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प्रथम विश्व युद्ध विश्व के इतिहास की कुछ ऐसी घटनाओं में से है जो शायद सृष्टि की समाप्ति के बाद ही मानव मस्तिष्क से मिटेगी। इस दौरान मानव द्वारा जो अमानीय गतिविधियां की गईं उसके दर्द से शायद आज विश्व उबर गया हो किंतु उसका भय आजीवन मानव जाति के मन मस्तिष्क पर बना रहेगा। यह युद्ध प्रमुखतः यूरोप में हुआ किंतु विश्व के अधिकांश राष्ट्र इसके भागीदार बने। विश्व के विभिन्न हिस्सों से सेना तथा भौतिक संसाधन युद्ध क्षेत्र (यूरोप) तक पहुंचाए गये। इस युद्ध के दौरान भारत पूर्णतः ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में था, अतः इसका युद्ध में हिस्सेदार बनना स्वभाविक था।
ब्रिटेन द्वारा जर्मनी, तुर्की जैसे साम्राज्यों के विरूद्ध भारत से लाखों सैनिकों को खड़ा किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक यूरोप गये तथा वहां रुके। यह भारतीय सैनिकों की पहली विदेशी सेवा थी। ब्रिटेन के उच्च आयुक्त, सर जेम्स बेवन ने बताया कि ब्रिटिशों के साथ 10 लाख से कम भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था, और 70,000 वीरगति को प्राप्त हो गये। भारत के सैनिक फ्रांस और बेल्जियम, एडन, अरब, पूर्वी अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्तीन, पर्सिया और सालोनिका, यहाँ तक कि चीन में भी विभिन्न लड़ाई के मैदानों में बड़े पराक्रम के साथ लड़े। 1914-18 के दौरान हुए इस युद्ध में शामिल भारतीय सैनिकों की संख्या ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और कैरीबिया के सैनिकों की कुल संख्या से चार गुना थी। युद्ध में जाने वाले पहले व्यक्ति 57वें वाइल्ड राइफल्स (Wilde’s Rifles) के अर्साला खान थे, जो चार वर्ष तक यूरोप में कार्यरत रहे। ब्रिटेन के गुप्त अभियानों में भी भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया। कस्तूरबा गांधी 1914-15 के दौरान फ्रांस और बेल्जियम में घायल होने वाले सैनिकों की सेवा के लिए भारतीय सैनिक अस्पताल में कार्यरत रहीं।
यूरोप में इन हथियारों से लदे इन सैनिकों की दिनचर्या बारूद के साथ प्रारंभ और बारूद के साथ ही समाप्त होती थी। सामान्यतः सामान ढोने, हथियारों की सफाई तथा सेना के ठहरने के स्थान की सफाई इत्यादि का कार्य सेना द्वारा ही किया जाता था। यूरोपीय सेना तथा भारतीय सेना सभी दैनिक कार्य साथ मिलकर पूरा करते थे। ब्रिटिश अफसरों की तिमारदारी का उत्तरदायित्व भारतीय सेना को सौंपा गया था। भारतीय सैनिक अपनी वफादारी और ईमानदारी के कारण ब्रिटिश अफसरों के अत्यंत निकट थे। युद्ध के दौरान घायल भारतीय सैनिकों को ब्राइटन रॉयल पविलियन (Brighton Royal Pavilion) में आवश्यक चिकित्सक सुविधाएं उपलब्ध कराई गयी। ब्रिटिश और भारतीय सेना के इस युद्ध में सह-भूमिका ने दोनों के मध्य नस्लभेद समाप्त किया साथ ही ब्रिटिशों ने भारत द्वारा युद्ध में उनके लिए किये गये सहयोग को फिल्मों और समाचार पत्रों के माध्यम से जनता के समक्ष रखा जिसमें इन्होंने भारतियों को अपने अंधेरे के साथी के रूप में इंगित किया।
यूरोप में उपस्थित बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का विशेष ध्यान रखा जाने लगा। यहां तक कि युद्ध में मारे गये सैनिकों का अंतिम संस्कार भी हिन्दू धर्म के अनुसार किया गया तथा उनकी राख को समुद्र में विसर्जित कर दिया गया। साथ ही भारतीय भी इनके नये रीति रिवाजों से अवगत हुए तथा इन्हें स्वतंत्रता का वास्तविक महत्व समझ में आया। युद्ध विराम के पश्चात भी ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय सैनिकों को विशेष सम्मान दिया गया। इसका प्रमाण है भारतीय सैनिकों को मिला ब्रिटेन का सर्वश्रेष्ठ सैन्य सम्मान विक्टोरिया क्रॉस तथा भारत में ब्रिटिशों द्वारा बनाया गया स्मारक इंडिया गेट (India Gate) युद्ध में शहीद जवानों को समर्पित है।
संदर्भ:
1.http://indiaww1.in/INTERCULTURAL-EXPERIENCES.aspx
2.http://indiaww1.in/Religion-and-Culture-Abroad.aspx
3.http://indiaww1.in/propaganda.aspx
4.http://indiaww1.in/BRIGHTON-ROYAL-PAVILION-HOSPITAL.aspx
5.https://www.livemint.com/Leisure/9dGlURRrd8GjqIk3YAkJjO/The-men-who-cut-the-war-short.html
6.https://www.bbc.com/news/world-asia-india-46148207?SThisFB&fbclid=IwAR1ex1RemXaUNkoZO1Zi9k_m5mein0feTgqF6CMFg3RXpnaxnQaoDMXheSM
7.https://www.ft.com/content/33293afa-b358-11e3-b09d-00144feabdc0?fbclid=IwAR1jK8fJaJV59ws86Lx2bdHmT-J3Up1EPRIrg1nu0sdD3NL_k85w9zZaH2U#axzz2xn0mSrNp
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