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मानव जीवन में जल का महत्व विभिन्न पडावों पर दिखाई देता है, चाहे वह पीने के लिए किया जाता हो या कृषि के लिए। कृषि एक ऐसा स्वरुप है जिसमें जल की महत्ता अत्यंत बढ़ जाती है। यदि कृषि में किसी फसल को जल न दिया जाए तो वह फसल सूखने लग जाती है और एक ऐसा वक़्त आता है जब कृषि पूरी रूप से नष्ट हो जाती है। फसलों में जल विभिन्न मात्रा में दिया जाता है जैसे कि आलू में 3 बार जल दिया जाता है, अरहर आदि दलहन फसल में 1 से 2 बार जल से खेत को भरा जाता है परन्तु वहीं कुछ और ऐसी भी फसल हैं जिनमें जल का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है और यदि जल की उपलब्धता इन फसलों में न की जाए तो ये फसल सूख जाती हैं। ये फसल हैं गन्ना और धान।
धान की रोपाई से ले कर कटाई तक बड़ी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है तथा खेत में यदि पूरे रूप से पानी न हो तो धान की रोपाई भी असंभव सी हो जाती है। गन्ना और धान पूरे देश में कृषि में व्यय होने वाले जल का 60% हिस्सा लेते हैं। अब यदि आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो यह पता चलता है कि पूरे विश्व में रहने वाली आबादी की 15% जनसँख्या भारत में निवास करती है। यहाँ पर दुनिया में पाए जाने वाले मीठे पानी का 4% हिस्सा ही पाया जाता है, जो कि जनसँख्या के आधार पर काफी सीमित है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में कृषि भूमि का केवल 35% कृषि हिस्सा ही सिंचित क्षेत्र में आता है जो यह बताता है कि बाकि का 65% हिस्सा बारिश के जल पर आधारित है। भारत में जल के भण्डारण की भी क्षमता मात्र 213 घन मीटर प्रति व्यक्ति है जो अत्यंत सीमित है। भारत में जल की उपलब्धता गंगा जैसी प्रमुख नदियों के कंधे पर है जो कृषि से लेकर पीने के जल तक की उपलब्धता करवाती हैं। यह आंकड़ा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत, चीन और अमेरिका से दोगुना ज्यादा जल कृषि में व्यय करता है।
भारत में भूमिगत जल की कमी कृषि में हुए अत्यधिक जल के प्रयोग के कारण बनी है। अब ऐसे में धान और गन्ने पर व्यय किये जाने वाले जल की महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है। मेरठ की प्रमुख फसलों में गन्ना और धान आते हैं जिसपर यहाँ पर अत्यधिक जल व्यय किया जाता है। आज भारत में कृषि के क्षेत्र में जल का प्रयोग 90% किया जाता है, वहीं सकल घरेलु उत्पाद में कृषि का योगदान मात्र 15% है। भारत में भूमि से निकाले गए जल का 89% हिस्सा कृषि में जाता है, घरेलु उपयोग 9% और औद्योगिक प्रयोग मात्र 2% है। इस मुश्किल से निजात पाने का एक साधन है ज्यादा से ज्यादा जल का संरक्षण करना तथा तालाबों आदि का निर्माण किया जाना। मेरठ में धान और गन्ने का उत्पादन बड़ी मात्र में किया जाता है। यहाँ पर जल संरक्षण के लिए तालाबों का निर्माण कराया जाना एक विकल्प है जो कि बारिश के जल को अपने में समाहित कर भूमिगत जल की स्थिति को सही करने का कार्य करे।
1.http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-miscellaneous/tp-others/getting-water-wise-on-the-farm/article23789764.ece
2.https://www.financialexpress.com/opinion/no-water-shortage-in-india-but-huge-water-waste/1140381/
3.https://thediplomat.com/2017/04/indias-thirsty-crops-are-draining-the-country-dry/
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