पाकिस्तान के सियालकोट और मेरठ के मध्‍य सूत्रधार की भूमिका निभाती क्रिकेट गेंद

हथियार व खिलौने
31-10-2018 01:44 PM
पाकिस्तान के सियालकोट और मेरठ के मध्‍य सूत्रधार की भूमिका निभाती क्रिकेट गेंद

वर्तमान में मेरठ को भारत की क्रीड़ा राजधानी भी कहा जाता है। मेरठ का प्रसिद्ध खेल-कूद का सामान, खासकर क्रिकेट का सामान विश्व भर में प्रयोग होता है। इस ‘गोल गट्टम लकड़ पट्टम दे दना दन खेल’ के ‘गोल गट्टम’ अर्थात गेंद का निर्माण मेरठ में ही किया जाता है। मेरठ क्रिकेट की गेंद और खेल-कूद के सामान का विश्वस्तर पर प्रसिद्ध और अग्र उत्पादक तथा आपूर्तिकर्ता है। परंतु आपको बता दें कि मेरठ इकलौता नहीं है जो क्रिकेट की गेंद का अग्र उत्पादक है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के उत्तर-पूर्व में स्थित सियालकोट भी विश्वभर में क्रिकेट की गेंद के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। इन गेंदों का निर्माण मेरठ और सियालकोट को जोड़ने वाले एक सूत्र की भूमिका निभाता है।

पाकिस्तान के सियालकोट में खेल के सामान का निर्माण विभाजन (1947) के पहले से होता आ रहा है। आज यह उद्योग इतना समृद्ध हो चुका है कि सियालकोट हर साल करोड़ों डॉलर का खेल का सामान निर्यात करता है। क्रिकेट के मैदानों में गेंद अच्छे से दिखे इसलिये अब टेस्ट क्रिकेट मैचों में गुलाबी गेंद की शुरुआत होने जा रही है। इसी के साथ ही सियालकोट में बड़े पैमाने पर गुलाबी गेंद का निर्माण शुरू हो चुका है। इन विडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे बनती हैं ये गुलाबी गेंदें।


गेंद बनाने का कार्य चाहे एक छोटे कमरे में हो या एक बड़े कारखाने में, दोनों जगह से उसे बनाने की प्रक्रिया एक समान होती है। दोनों में ही गेंद का निर्माण हाथ से होता है, बस एकमात्र अंतर है इनमें कि छोटे कारखानों में गेंद बनाने की सारी प्रक्रिया एक ही आदमी करता है। जबकी बड़े कारखानों में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा गेंद बनाने के अलग- अलग चरणों को पूरा किया जाता है। क्रिकेट गेंद बनाने के लिए पहले एक कॉर्क की कुछ पट्टियों को हथोड़े से लगभग गोलाकार दिया जाता है। फिर कपास के धागे से कसकर बांधा जाता है, ताकि उसका एक सही आकार आ जाये। इस विडियो में आप मेरठ के कारखाने में इस प्रक्रिया को होते देख सकते हैं।


उसके बाद उसके ऊपर दो लाल या सफेद चमड़े के टुकड़ों को एक अदृश्य सिलाई के उपयोग से सिला जाता है। और एक परिपूर्ण गोलाकार में उसे ढाला जाता है। उसके बाद कपास के धागे वाली गेंद को इन चमड़ों में डाला जाता है और दुबारा से इनकी सिलाई की जाती है। फिर इन्हें आखरी चरण हीटिंग (Heating), वार्निशिंग (Varnishing) और पॉलिशिंग (Polishing) से गुजरना पड़ता है।

सिर्फ यही एक सामान्य बात नहीं है इन दोनों शहरों के बीच में, एक और घटना है जो इन दोनों शहरों को जोड़ती है। वो है सन्स्परेइल्स ग्रीनलैन्ड्स (एसजी: SG) के निदेशक श्री आनंद (जो आज खेल-कूद के समान के मेरठ में विश्वप्रसिद्ध उत्पादनकर्ता हैं) की कहानी। मेरठ की यह कम्पनी क्रिकेट गेंद की अग्रणी विश्व-पूर्तिकार है। वे बताते हैं कि SG की शुरूआत 1931 में सियालकोट में एक छोटी सी निर्माण कम्पनी के तौर पर दो भाई द्वारकानाथ और केदारनाथ आनंद ने की थी। परंतु उनका ये पैतृक कारोबार दूसरे विश्वयुद्ध और भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी की भेंट चढ़ गया। उनका परिवार खाली हाथ भारत पहुंचा, उनकी हथेलियों में सिर्फ हुनर की पूंजी थी। विभाजन के बाद 1950 में आनंद परिवार सियालकोट से मेरठ आ गया, यहां उनको शून्य से आगाज करना पड़ा।

1950 और 1960 के दशक में SG कम्पनी को कठोर संघर्ष का सामना करना पड़ा अभी तक कम्पनी का अपना ब्रांड नहीं था। अभी भी वो विदेशी खेल कंपनियों के लिए निर्माण और निर्यात कर रहे थे। परंतु जल्द ही 1972 में कंपनी ने ‘फेदरलाइट’ (Featherlite) नामक सुरक्षात्मक क्रिकेट गियर का अपना ब्रांड भी लॉन्च किया। फिर 1982 में, उन्होंने बल्ला, पैड, दस्ताने और गेंदों को अपने ब्रांड नाम के तहत लॉन्च किया, और धीरे-धीरे 1992 तक SG सभी घरेलू मैचों के लिए भारतीय क्रिकेट नियामक मंडल (बी.सी.सी.आई.) के लिये आधिकारिक गेंद आपूर्तिकर्ता बन गया, और 1994 से भारत में सभी टेस्ट मैच SG गेंदों के साथ खेले जा रहे हैं। आज एसजी कंपनी मेरठ में खेलकूद के कारोबार को नई दिशा दे रही है। दुनियाभर के अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच आज एसजी क्रिकेट गेंद से खेले जा रहे हैं।

संदर्भ:
1.https://www.youtube.com/watch?v=dwDE_Xmk-Dc
2.https://www.youtube.com/watch?v=Sj9e2Y4H1RQ
3.https://www.youtube.com/watch?v=V5AKrgwAm_A
4.https://www.livemint.com/Leisure/P0VTzcEu25Ua7WfAjzyCMN/1931-Sanspareils-Greenlands--A-historic-innings.html

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