के निर्माण आदि में भी सूक्ष्मजीवों ने अहम भूमिका निभाई है। आज के दौर में एडवर्ड जेनर द्वारा विकसित चेचक का टीका, अलेक्जेंडर फ्लेमिंग और प्रथम एंटीबायोटिक पेनिसिलिन (Penicillin) की खोज, मार्शल और पेप्टिक अल्सर जैसी कष्टकारक बीमारियों के पीछे 'हेलिकोबैक्टर पाइलोरी' (Helicobacter pylori) नामक बैक्टिरिया और पेट के अल्सर (Ulcer) के बीच सम्बन्ध की खोज तथा ज़ूर हाउसन द्वारा पैपिलोमा वायरस (Papilloma virus) और गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर के बीच के सम्बन्ध की पहचान आदि सूक्ष्मजैविकी की ही देन है।
भारत के पिंपरी में स्थित हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल.) सार्वजनिक क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा स्थापित पहली दवा निर्माण कंपनी है। यह डीएनए सम्बंधित एक उत्पाद, आर.एच.यू.-एरिथ्रोपोएटिन (rHU-Erythropoietin) या हेमैक्स (Hemax) लॉन्च करने वाली भारत की पहली कंपनी थी। इसने 2008 में हेलपेन (Halpen), हैल्टैक्स (Haltax), हैक्सपैन (Hexpan) जैसे नए उत्पादों की शुरुआत की। यहां तक कि 2009 में एंटी-एच.आई.वी. (Anti-HIV) दवाओं का सूक्ष्मजैविकी के माध्यम से उत्पादन भी इसी कंपनी में हुआ। एच.ए.एल. पूरे भारत में सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के सामाजिक उद्देश्य के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के साथ सहयोग में स्थापित किया गया।
नकारात्मक प्रभाव:
सूक्ष्मजैविकी के माध्यम से हमें उपरोक्त लाभ तो मिले है किंतु क्या आप ये जानते हैं कि एंटीबायोटिक के लगातार इस्तेमाल से हम लोगों ने बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों को इतना शक्तिशाली बना दिया है कि इन पर दवाओं का असर खत्म होने लगा है। जब सूक्ष्मजैविकी के माध्यम से एंटीबायोटिक की खोज हुई तो ये चिकित्सा क्षेत्र में एक वरदान साबित हुई। लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदला और साथ ही साथ बदली जीवाणु की अनुवांशिक बनावट। आज भारत एंटीमाइक्रोबियल (Anti-microbial) प्रतिरोध में एक अग्रणी राष्ट्र है। यह चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टरों के लिये एक चुनौती साबित हो रहा है। यहां तक कि टाइफाइड और छाती का सामान्य संक्रमण अर्थात निमोनिया जैसे रोगों का इलाज भी मुश्किल हो गया है क्योंकि इन रोगों के लिये उत्तरदायी सूक्ष्मजीवों में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध विकसित हो गया है।
एक दवा का जब बार-बार उपयोग किया जाता है तो उसका असर कम हो जाता है, या हम ये भी कह सकते हैं कि बार-बार उपयोग करने से दवा की प्रभावकारिता कम हो जाती है क्योंकि बैक्टीरिया इनके विरुद्ध सहनशीलता बना लेते हैं। इसे दवा प्रतिरोध या एंटीबायोटिक प्रतिरोध भी कहा जाता है। स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (PGIMER) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ विकास विकास गौतम बताते हैं कि 1950 के दशक में, डॉक्टरों ने कोलिस्टिन (एक एंटीबायोटिक) का उपयोग शुरू किया लेकिन 1980 के दशक तक इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए इसका उपयोग बंद हो गया। परंतु इसके बाद खोजे गये सभी एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बन गए और मजबूरन डॉक्टरों को फिर से इसका उपयोग शुरू करना पड़ा। परंतु कोलिस्टिन भी अब प्रतिरोधी बनना शुरू हो गया है। आज के समय में यह एक गंभीर समस्या बन गई है।
1.https://microbiologysociety.org/about/what-is-microbiology-.html
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Food_microbiology
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Hindustan_Antibiotics
4.https://www.hindustantimes.com/health/antibiotics-a-war-that-we-are-losing/story-kOvWOAdqMChGv1RzMuARZJ.html
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