मेरठ के लोगों द्वारा विस्मृत हुए अफगानी सरधना के नवाब

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
15-11-2018 06:07 PM
मेरठ के लोगों द्वारा विस्मृत हुए अफगानी सरधना के नवाब

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कुछ ही स्वायत्त राज्य थे। जिन्हें "रियासत" कहते थे। साधारण भाषा में कहा जाए तो राजाओं व शासकों के स्वामित्व में स्वतन्त्र इकाइयों को रियासत कहा जाता था। ये रियासते ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं की जाती थी परंतु इनके शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। इन्ही रियासतों में से एक थी सरधना रियासत। यह पर ब्रिटिशों द्वारा कई अफ़गानियों को काबुल के पास पगमन से अपनी वफादारी के लिए मेरठ के सरधना में पुनः स्थापित किया गया था।

सरधना मेरठ जिले से 22 कि.मी दूर स्थित एक कस्बा है। सरधना कपड़ा बाजार व गिरिजाघर, बेगम समरू महल, रोमन कैथोलिक चर्च के लिये प्रसिद्ध है। हस्तिनापुर के करीब होने के कारण यह महाभारत काल का प्रसिद्ध प्राचीन महादेव मंदिर भी है। सरधना में पुनः स्थापित अफ़गानी “सरधना के नवाब” के नाम से जाने जाते है, इन्होंने बेगम समरू की मृत्यु के कई सालों बाद तक यहां शासन किया था। चलिये जानते है ये किस प्रकार से यहां के नवाब बने और किस कारणवश ब्रिटिशों ने इन्हे मेरठ में बसाया।

दरअसल सरधना के नवाब, अफगान योद्धा और राजनेता जन-फिशान खान के वंशजों को दिया गया मुस्लिम खिताब है, जो इन्हे असफल ब्रिटिश अफगान अभियानों और भारत में 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश राज की सेवाओं के लिए दिया गया था। केवल जन-फिशान खान के वंशज ही “सरधना के नवाब” शीर्षक का उपयोग करने का अधिकार रखते हैं। अब आप सोच रहे होंगे की (Jan Fishan Khan) कौन थे और इनके वंशजों को ही सरधना के नवाब क्यों कहा जाता है।

सैयद मोहम्मद शाह, जिसे उनके शीर्षक जन-फिशान खान के रूप में जाना जाता है, 19वीं शताब्दी के अफगान योद्धा थे। ये काबुल के पास पगमन के निवासी थे। उन्होंने प्रथम आंग्ल-अफ़गान(Anglo-afghan) युद्ध (1839-42) में भाग लिया था, जिसमे ये ब्रिटिश सरकार के अधिकारी अलेक्जेंडर बार्न्स(Alexander Barnes) को सहायता प्रदान की थी। इसके बाद इन्हे काबुल से निकाल दिया गया और ये ब्रिटिश सरकार की मदद से सरधना में बस गये। अंग्रेजों की सेवाओं के लिए, खान को सरधना की संपत्ति दे दी गई थी और साथ ही सरधना के नवाबों का खिताब दिया था। यह खिताब उन्हे ब्रिटिश औपनिवेशिक विद्वान सर रोपर लेथब्रिज ने उनकी द गोल्डन बुक ऑफ इंडिया (The Golden Book of India) में प्रदान किया था।

इसके बाद 1857 के भारतीय विद्रोह में भी सैयद मोहम्मद शाह ने ब्रिटिशों का साथ दिया। इन प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए ब्रिटिश सरकार ने मोहम्मद शाह को जन-फिशान खान के खिताब से नवाजा। इसी कारण केवल जन-फिशान खान के वंशज ही सरधना के नवाबों के रूप में जाने जाते है।

संदर्भ:

1.https://en.wikipedia.org/wiki/Nawab_of_Sardhana
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Sardhana
3.https://www.facebook.com/250440670268/posts/ahmad-shah-sayyid-of-sardhana-nawab-of-sardhana-nw-provinces-born-1st-january-18/10151377431590269/
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Jan-Fishan_Khan
5.https://cbkwgl.wordpress.com/2013/06/26/list-of-princely-states-of-india/

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