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भारत के किसान हमेशा से ही अपनी फसल को लेकर चिंतित रहते हैं मौसम या मांग में परिवर्तन के कारण कभी उनकी फसल बर्बाद हो जाती है, तो कभी उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। खासकर की नकदी फसलों के किसानों को उचित मूल्य ना मिल पाने के कारण काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। आपको बताते हैं नकद फसल वह फसल होती है जो व्यापार के उद्देश्य से किसानों द्वारा की जाती है। जैसे- कपास, गन्ना, तंबाकू, जूट इत्यादि। इस शब्द का उपयोग निर्वाह फसलों से विपणन फसलों को अलग करने के लिए किया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत के भौगोलिक स्थानों के कारण, कुछ हिस्सों में विभिन्न मौसमों का अनुभव होता है, जो प्रत्येक क्षेत्र की कृषि उत्पादकता को अलग-अलग प्रभावित करती हैं। जिस कारण कई फसलों में हमें उतार चढ़ाव देखने को मिलता है।
हम में से अधिकांश लोग इस बात से वाकिफ हैं कि पिछले वर्ष कपास का क्षेत्रफल गन्ने के क्षेत्रफल के मुकाबले 11.3 प्रतिशत कम था। सबसे ज्यादा कपास उत्पादन में कमी पंजाब के क्षेत्रफल में 26 प्रतिशत से कम दिखाई दी। पंजाब में जून और जुलाई के शुरुआती महीनों में मानसून का आगमन और तापमान में असामान्य भिन्नता के कारण से फसल के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों के दौरान लगातार और उच्च वर्षा (> 300 मिमी) ने फसल पर एक गंभीर प्रभाव डाला। जबकि कपास की फसल के लिए 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। वहीं 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिरने पर कपास की वृद्धि मंद हो जाती है।
वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, बिहार और आंध्र प्रदेश में कृषि क्षेत्र में गन्ना क्षेत्र में 0.5 एलएच से वृद्धि हुई। गन्ना उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश की बादशाहत लगातार दूसरे साल भी कायम रही। गन्ना खेती का जहां क्षेत्रफल बढ़ा है, वहीं चीनी की वसूली में वृद्धि होने से कुल उत्पादन में भी इजाफा हुआ। क्या आप जानते हैं कि यह एक लंबी अवधि की फसल है और इसे भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर परिपक्व होने के लिए 10 से 15 और यहां तक कि 18 महीने की आवश्यकता होती है। साथ ही इसे गर्म और आर्द्र जलवायु के औसत तापमान 21 - 27 डिग्री और 75 - 150 सेमी वर्षा की जरुरत होती है।
जैसा कि हम देख सकतें हैं कि मौसम में बदलाव के कारण फसल में कमी हो जाती है, जिस कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इस से निजात पाने के लिये किसान अपनी खेती की फसलों में बदलाव करते हैं यही कारण है कि गन्ने की खेती में वृद्धि हुई और कपास की खेती में कमी देखी गयी।
1.https://www.thehindubusinessline.com/economy/agri-business/kharif-sowing-gathers-pace-maize-sugarcane-area-up/article24137799.ece
2.http://www.yourarticlelibrary.com/cultivation/sugarcane-cultivation-in-india-conditions-production-and-distribution/20945
3.http://www.yourarticlelibrary.com/cultivation/cotton-cultivation-in-india-conditions-types-production-and-distribution/20949
4.https://www.quora.com/What-cash-crops-were-grown-in-India-and-how-did-they-help-the-economy
5.https://www.quora.com/What-is-the-common-disadvantage-of-cash-crop-farming
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