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समय के साथ आते बदलाव एवं दूसरे धर्मो के साथ सांस्कृतीक आदान-प्रदान और थोड़े बहुत विनियोग की वजह से बौद्ध धर्म के दर्शन में बहुत से सैद्धांतिक विभाजन आये। कहते हैं कि इन सभी विभाजनों की बुनियादी चार सैद्धांतिक विचारधाराएँ हैं: वैभक्षीका, सौतांत्रिक, योग-कारण और माध्यमिक। यह सभी बुद्ध के विचारों के हिसाब से उनके सिखाये पाठ पर चलते हैं मगर हर एक का नज़रिया अलग है। हीनयान वैभक्षीका और सौतांत्रिक नज़रिये को मानता है, महायान योग-कारण को और वज्रयान माध्यमिक को। बाद में आये विभिन्न प्रकार इन सभी पर निर्धारित नज़रियों के मिलन से बने हैं। वैभक्षीका आत्मा मे विश्वास नहीं रखते। चितमात्र मतलब योगचार्य नियमन के अनुसार नागार्जुन आचार्य ने शून्यवसद का सिद्धांत सामने रखा जिसे माध्यमिक कहते हैं।
महायान, वज्रयान, तंत्रयान, हीनयान, थेरवाद, मूलसरवस्तीवाद, प्रासंगिक, शून्यवाद, स्थाविर्वाद आदी सिद्धांत, बौद्ध दर्शनशास्त्र के विभिन्न प्रकार एवं उपप्रकार हैं। आज यह सभी विभाजन अलग अलग जगहों पर फैले हुए हैं और अनुसरित किये जाते हैं। इनके आज के अनुसरण की जगह के हिसाब से भी इन्हें नाम दिया गया है जैसे पूर्वी बुद्ध धर्म, तिब्बती बुद्ध धर्म आदी। हीनयान और महायान (थेरवाद) यह बौद्ध दर्शन के सबसे प्रमुख प्रकार हैं जो आज विभिन्न उपप्रकरो में बांटे गए हैं। बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद से बहुत सी सदियों में आते बदलावों के साथ बौद्ध दर्शन में इन प्रमुख प्रकार एवं दूसरे धर्मों से भी प्रेरित हो कर बहुत से सिद्धांत और विचारधाराएँ उभर कर आई हैं। बौद्ध धर्म में इनसे और अलग से भी उत्पन्न इतने दर्शन सिद्धांत और विचारधाराएँ हैं कि आज इन्हें किसी एक ढांचे में बांधना या वर्गीकृत करना बड़ा ही मुश्किल कार्य है। वज्रयान, तंत्रयान, थेरवाद यह सभी एक दुसरे में मिले हुए हैं और यह सभी नाम एक दूसरे के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं लेकिन हर एक मे बहुत से मतभेद और वैचारिक भिन्नता भी हैं।
बौद्ध धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वालों का मानना है कि पहले सिर्फ महायान और हीनयान थे। हीनयान का शब्दशः मतलब होता है छोटा अथवा निचला माध्यम/साधन और महायान मतलब बड़ा/उच्च साधन। लामा प्रथा हीनयान से संबंधित है। थेरवाद यह हीनयान का असल नाम है, कहते हैं महायानियों ने गलती से उन्हें हीनयान कहा था। कूछ विद्वानों के हिसाब से हीनयानी बुद्ध की मूर्ती पूजा करते थे एवं अरहन्त कभी गलत नहीं हो सकता यह मानते थे जो बुद्ध की सिखाई विचारधारा के खिलाफ है इसलिए इन्हें हीनयानी बुलाया गया। वज्रयान, तंत्रयान, मंत्रयान यह सभी गूढ़ बौद्ध सैद्धांतिक विभाजन माने जाते हैं, जिनमें मंत्र, तांत्रिक आदी का अर्चना में इस्तेमाल होता हैं। हाल ही में तक़रीबन 130 बौद्ध भिक्कू और बौद्ध तत्वज्ञानियों ने स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में एक बौद्ध तत्वज्ञान पर आधारित संगोष्ठी में हिस्सा लिया, तब उन्होंने यहाँ के बोधी वृक्ष के नीचे मिली पुरानी बुद्ध मूर्ति को भी अभिवादित किया। इसके अलावा यह तो सभी को याद होगा कि मेरठ बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और यहाँ पर हमें सम्राट अशोक के खड़े किये बौद्ध शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं।
1.आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोमी ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2.https://hi.wikipedia.org/wiki/बौद्ध_दर्शन
3.https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/130-monks-scholars-attend-buddhist-function-at-subharti-varsity/articleshow/63250232.cms
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