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आज शिक्षक दिवस है। ऐसे में शिक्षक का नाम लेते ही सबसे पहले महान शिक्षाविद और गुरुओं के गुरु भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का चेहरा ज़हन में उतर आता है। सिर पर सफेद पगड़ी, सफेद रंग की धोती और कुर्ता, इसी लिबास में वे हमेशा नजर आते थे। उनके जन्मदिन, 5 सितंबर, को पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। डॉ. राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद और महान दार्शनिक थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. राधाकृष्णन विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनायिक, देशभक्त और शिक्षाशास्त्री जैसे उच्च पदों पर रहते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान देते रहे। वे दर्शनशास्त्र का भी बहुत ज्ञान रखते थे, खासकर उनकी पकड़ “अद्वैत वेदान्त” में काफी मजबूत थी।
'अद्वैत वेदान्त' सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है, जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। अद्वैत वेदांत भारत में प्रतिपादित दर्शन की कई विचारधाराओँ में से एक है। इसके अनुयायी मानते हैं कि उपनिषदों में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है और यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यस्थित है। इसका ऐतिहासिक आरंभ माण्डूक्य उपनिषद् पर छंद रूप में लिखित टीका ‘माण्डूक्य कारिका’ के लेखक गौड़पादाचार्य से जुड़ा हुआ है।
गौड़पादाचार्य के बाद उनके शिष्य दक्षिण भारत में जन्मे स्वामी शंकराचार्य हुए, जिन्होंने उनके श्लोकों की व्याख्या की थी। यही विचार 'अद्वैतवाद' के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। स्वामी शंकराचार्य अत्यंत प्रखर बुद्धि के अद्वितीय विद्वान् थे, जिन्होंने भारत में फैल रहे नास्तिक बौद्ध और जैन मत को शास्त्रार्थ में परास्त कर वैदिक धर्म की सुरक्षा की थी। अद्वैत वेदान्त में जीवनमुक्ति पर ज़ोर दिया जाता है। इसमें भारतीय धार्मिक परंपराओं में पाए जाने वाले ब्रह्म, आत्मा, माया, अविद्या, ध्यान और अन्य अवधारणाओं का उपयोग करके मोक्ष के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।
मध्यकालीन दार्शनिक शंकराचार्य ने तर्क दिया कि सिर्फ अद्वैत ब्रह्म ही परम सत्य है। शंकराचार्य मानते हैं कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब मिथ्या है। जीव केवल अज्ञानता के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है। उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में "अहं ब्रह्मास्मि" (4 महावाक्यों में से एक) कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद, राजा राममोहन रॉय, डॉ. राधाकृष्णन और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। इस कारण पश्चिम में उन्हें हिन्दू धर्म के प्रतिनिधित्व के रूप में भी देखा जाता था। डॉ. राधाकृष्णन हिंदू धर्म में दी गयी शिक्षा के असल अर्थ को भारत और पश्चिम दोनों जगह में फैलाना चाहते थे, और इस प्रकार वे दोनों सभ्यताओं को मिलाना चाहते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sarvepalli_Radhakrishnan
2. https://www.iep.utm.edu/radhakri/#H2
3. https://www.iep.utm.edu/adv-veda/
4. http://www.yabaluri.org/CD%20&%20WEB/radhakrishnanandhisphilosophyapr66.htm
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Advaita_Vedanta
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