चीनी मिलों में गन्ने से ऊर्जा का उत्पादन

नगरीकरण- शहर व शक्ति
27-10-2018 02:00 PM
चीनी मिलों में गन्ने से ऊर्जा का उत्पादन

किसी भी देश के लिए आर्थिक विकास की मूलभूत आवश्यकताओं में से सबसे बड़ी आवश्यकता है ऊर्जा। समाज के प्रत्येक क्षेत्र चाहे वो कृषि, उद्योग, परिवहन, व्‍यापार या घर हो, सभी जगह उर्जा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जैसे-जैसे देश की प्रगति हो रही है वैसे-वैसे इन क्षेत्रों में ऊर्जा की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है। जिसके लिए सरकार ने स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल कर ऊर्जा पैदा करने का एक नया विकल्प ढूंढा है। अब किसानों को अपनी बची हुई गन्ने की फसल को फेंकने या जलाने की ज़रूरत नहीं है, वे इसे चीनी मिल में बेच सकते हैं, क्योंकि अब चीनी मिलों में न सिर्फ चीनी का उत्पादन किया जा रहा है, बल्कि ऊर्जा का भी उत्पादन किया जा रहा है।

अब गन्ने की खोई (यह गन्ने से रस निकलने के बाद बचा हुआ सूखा पदार्थ है) के इस्तेमाल से चीनी मिलों में बिजली का उत्पादन हो रहा है। हम जानते हैं कि भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गन्‍ना उत्‍पादक देश है। भारत की 527 कार्यरत चीनी मिल हर साल 24 करोड़ टन गन्‍ने की पिराई करती हैं, जिसमें से 8 करोड़ टन की आर्द्र खोई (50 प्रतिशत आर्द्र) का उत्‍पादन होता है और इन से लगभग 7 करोड़ टन का इस्‍तेमाल वे बिजली और भाप की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करते हैं।

इस प्रकार से कम लागत और गैर-पारंपरिक बिजली की आपूर्ति के लिए चीनी मिलों में सह-उत्‍पादन के ज़रिए बिजली का उत्‍पादन एक महत्‍वपूर्ण उपाय है। वर्तमान में, भारत में करीब 206 सह-उत्पादन इकाइयां हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 3,123 मेगावाट है। इसके अलावा भारत में 500 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की अतिरिक्त क्षमता है, और साथ ही नई और पुरानी मिलों के आधुनिकीकरण की मदद से भारत आने वाले समय में अपनी सारी चीनी मिलों से 5,000 मेगावाट तक बिजली उत्पन्न कर सकता है।

आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्‍ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उत्‍तर प्रदेश तथा उत्‍तराखंड के राज्‍यों में अभी तक खोई की मदद से ऊर्जा उत्पादन प्रारंभ किया गया है। सर्वोत्‍कृष्‍ट खोई सह-उत्‍पादन से न केवल चीनी मिलों को लाभ होता है बल्कि गन्‍ना किसानों को भी फायदा पहुंचता है क्‍योंकि इससे उनके गन्‍ने की कीमत बढ़ जाती है तथा वह इसके लिए अधिक धन प्राप्‍त कर सकते हैं। इसके इस्तेमाल से वातावरण में स्वच्छता और बिजली की कीमतों में कमी लायी जा सकती है। साथ ही यह अतिरिक्त राजस्व भी अर्जित करने में लाभदायी है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मेरठ का मवाना शुगर्स लिमिटेड (Mawana Sugars Limited) है।

मेरठ के मवाना शुगर्स लिमिटेड द्वारा भी गन्ने की खोई का उपयोग सह-उत्‍पादन के लिए किया जा रहा है। उनके द्वारा चलायी गयी सी.डी.एम. परियोजना के तहत वे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को कम करेंगे तथा उसके साथ-साथ ये परियोजना गन्ना उद्योग में कृषि उत्पादन के लिए भी लाभदायक है। मवाना शुगर्स लिमिटेड में पांच पंजीकृत खोई आधारित सह-उत्पादन परियोजनाएं हैं। यह संयंत्र क्षेत्रीय भागों में बिजली बेच कर उसे अन्य बिजली उत्पादन संयंत्र (कार्बन युक्त) से प्रतिस्थापित करता है। इस से यह परियोजना पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगी।

संदर्भ:
1.https://sugarcane.icar.gov.in/index.php/en/2014-04-28-11-31-50/sugarcane-as-energy-crop
2.http://www.mawanasugars.com/co-generation.php
3.http://www.birla-sugar.com/Our-Products/Bagasse-Cogeneration-Renewable-Energy
4.http://www.iisr.nic.in/news45.htm

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