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शुरुआती दिनों में, खाद्य और घरेलू उत्पादों की दुकान में आम तौर पर दुकानदार काउंटर के पीछे अलमारियों से एक सहायक द्वारा ग्राहकों के लिये सामान प्राप्त था, और वहीँ ग्राहकों को अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने के लिए घण्टों तक दुकान के पास खड़ा रहना पड़ता था तथा अलग-अलग सामान खरीदने के लिए अक्सर कई दुकानों तक जाना पड़ता था। दुकानदार को भी अपनी सीमित जगह में विभिन्न प्रकार के सामान व्यवस्थित करने होते थे, जिसके कारण अधिकांश समानों तक तो ग्राहकों की नजर ही नहीं जाती थी और वह अपनी वांछित वस्तु खरीदकर वापस आ जाते थे, किंतु आज स्थिति परिवर्तित हो गयी है। आज हम एक सामान लेने जाते हैं और साथ में चार सामान और खरीद लेते हैं। इसका प्रमुख कारण है आज के समय में बड़े-बड़े सुपर मार्केटों (Supermarkets) की उपस्थिति और उनके द्वारा ग्राहकों के लिए की गयी सामान की व्यवस्था।
सुपरमार्केट की अवधारणा सर्वप्रथम अमेरिका में क्लेरेंस सौंडर्स और उनके पिग्गली विग्गली स्टोर्स द्वारा विकसित हुई। उनका पहला स्टोर 1916 में खोला गया और 1920 के दशक में उत्तरी अमेरिकी शहरों तक फैल गया। आज सुपरमार्केटों ने दुनिया भर के शहरों में अपनी कई श्रृंखला बना ली हैं जो ग्राहकों की सभी जरूरतों को पूरा करने में सफल हो रहे हैं। वॉलमार्ट, जो मेरठ में पहले से ही एक इसी प्रकार का स्टोर है, यह उत्तर प्रदेश में 6 अन्य स्टोर खोलने की योजना बना रहा है।
सुपरमार्केट एक ऐसा स्थान है, जहां आप अपने रोज़मर्रा की आवश्यकताओं की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु (दूध से लेकर वस्त्रों तक) खरीद सकते हैं। यहां पर एक ही छत के नीचे विभिन्न अनुभाग बने होते हैं जैसे सब्जियों का अलग, खाद्य पदार्थों का अलग, पेय पदार्थों का अलग तथा घर या व्यक्तिगत प्रयोग वाली सामग्रियों के अलग। किंतु ये वस्तुओं को उनके महत्व, आकृति, रंग और मांग के अनुसार व्यवस्थित करते हैं जिससे ग्राहक आसानी से उनकी ओर आकर्षित हो जाए तथा उन्हें खरीद ले। यह उनके व्यवसाय का सबसे बड़ा हिस्सा है। ये आपको किराने की दुकान की तुलना में चयन के अनेक विकल्प उपलब्ध कराते हैं।
यहाँ ग्राहकों की धारणाओं को बदलने के लिए रचनात्मक रूप से एक लेआउट (Layout) का उपयोग होता है। वैकल्पिक रूप से, वे दृश्य संचार, प्रकाश, रंग, और यहां तक कि सुगंध के माध्यम से स्टोर के वायुमंडलीय वातावरण को बदल देते हैं। सुपरमार्केट में प्रवेश करते ही जो क्षेत्र आता है उसे ‘डीकम्प्रेशन ज़ोन’ कहते हैं, क्योंकि अन्दर आते ही ग्राहक पर सबसे पहले ठंडी हवा का झोंका आता है और उसकी गति धीमी हो जाती है। फिर वह सभी वस्तुओं का मुआयना करने लगता है। ज़ाहिर है ऐसी जगह से जल्दी जाने का मन नहीं होता है, जिसके चलते ग्राहक ज़्यादा खरीददारी भी कर लेते हैं।
इसके अलावा सुपरमार्केट छूट को आकर्षक पोस्टर (Poster) और बैनर (Banner) के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं जो दिमाग में बैठ जाते हैं। अधिकतम सुपरमार्केट में अलग-अलग ब्रांड का एक ही सामान इस प्रकार जमा होता है कि सबसे बाएँ वाला सबसे सस्ता होता है और फिर दाएँ जाते-जाते कीमत बढती जाती है। यह इसलिए क्योंकि साधारण मानव प्रवृत्ति के अनुसार हम बाएँ से दाएँ की ओर नज़र दौड़ाते हैं और कीमत धीरे-धीरे बढ़ने के कारण हम महंगा सामान भी खरीद लेते हैं ये सोचके कि ज़्यादा फर्क नहीं है। वहीं अगर सबसे सस्ता और सबसे महंगा विकल्प साथ रखा हो तो ज़्यादातर लोग सस्ता विकल्प ही चुनते हैं। एक और तरकीब होती है चीज़ों को जोड़ों में रखना, जैसे ब्रेड (Bread) के साथ मक्खन, चिप्स (Chips) के साथ कोल्ड ड्रिंक (Cold Drink) आदि। तथा ये सब कुछ पैतरे होते हैं जिनकी वजह से आप सुपरमार्केट से हमेशा ज़रूरत से ज़्यादा सामान लेकर लौटते हैं। अतः ग्राहकों को यह जांचने की ज़रूरत है कि क्या उन्हें वास्तव में सबसे अच्छा सौदा मिल रहा है या सिर्फ उनके दिमाग के साथ एक छोटा सा खेल खेला जा रहा है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Supermarket
2.https://www.economist.com/christmas-specials/2008/12/18/the-way-the-brain-buys
3.अंग्रेज़ी पुस्तक: George, Susan & Piege, Nigel. 1982. Food for Beginners, Writers and Readers Publishing Cooperative Society, Ltd
4.https://www.psychologytoday.com/us/blog/the-mindful-self-express/201203/10-ways-your-supermarket-hijacks-your-brain
5.http://www.dailymail.co.uk/news/article-2605526/The-supermarket-mind-games-make-spend-Array-tricks-stores-use-make-shoppers-bust-budget-exposed.html
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