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विश्व के खाद्यानों में चावल का प्रमुख स्थान है जिसकी उत्पादकता में भारत दूसरे नंबर में है। भारत के पारंपरिक रीति रिवाज़ चावल के बिना पूर्ण नहीं होते हैं जैसे चावलों के बिना हमारी पूजा संपन्न नहीं हो सकती तथा माथे का तिलक भी चावल के साथ ही लगाया जाता है, जो कि हमारी संस्कृति का प्रतीक है और बात करें भारत के खाने की थाली की तो वह भी चावल के बीना अधुरी है। भारत के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, छत्तीसगढ़ और असम आदि शामिल हैं।
भारत में चावल की बात करें और उत्तर प्रदेश का नाम ना आये तो कुछ अधुरा लगेगा। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में चावल प्रमुख उत्पादक फसल है यहां चावल के उत्पादन के लिए आवश्यक वातावरण है जैसे कि उपोष्ण जलवायु, दोमट व चिकनी मिट्टी, पर्याप्त जल व तापमान इत्यादि।
मेरठ का बासमती भारत में प्रसिद्ध है। चावलों के माध्यम से भारत के विभिन्न प्रकार के खानपान तैयार किए जाते हैं जिनमें प्रमुख हैं भिन्न भिन्न प्रकार की बिरयानी, पापड़, कचरी, खीर, अलग अलग तरह के पुलाव इत्यादि। विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों कार्बोहाइड्रेड(carbohydtrate), वसा, प्रोटीन, शर्करा, कैल्शियम और लोह आदि की आपूर्ति हमारे शरीर में चावलों द्वारा होती है।
आज का युग फैशन का युग कहा जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के प्रयोग किये जा रहे हैं। रोज लोग कुछ नया पहनना या खरीदना पसंद करते हैं यहां भी चावलों ने अपनी भूमिका निभाई है। चावल का रचनात्मक तरीके से भी प्रयोग किया जाता है, चावल के उपयोग से हम मोती बना सकते हैं, यह बहुत ही सरल और रचनात्मक है। चावलों के मोती तैयार करके विभिन्न आभूषण बनाएं जैसे जा रहे हैं जैसे गुरिया या मनका , जो लोगों द्वारा बहुतायात में पसंद किए जा रहे हैं। इस माध्यम से भी व्यवसाय का एक नया रूप उभरकर सामने आया है। अधिकांश भारतीय महिलाएं गहने पहनना पसंद करती हैं, चावल से बनें इन मोतियों से गहनों के क्षेत्र में एक नया बदलाव आयेगा।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि चावल हमारी खाद्य आपूर्ति ही नहीं कर रहा वरन् वर्तमान युग के साथ हमारे फैशन की मांग को पूर्ण करने में भी अपनी भूमिका निभा रहा है। चावल भारतीय अर्थव्यवस्था का भी बहुत बड़ा हिस्सा है।
संदर्भ:
1.http://books.irri.org/8122402542_content.pdf
2.http://agmip-ie.alterra.wur.nl/indo-gangetic-basin1
3.http://onelmon.com/blog/2013/03/rice-beads/
4.Köhler–s Medizinal-Pflanzen by Hermann Adolph Köhles
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