कन्नौज व उत्तरी भारत में, गुर्जर–प्रतिहार वंश था, सबसे शक्तिशाली व आदर्श राजवंश

छोटे राज्य 300 ईस्वी से 1000 ईस्वी तक
24-09-2024 09:21 AM
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कन्नौज व उत्तरी भारत में, गुर्जर–प्रतिहार वंश था, सबसे शक्तिशाली व आदर्श राजवंश
हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों की तरह, सदियों से ही, हमारे शहर मेरठ पर, कई राज्यों और राजवंशों का शासन रहा है। मौर्य सम्राट – अशोक (273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) के काल में, मेरठ, बौद्ध धर्म का केंद्र था। लेकिन, आज, हम उत्तर प्रदेश के एक विशेष साम्राज्य के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो मौर्य साम्राज्य के लगभग 1000 साल पश्चात बना था। यह, प्रतिहार राजवंश है, जिसे गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भी कहा जाता है। यह, एक प्रमुख मध्ययुगीन भारतीय राजवंश था, जिसका, 730 ईस्वी से 1036 ईस्वी तक, कन्नौज पर शासन चला । नागभट्ट द्वितीय के तहत, प्रतिहार राजवंश, उत्तरी भारत में, सबसे शक्तिशाली राजवंश बन गया। तो, इस लेख में, हम गुर्जर–प्रतिहार वंश के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम, उनकी प्रशासन प्रणाली के बारे में भी बात करेंगे। आगे, हम गुर्जर–प्रतिहार वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासकों के बारे में चर्चा करेंगे। अंत में, हम कला, वास्तुकला और साहित्य में, प्रतिहार राजवंश के योगदान के बारे में जानेंगे।
गुर्जर-प्रतिहार, या प्रतिहार राजवंश ने, 8वीं शताब्दी से, 11वीं शताब्दी तक, पश्चिमी और उत्तरी भारत में, अपना प्रभुत्व बनाए रखा। प्रतिहार राजवंश के दौरान, राजा नागभट्ट प्रथम (730-760) ने, अरब आक्रमणकारियों को सफ़लतापूर्वक हराया। भोज या मिहिर भोज (लगभग 836-885), इस राजवंश के, सबसे प्रसिद्ध राजा थे । प्रतिहार राज्य, मुख्य रूप से कला, मूर्तिकला और मंदिर-निर्माण के संरक्षण; एवं पूर्वी भारत के पाल (8वीं शताब्दी – 12वीं शताब्दी) और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट राजवंश (8वीं शताब्दी – 10वीं शताब्दी) जैसी, समकालीन शक्तियों के साथ, निरंतर युद्ध के लिए, जाने जाते थे।
आइए, अब प्रतिहार राज्य के प्रशासन के बारे में समझते हैं।
1.) प्रतिहार शासन में, राजा, राज्य में, सर्वोच्च स्थान रखता था, और उनके पास अपार शक्ति होती थी । राजाओं को ‘परमेश्वर’, ‘महाराजाधिराज’ और ‘परमभतेरक’ जैसी उपाधियां दी गईं थीं।
2.) सामंतों की नियुक्ति करना, व अनुदान और दान पर हस्ताक्षर करना, आदि सभी राजाओं के कार्य थे ।
3.) सामंत, अपने राजाओं को सैन्य सहायता प्रदान करते थे, और उनके लिए, लड़ते भी थें। , प्रशासन के मामलों में, उच्च अधिकारियों की सलाह का पालन किया जाता था।
4.) संपूर्ण प्रतिहार राज्य, अनेक भुक्तियों में, विभाजित था। प्रत्येक भुक्ति में, कई मंडल होते थे, और प्रत्येक मंडल में कई शहर और गांव होते थें। सामंतों को, ‘महा सामंतपति’ या ‘महा प्रतिहार’ के नाम से जाना जाता था। तथा, गांवों का प्रबंधन, स्थानीय स्तर पर किया जाता था।
5.) गांव के बुजुर्गों को, महत्तर के नाम से जाना जाता था और वे गांव प्रशासन के प्रभारी थे।
6.) ग्रामपति, एक राज्य अधिकारी थे जो ग्राम प्रशासन पर सलाह देते थे।
7.) शहर का प्रशासन, गोष्ठी, पंचकुला, सांवियका और उत्तर सोभा नामक परिषदों द्वारा संभाला जाता था।
इस प्रकार, सुशासित प्रतिहार राजवंश के, सबसे प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं:
1.) नागभट्ट प्रथम (730 – 760 ईस्वी): 
प्रतिहार वंश के विस्तार की नींव, नागभट्ट प्रथम ने रखी थी, जिन्होंने, 730-756 ईस्वी के बीच, शासन किया। उनका शासन, अरबों के साथ, उनके सफ़ल मुक़ाबले के कारण, प्रमुख था। जब खिलाफ़त का प्रचार किया जा रहा था, तब उन्होंने अरबों को हराया। नागभट्ट प्रथम ने, गुजरात से लेकर, ग्वालियर तक, एक साम्राज्य स्थापित किया, और सिंध के पूर्व में, अरब आक्रमणों को चुनौती दी। उन्होंने, राष्ट्रकूट शासक – राजा दंतिदुर्ग के विरुद्ध भी युद्ध किया था। हालांकि, इस युद्ध में, वे पराजित हुए।
2.) नागभट्ट द्वितीय (800 – 833 ईस्वी): वत्सराज के उत्तराधिकारी, नागभट्ट द्वितीय ने, सिंध, आंध्र एवं विदर्भ पर विजय प्राप्त करके, प्रतिहार साम्राज्य की, खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित किया। ध्रुव द्वारा वत्सराज की पराजय के बाद, प्रतिहार साम्राज्य, केवल राजपूताना वंश तक ही सीमित रह गया। अतः नागभट्ट द्वितीय ने, इस साम्राज्य की विजय और विस्तार की नीति को पुनर्जीवित किया। उन्होंने आंध्र, सैंधव, विदर्भ और कलिंग के शासकों को हराया। उन्होंने उत्तर में, मत्स्यस, पूर्व में वत्सस और पश्चिम में तुरुस्का (मुसलमानों) को भी अपने अधीन कर लिया। साथ ही, उन्होंने कन्नौज पर आक्रमण किया, और चक्रायुध को पराजित कर, उस पर भी कब्ज़ा कर लिया।
3.) भोज प्रथम / मिहिर भोज (836 – 885 ईस्वी): सबसे प्रसिद्ध प्रतिहार राजा, भोज थे। वे नागभट्ट द्वितीय के पोते थे। प्रतिहार राजवंश के इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय, मिहिरभोज के राज्यारोहण से प्रारंभ होता है। 836 ईस्वी में, मिहिरभोज गद्दी पर बैठे थें। उन्होंने, 46 वर्षों से अधिक समय तक शासन किया। उन्होंने, अपने पूर्वजों से विरासत में मिले साम्राज्य को पुनर्गठित और सुदृढ़ किया, और राजवंश के लिए, समृद्धि के युग की शुरुआत की।
4.) महेंद्रपाल (885 – 910 ईस्वी): उन्होंने, प्रतिहार साम्राज्य के विस्तार में, महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो नर्मदा के पार, उत्तर में हिमालय तक, पूर्व में बंगाल तक, और पश्चिम में सिंध सीमा तक, फैला हुआ था। उन्हें. “आर्यावर्त के महाराजाधिराज” (उत्तरी भारत के महान राजा) की उपाधि दी गई थी। प्रसिद्ध संस्कृत कवि और आलोचक – राजशेखर, उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
5.) यशपाल (1024 – 1036 ईस्वी): यशपाल ने, प्रतिहार वंश के अंतिम शासक के रूप में पदभार संभाला। लगभग 1090 ईस्वी में, गंधवाल शासकों ने, कन्नौज पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा, राष्ट्रकूटों के विरुद्ध, विजय का जश्न मनाने के लिए, युवराज के दरबार में, राजशेखर के नाटक – विद्धाशलभंजिका का मंचन किया गया था।
कला और वास्तुकला में, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का काफ़ी योगदान रहा है। इस योगदान को महु-गुर्जर शैली के नाम से जाना जाता है । आइए, जानते हैं।
1.) महावीर जैन मंदिर, ओसियां, राजस्थान: महावीर जैन मंदिर, राजस्थान के जोधपुर ज़िले के ओसियां नामक शहर में बना है। यह ओसवाल जैन समुदाय का एक महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र है, जो पश्चिमी भारत का, सबसे पुराना जैन मंदिर है।
2.) बटेश्वर हिंदू मंदिर, मध्य प्रदेश: यह मंदिर, उत्तरी मध्य प्रदेश में, लगभग 200 बलुआ पत्थर के हिंदू मंदिरों और उनके खंडहरों का एक समूह है। इनका निर्माण, उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की, प्रारंभिक गुर्जर-प्रतिहार शैली में, किया गया था। ये मंदिर शिव, विष्णु और शक्ति को समर्पित है ।
3.) बारोली मंदिर, राजस्थान: यह मंदिर, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले के बारोली गांव में स्थित है। आठ मंदिरों का यह परिसर, एक चारदीवारी के भीतर स्थित है। इनका मंदिर का निर्माण, गुर्जर प्रतिहार वास्तुकला शैली में किया गया था । मुगल बादशाह – औरंगजेब ने, अपनी राजस्थान खोज के दौरान, हालांकि, इन्हें नष्ट कर दिया था।
4.) सिक्के: राजा मिहिर भोज ने, कई सिक्के जारी किए जिनमें बनी छवियां प्रसिद्ध हुईं। भोज के सिक्कों में, विष्णु के अवतार और सौर चिन्ह को दर्शाया गया था ।
जबकि, साहित्य में, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का, इस प्रकार योगदान था:
1.) राजशेखर: उनकी रचनाओं में, कर्पूरमंजरी, भृंजिका, विधासलभंजिका, प्रपंच पांडव, बाल-रामायण, बाल भारत, काव्यमीमांसा, भुवन कोष और हरविलास, आदि शामिल हैं।
2.) सुलेमान: उन्होंने, अपने लेखों में, उल्लेख किया है कि, भोज के पास, असंख्य सेनाएं थीं। किसी अन्य भारतीय राजा के पास, इतनी अच्छी घुड़सवार सेना नहीं थी।
भोज के बारे में, सुलेमान द्वारा लिखित, पुस्तक में अतिरिक्त जानकारी इस प्रकार थी:
A. उनके पास धन था, और बहुत से ऊंट और घोड़े भी थे ।
B. उनके राज्यों में, चांदी और सोने का आदान-प्रदान होता था।
C. भारतवर्ष में, प्रतिहार राजवंश के अलावा, लुटेरों से अधिक सुरक्षित, कोई अन्य दूसरा राज्य नहीं था ।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4c792j4b
https://tinyurl.com/rdmxbync
https://tinyurl.com/mr24tc86
https://tinyurl.com/5en59zt7

चित्र संदर्भ
1. गुर्जर–प्रतिहार वंश के विस्तार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अक्षरधाम मंदिर नई दिल्ली के भरत उपवन में राजपूत सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नागभट्ट द्वितीय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गुर्जर राजा मिहिर भोज की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. महावीर जैन मंदिर, ओसियां, राजस्थान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गुर्जर राजा मिहिर भोज महान के सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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