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मथुरा के महर्षि दयानन्द सरस्वती ने स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए तथा कुरीतियों और धर्म के नाम पर पाखंडों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज वैदिक धर्म पर आधारित वह संगठन है, जो मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करता है। इस प्रकार मूर्ति पूजा के बजाय परमपिता परमेश्वर की सजीव मूर्तियों यानि मानवमात्र के कल्याण की कामना आर्य समाज द्वारा की जाती है।
महर्षि दयानंद सरस्वती का मेरठ से निकट का सम्बन्ध रहा है। 1857 की क्रांति के असफल हो जाने के बाद यहां ब्रिटिश शासन को मज़बूती से स्थापित किया गया और उन्होंने परिवहन और संचार की एक विस्तृत प्रणाली तैयार करना शुरू कर दिया था। परंतु यहां के लोगों में अभी भी स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए कुछ करने और आगे बढऩे की प्रवृत्ति विद्यमान थी। मेरठ पहले से ही आर्य समाज की गतिविधियों का महत्वूपर्ण केन्द्र बना हुआ था, यहां पर दयानंद सरस्वती, एनी बेसेंट, विवेकानंद और सर सैयद अहमद खान ने दौरा किया था, जिसके पश्चात 1878 में आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने स्वयं अपने हाथों से मेरठ में आर्य समाज की आधार शिला रखी। इसका उद्देश्य धर्मोपदेश के माध्यम से देश की उन्नति करना है। आर्य समाज के माध्यम से स्वामी दयानंद सरस्वती ने महिलाओं की शिक्षा और उनके कल्याण पर भी विशेष ध्यान दिया।
परिणामस्वरूप मेरठ जनपद में अनेक आर्य कन्या विद्यालयों की स्थापना हुयी। आर्य समाज आंदोलन ने मेरठ में काफी लोकप्रियता हासिल की और साथ ही साथ आर्य समाज ने मध्यम वर्ग और मध्यम जाति के लोगों की शिक्षाओं के प्रति भी अधिक ध्यान दिया। आज मेरठ में आर्य समाज डी-ब्लॉक, शास्त्री नगर में स्थित है।
आर्यसमाज का योगदान:
1. आर्य समाज में जाति बंधन से मुक्त विवाह को आज कानूनी रूप मिला हुआ है, जिसके लिए आर्य समाज का विवाह प्रमाण पत्र बालिगों के लिए संजीवनी सिद्ध हो रहा है। अंतरजातीय विवाहों को लेकर आर्य समाज की विशिष्ट पहचान से आज सब वाकिफ हैं।
2. स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने वाले आर्य समाज ने विधवा विवाह पर पूरा ज़ोर दिया है।
3. स्वदेशी आन्दोलन का मूल सूत्रधार आर्यसमाज ही है। आर्य समाज शिक्षा, समाज-सुधार एवं राष्ट्रीयता का आन्दोलन है। भारत के 85 प्रतिशत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्य समाज की ही देन हैं।
4. स्वामी दयानन्द का मूलमन्त्र था कि जनता का विकास और प्रगति हो, जिसका सर्वोत्तम साधन शिक्षा है। शिक्षा के क्षेत्र में गुरुकुल व डी.ए.वी. कॉलेज स्थापित कर शिक्षा जगत में आर्यसमाज ने अग्रणी भूमिका निभाई। लाहौर में सन् 1886 में स्वामी दयानंद के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक (डी.ए.वी.) कॉलेज की स्थापना की थी। सन् 1901 में स्वामी श्रद्धानन्द ने कांगड़ी में गुरुकुल विद्यालय की स्थापना की।
5. 19वीं शताब्दी में भारत में समाज सुधार के आंदोलनों में आर्यसमाज अग्रणी था। हरिजनों के उद्धार में सबसे पहला कदम आर्यसमाज ने उठाया। वर्ण व्यवस्था को जन्मगत न मानकर कर्मगत सिद्ध करने का श्रेय इसी को दिया जाता है।
आर्य समाज का निर्माण पहले से ही सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध किया गया था, इस आंदोलन में जातिवाद का विरोध, महिलाओं के लिए समानाधिकार, बालविवाह का उन्मूलन, विधवा विवाह का समर्थन, निम्न जातियों को सामाजिक अधिकार प्राप्त होना आदि पर विशेष बल दिया जाता रहा है।
संदर्भ:
1. http://www.thearyasamaj.org/shastrinagarmeerut
2. http://mdameerut.in/history/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Arya_Samaj
4. http://www.ugtabharat.com/category/religion/--478769
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