आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
15-11-2024 09:27 AM
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आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
एक ओंकार सतनाम करता पुरख निर्भाऊ निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुरु परसाद
भावार्थ: एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम (उसका नाम ही सच है), करता पुरख (सबको बनाने वाला), अकाल मूरत (निराकार), निरभउ (निर्भय), निरवैर (किसी का दुश्मन नहीं), अजूनी सैभं (जन्म-मरण से दूर) और अपनी सत्ता कायम रखने वाला है।
पूरे देश में, सिखों के प्रथम गुरु , गुरु नानक के जन्म के शुभ अवसर को गुरु पर्व के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि अपने जीवनकाल में उन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों की भी यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को ‘उदासी’ के नाम से जाना जाता है। उनकी इन यात्राओं का उद्देश्य प्रेम, करुणा और सामाजिक न्याय के अपने संदेशों को साझा करना था। वह लोगों को ईश्वर के सच्चे संदेश से अवगत कराना चाहते थे और अंधविश्वासों को चुनौती देना चाहते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने मित्र भाई मरदाना के साथ 28,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की। इसमें से अधिकांश दूरी उन्होंने पैदल ही तय की थी। आज गुरु नानक जयंती के इस पावन अवसर पर हम इन उदासीयों की समयसीमा और इनके महत्व के बारे में गहराई से जानेंगे। हम यह भी देखेंगे कि कैसे इन यात्राओं ने गुरु नानक के संदेश को फैलाने में मदद की और कई लोगों को परम ज्ञान से परिचित कराया। इसके अतिरिक्त, हम गुरु नानकऔर उनके साथी भाई मरदाना के बीच के संबंध को भी देखेंगे। उनकी मित्रता आधुनिक समाज के लिए भी सद्भाव और सहिष्णुता का एक बेहतरीन उदाहरण है।
आइए शुरुआत इन यात्राओं अर्थात उदासीयों की समयावधि को समझने के साथ करते हैं।
पहली उदासी (1500-1506 ईस्वी)
यह यात्रा, लगभग 7 साल तक चली। इस दौरान, गुरु नानक देव जी, इन स्थानों पर गए:

⦁ सुलतानपुर
⦁ तुलंबा (अब मखदूमपुर, मुल्तान में)
⦁ पानीपत
⦁ दिल्ली
⦁ बनारस (वाराणसी)
⦁ नानकमत्ता (उत्तराखंड)
⦁ टांडा बंजारा (रामपुर)
⦁ कामरूप (असम)
⦁ आस देश (असम)
⦁ सईदपुर (अब एमिनाबाद, पाकिस्तान)
⦁ पासरूर (पाकिस्तान)
⦁ सियालकोट (पाकिस्तान)
यह यात्रा, उन्होनें, 31 से 37 वर्ष की आयु में तय की
दूसरी उदासी (1506-1513 ईस्वी)
यह यात्रा भी लगभग 7 साल तक चली। इस दौरान, गुरु नानक देव जी, इन स्थानों पर गए:
⦁ धनासरी घाटी
⦁ संगल दीप (अब श्रीलंका)
⦁ - यह यात्रा, उन्होनें, 37 से 44 वर्ष की आयु में तै की
तीसरी उदासी (1514-1518 ईस्वी)
यह यात्रा, लगभग 5 साल तक चली। इस दौरान, गुरु नानक, इन स्थानों पर गए:
⦁ कश्मीर
⦁ सुमेरु पर्वत
⦁ नेपाल
⦁ ताश्कंद
⦁ सिक्किम
⦁ तिब्बत
⦁ यह यात्रा, उन्होनें, 45 से 49 वर्ष की आयु में तै की
चौथी उदासी (1519-1521 ईस्वी)
यह यात्रा, लगभग 3 साल तक चली। इस दौरान, गुरु नानक देव जी, इन स्थानों पर गए:
⦁ मक्का, मदीना और अन्य अरब देश
⦁ यह यात्रा, उन्होनें, 50 से 52 वर्ष की आयु में तै की
पांचवीं उदासी (1523-1524 ईस्वी)
यह यात्रा, लगभग 2 साल तक चली। इस दौरान, उन्होंने पंजाब के भीतर यात्रा की। उनकी उम्र इस समय 54 से 56 साल थी।
इन सभी यात्राओं के बाद, गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में ही बस जाने का फ़ैसला किया। उन्होंने यहीं पर अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए। कुल मिलाकर,गुरु नानक ने इन पांच उदासियों (यात्राओं) में ही लगभग 24 साल बिताए।
1499 में, गुरु नानक देव जी ने प्रेम और भलाई का संदेश बाँटने के उद्देश्य से यह विशेष यात्रा शुरू की। इस दौरान वे पूरे भारत में घूमे और कई अलग-अलग धर्मों तथा संस्कृतियों के लोगों से मिले। इस यात्रा के पीछे उनका लक्ष्य उनसे मिलने वाले सभी लोगों के साथ "ईश्वर का वास्तविक संदेश" बाँटना था।
गुरु नानक देव जी दुनिया में नफरत, कट्टरता, झूठ और पाखंड के कारण होने वाली पीड़ा से बहुत चिंतित थे। उन्होंने अपने आस-पास दुष्टता और पाप बढ़ते हुए देखा। यह देखकर, उन्हें प्रतीत हुआ कि उन्हें यात्रा करके लोगों को सर्वशक्तिमान भगवान की शिक्षाओं के प्रति जागरूक करना चाहिए। सत्य, प्रेम, शांति, करुणा, धार्मिकता और आनंद जैसे मूल्यों के साथ, गुरु नानक मानवता में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते थे।
अपनी इस यात्रा में, गुरु नानक देव जी के साथ, उनके दो वफादार साथी ‘भाई बाला और भाई मरदाना’ भी थे। भाई मरदाना, एक मुसलमान थे जो गुरु नानक के साथ ही बड़े हुए थे। इस यात्रा में वह 'रबाब' नामक एक संगीत वाद्ययंत्र बजाते और भजन गाते थे। उन्होंने ही गुरु नानक के ईश्वर के शब्दों को संगीत के साथ जोड़ा, जिससे सिखों में कीर्तन की नई परंपरा शुरू हुई। भाई मरदाना ने कविताएं भी लिखीं। उनकी एक कविता गुरु ग्रंथ साहिब में 'बिहा गद्रे की वार' नामक खंड में दिखाई देती है। अलग-अलग धर्मों से होने के कारण उनकी मित्रता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त, उस समय के समाज में एक मज़बूत जाति व्यवस्था भी थी। भाई मरदाना 'मिरासी' जाति से थे, जिसे कई पंजाबी, तब भी नीची नज़र से देखते थे।
गुरु नानक देव जी ने हिंदू धर्म और इस्लाम के विचारों को भी आपस में जोड़ा था। उन्होंने एकेश्वरवाद को माना और संदेश दिया कि ईश्वर एक है। उन्होंने पुनर्जन्म से मुक्ति पाने के लिए, ईश्वर के नाम पर ध्यान लगाने के महत्व पर ज़ोर दिया। छोटी सी उम्र से ही गुरु नानक ने हिंदू समाज में कई सामाजिक समस्याएँ देखीं। उन्होंने जाति व्यवस्था की अनुचितता और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संघर्ष को देखा। इन मुद्दों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने यह भी देखा कि लोग पंडितों, पुजारियों और मुल्लाओं जैसे धार्मिक नेताओं के मिश्रित संदेशों से भ्रमित थे। लोगों की मदद करने के लिए, गुरु नानक, ईश्वर से एक स्पष्ट संदेश साझा करना चाहते थे। उनका उद्देश्य, अपने स्वयं के आध्यात्मिक दर्शन को प्रस्तुत करके सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था को बदलना था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ymxmmsw3
https://tinyurl.com/2cquenkf
https://tinyurl.com/2577wo2v
https://tinyurl.com/25n3sqad

चित्र संदर्भ
1. अपने साथियों को प्रेम और सच्चाई का संदेश देते गुरु नानक देव जी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में निर्मित एक दुर्लभ भित्ति चित्र में दर्शाई गई गुरु नानक की छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अपने साथियों, भाई मरदाना और भाई बाला के साथ गुरु नानक को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
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