आइए, समझते हैं, मंगर बानी और पचमढ़ी की शिला चित्रकला और इनके ऐतिहासिक मूल्यों को

जन- 40000 ईसापूर्व से 10000 ईसापूर्व तक
03-01-2025 09:24 AM
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आइए, समझते हैं, मंगर बानी और पचमढ़ी की शिला चित्रकला और इनके ऐतिहासिक मूल्यों को
मेरठ के निवासियों, क्या आप जानते हैं कि हरियाणा की अरावली पर्वत-शृंखला में स्थित मंगर बानी, एक ऐसा जंगल है, जहाँ गुफ़ा-चित्र और शिला-चित्र मौजूद हैं? हाल ही में मंगर बानी की गुफ़ाओं और शिला-आश्रयों में मिले शिला-चित्र, उत्कीर्णन और औज़ार संभवतः ऊपरी पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic era) के हैं और इन्हें भारत की सबसे प्राचीन पुरातात्विक खोज माना जा रहा है।
तो आज, हम इस युग की कला और चित्रण तकनीकों के बारे में जानेंगे। इसके अलावा, हम भीमबेटका गुफ़ाओं में पाई गई कला के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे। इसी संदर्भ में, इन चित्रों के समय-काल के विभिन्न चरणों पर भी चर्चा करेंगे। इसके बाद, मध्य प्रदेश की पंचमढ़ी पहाड़ियों में मौजूद शिला-चित्रों की विशेषताओं को समझेंगे। अंत में, मंगर बानी की गुफ़ाओं में मिली कला के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालेंगे।।
ऊपरी पुरापाषाण युग में कला और चित्रण तकनीकों की समझ
ऊपरी पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic Period) की शुरुआत लगभग 40,000 साल पहले हुई थी। इस समय आदिम मनुष्य ने सांस्कृतिक प्रगति के नए आयाम छुए। इस युग की पहचान क्षेत्रीय पत्थर के औज़ारों की विविधता से होती है, जिन्हें हड्डी, दाँत और सींग से भी बनाया गया था। भारत में इसके साक्ष्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश के मध्य भाग, महाराष्ट्र, दक्षिणी उत्तर प्रदेश और दक्षिण बिहार के पठारों में मिले हैं।
चित्रण तकनीकें:
⦁ - इस युग की चित्रकला में, सरल और रेखीय चित्रण मिलता है, जो हरे और गहरे लाल रंग में बनाए गए थे।
⦁ - जिन गुफ़ाओं में ये चित्र मिले, उनकी दीवारें क्वार्ट्ज़ाइट (Quartzite) से बनी थीं, इसलिए रंग तैयार करने के लिए खनिजों का उपयोग किया गया।
⦁ - सबसे आम खनिज, ओचर या गेरू (हेमेटाइट (Hematite)) था, जिसे चूने और पानी के साथ मिलाया जाता था।
⦁ - विभिन्न रंगों के लिए अलग-अलग खनिजों का उपयोग किया गया, जैसे लाल, सफ़ेद, पीला और हरा।
⦁ - सफ़ेद, गहरे लाल और हरे रंग का इस्तेमाल बड़े जानवरों को चित्रित करने में किया जाता था।
⦁ - लाल रंग से शिकारी और हरे रंग से नर्तकों को दर्शाया जाता था।
इन चित्रों में मुख्य रूप से विशाल जानवरों के आकार को दिखाया गया है, जैसे बायसन, हाथी, बाघ, गेंडे और जंगली सुअर। इनके साथ साधारण रेखाओं से बने मानव चित्र भी पाए जाते हैं।।
भीमबेटका गुफ़ाओं में मिली चित्रकारी के विभिन्न चरण
भीमबेटका की गुफ़ाओं में मौजूद चित्रों को, तीन प्रमुख सांस्कृतिक अवधियों में विभाजित किया गया है, जिनमें कुल नौ चरण शामिल हैं। पहले पाँच चरण मध्यपाषाण काल से संबंधित हैं, जिन्हें चरण I से V तक विभाजित किया गया है। छठा चरण ताम्रपाषाण काल का है, जिसे चरण VI के नाम से जाना जाता है। अंतिम तीन चरण, चरण VII से IX, ऐतिहासिक काल के चित्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कुछ विद्वानों का मानना है कि भीमबेटका की गुफ़ाओं की यह चित्रकारी 40,000 ईसा-पूर्व या उससे भी पहले की हो सकती है। पुरातात्विक साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि मध्यपाषाण और ऐतिहासिक काल की गुफा-चित्रकारी, ऊपरी पुरापाषाण और मध्ययुगीन काल की चित्रकारी से स्पष्ट रूप से भिन्न है। ऊपरी पुरापाषाण और मध्ययुगीन काल के चित्र न केवल संख्या में कम हैं, बल्कि उनका सांस्कृतिक महत्व भी सीमित है। इनमें उस विशिष्ट शैली का अभाव है, जो मध्यपाषाण और ऐतिहासिक काल की चित्रकारी में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
प्राचीनतम चित्रकारी
भीमबेटका की प्रारंभिक चित्रकारी में मुख्य रूप से जंगली जानवरों का चित्रण मिलता है। इनमें गौर (जंगली बैल की एक स्थानीय प्रजाति), चीतल जैसे हिरण, बंदर, जंगली सूअर, बारहसिंगा और हाथी शामिल हैं। इसके अलावा, शिकार के दृश्य भी दर्शाए गए हैं, जहाँ मनुष्य धनुष-बाण लिए हुए और सिर पर विशेष प्रकार की टोपी पहने हुए दिखाई देते हैं।
इन चित्रों में केवल जानवरों और शिकार के दृश्य ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी प्रदर्शित की गई हैं। इनमें धार्मिक अनुष्ठानों की झलक, महिलाएँ गड्ढों से चूहे निकालती हुईं, और पुरुष तथा महिलाएँ फल और शहद एकत्र करते हुए भी दिखाए गए हैं।
भीमबेटका के गुफ़ा चित्रों में उपयोग किए गए सामग्री
भीमबेटका की गुफाओं में बनी इन चित्रों को बनाने के लिए शुरुआती समय में जिन सामग्रियों का उपयोग हुआ, उनमें सबसे प्रमुख ब्रश थे। इन ब्रशों को नरम बनाने के लिए टहनियों को चबाकर उनके रेशों को अलग किया जाता था। इसके अलावा, उंगलियाँ, पक्षियों के पंख और जानवरों के बालों का भी ब्रश के रूप में उपयोग किया जाता था।
रंगों को तैयार करने के लिए सब्ज़ियों या आसपास के तलछटी पत्थरों से पिगमेंट निकाले जाते थे। चट्टानों से प्राप्त हाइड्रेटेड आयरन ऑक्साइड (Hydrated iron oxide) का उपयोग, गेरू और लाल रंग के विभिन्न शेड्स बनाने के लिए किया जाता था। इन्हें जलाकर पीला, जंग-नारंगी और भूरा रंग तैयार किया जाता था। सफ़ेद रंग के लिए पक्षियों की बीट या पौधों के रस का उपयोग किया जाता था।
शोध से यह पता चलता है कि इन रंगों का उपयोग केवल गीले रूप में किया गया था। पिगमेंट को तेल और पानी के साथ मिलाकर रंग तैयार किए जाते थे। ठोस या पाउडर के रूप में रंगों का उपयोग कभी नहीं किया गया।
पचमढ़ी पहाड़ियों की शिला-चित्रकला पर एक नज़र
मध्य भारत की सतपुड़ा पर्वतमाला में स्थित पंचमढ़ी पहाड़ियाँ गुफ़ाओं, दर्रों, शिला-आश्रयों और घने वनस्पति से भरपूर हैं। इस क्षेत्र की कई बलुआ पत्थर की गुफ़ाओं और शिला-आश्रयों की दीवारों और छतों पर विभिन्न विषयों को दर्शाते हुए चित्र बनाए गए हैं। यह शिला-चित्रकला परंपरा मध्यपाषाण काल (लगभग 9000–3000 ईसा-पूर्व) से प्रारंभ होकर प्रारंभिक ऐतिहासिक काल तक चलती रही। इन चित्रों में इस क्षेत्र की मूल वनस्पति और जानवरों का प्रमुखता से चित्रण किया गया है, जो यहाँ के प्रारंभिक शिकारियों और भोजन-संग्रहकर्ताओं के लिए इन संसाधनों के महत्व को दर्शाता है।
इन चित्रों में शिकार करने वाले जानवर जैसे बैल, बायसन, हाथी और जंगली सूअर दिखाए गए हैं। इसके साथ ही छिपकली, मछली, बिच्छू और मोर जैसे पक्षियों का भी चित्रण मिलता है। मानव आकृतियाँ मुख्य रूप से शिकारियों के रूप में दर्शाई गई हैं, जो भाले, डंडे और धनुष-बाण का उपयोग करते हुए दिखाई देती हैं। प्रारंभिक चित्रों में महिलाओं की आकृतियाँ बहुत कम हैं, लेकिन बाद के चित्रों में उनका उल्लेखनीय रूप से अधिक चित्रण मिलता है।
इन चित्रों को बनाने के लिए उपयोग किए गए रंग प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सामग्रियों से तैयार किए गए थे, जैसे हेमेटाइट, आयरन ऑक्साइड और काओलिन। गहरे रंगों को सफ़ेद काओलिन (White kaolin (चूर्णित चूना पत्थर)) के साथ मिलाकर विभिन्न रंगों की छटाएँ तैयार की जाती थीं। पचमढ़ी पहाड़ियों में अधिकांश चित्र ऐतिहासिक काल के हैं, लेकिन मध्यपाषाण काल के शुरुआती चित्र प्राकृतिक वातावरण और उस समय के जीवन की झलकियों को जीवंत और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करते हैं।
मंगर बानी गुफ़ा में चित्रकला की खोज
मंगर बानी, एक पुरापाषाणकालीन पुरातात्विक स्थल और एक पवित्र वन है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा नवपाषाणकालीन स्थल हो सकता है, और संभवतः भारत का सबसे पुराना पुरातात्विक स्थल भी है। इस स्थल और यहाँ से पाए गए पत्थर के औज़ार, 100,000 साल पुराने हैं, जबकि इस गुफ़ा की चित्रकला, लगभग 20,000-40,000 साल पुरानी मानी जाती है।
यह शिला-आश्रय मानवता के जाने-माने सबसे पुराने शिला चित्रों में से कुछ को दर्शाते हैं, साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ सबसे प्राचीन पत्थर के औज़ारों के भी साक्ष्य प्रदान करते हैं।
कुछ शोधकर्ताओं ने , ऐसी गुफ़ाएँ भी देखीं, जिनमें मानव आकृतियाँ, जानवर, पत्तियाँ और ज्यामितीय चित्र थे। कुछ चित्र समय के साथ फीके हो गए हैं, लेकिन कई चित्र अब भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। इसके अलावा, शिला कला और खुले स्थानों पर धार्मिक स्थलों के साक्ष्य भी मिले। जबकि कुछ चित्र खुले स्थानों पर पाए गए, अधिकांश चित्र शिला-आश्रयों की छतों पर स्थित हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/muuesb3r
https://tinyurl.com/y37zxy4j
https://tinyurl.com/2s3n8nfw
https://tinyurl.com/6n6c6mje
https://tinyurl.com/5f88j7c9

चित्र संदर्भ

1. पचमढ़ी में पांडव गुफ़ाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भीमबेटका शैलचित्रों के एक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नौ लोगों के समूह को दर्शाते एक गुफ़ा चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. पचमढ़ी की पहाड़ियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्राचीन गुफ़ा चित्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)

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