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वानस्पतिक इतिहास किसी भी शहर या देश के लिए किसी महत्वपूर्ण बिंदु से कम नहीं है। भारत वनस्पतियों के दृष्टिकोण से विश्व के शिखर देशों में से एक है। यहाँ पर कई भौगोलिक विविधितायें हैं जिस कारण यहाँ पर वनस्पतियों में असंख्य विविधितायें देखने को मिलती हैं। भारतीय वनस्पतियों पर सर्वप्रथम यूरोपियों के आने के बाद ही काम हुआ जिसे होर्टस मालाबरिकस (Hortus Malabaricus) पुस्तक में संजो कर रखा गया है। मेरठ को अपना गढ़ बनाने के दौरान अंग्रेजों ने यहाँ से नजदीक ही एक वानस्पतिक उद्यान की स्थापना की। जैसा कि सहारनपुर हिमालय के नजदीक है तो यहाँ पर कई प्रकार के पौधों व जड़ीबूटियों की उपलब्धता थी जो कि इस स्थान को एक प्रमुख वानस्पतिक उद्यान होने का दर्जा प्रदान करने के लिए काफी थी।
सहारनपुर वनस्पति उद्यान (वर्तमान में बागवानी प्रयोग के रूप में और प्रशिक्षण केंद्र जाना जाता है) एक बहुत सुंदर उद्यान है। ब्रिटिश काल के दौरान यह 1779 में शुरू हुआ था जब मुस्लिम राजा ज़बाइता खान ने सात गांवों के राजस्व का खर्च सहारनपुर में बगीचे के रख-रखाव पर करने का फैसला किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1817 में इस उद्यान का अधिग्रहण किया और जॉर्ज गोवन पहली बार सहारनपुर वनस्पति उद्यान के अधीक्षक बने। कालांतर में जॉन फ़ोर्ब्स रॉयल 1823 ने उनका स्थान लिया था। कलकत्ता और सहारनपुर बागानों के लिए डी हूकर और जॉन फर्मिंजर ड्यूटी आदि ने यहाँ उत्कृष्ट किया। भारत का वनस्पति सर्वेक्षण विभाग, 13 फरवरी 1890 को हावड़ा में देश की वनस्पति की क्षमता का आकलन करने के लिए स्थापित किया गया। टैक्सोनॉमिकल अनुसंधान के लिए प्रमुख केंद्रों में से एक ऐतिहासिक दृष्टि से सहारनपुर वनस्पति उद्यान दूसरे नंबर पर देखा जाता है।
राष्ट्रीय महत्व के मामले में भारतीय वनस्पति उद्यान, कलकत्ता और विशाल पौधे संग्रह, फ्लोरिस्टिक अध्ययन, टैक्सोनॉमिक अनुसंधान विभिन्न पौधों की शुरूआत और अनुकूलन सहित आर्थिक महत्व के लिए वर्तमान में यह उद्यान महत्वपूर्ण बागवानी है। यहाँ पर औषधीय पौधों के परिचय और अनुकूलन सहित कई उल्लेखनीय शोध किए गए हैं। उद्यान को अब बागवानी प्रयोग और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस उद्यान का और लन्दन के क्वींस उद्यान का एक गहरा ताल्लुक है, यहाँ से कई प्रकार के शोधों आदि को और गहन अध्ययन के लिए लन्दन भेजा जाता था।
1. https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/03068376208731764?journalCode=raaf19
2. http://www.isca.in/IJBS/Archive/v4/i6/3.ISCA-IRJBS-2015-052.pdf
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