आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में

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आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में
2022 में, मेरठ के निकट बुलंदशहर के सरकारी स्कूलों के लगभग 2,000 छात्रों ने 'मिशन प्लेटिनम (Mission Platinum)' नामक एक अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधि में भाग लिया था। इस कार्यक्रम का आयोजन ब्रिटिश उच्चायोग (British High Commission), लास कम्पान्या वेधशाला (Las Campanas Observatory) और स्थानीय प्रशासन द्वारा किया गया था। इसे दुनिया का सबसे बड़ा खगोल विज्ञान पाठ माना गया। जब भी, हम खगोल विज्ञान की बात करते हैं, तो "स्थलीय ग्रह (Terrestrial Planet)" शब्द कई बार हमसे टकराता है। स्थलीय ग्रह, हमारी पृथ्वी से बेहद मिलते जुलते हैं। इनकी संरचना और बनावट भी पृथ्वी जैसी ही होती है। इन्हें 'टेल्यूरिक ग्रह (Telluric Planet)' या 'चट्टानी ग्रह (Rocky Planet)' भी कहा जाता है। आज के इस लेख में, हम स्थलीय ग्रहों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करेंगे। सबसे पहले, हम बुध (Mercury) और शुक्र (Venus) के भूभागों का विश्लेषण करेंगे। इसके बाद, TRAPPIST-1 नामक सात ग्रहों के समूह के भूभागों की जांच की जाएगी। अंत में, यह स्पष्ट किया जाएगा कि अधिकांश आंतरिक ग्रह (Inner Planets), चट्टानी क्यों होते हैं, और बृहस्पति और शनि जैसे बाहरी ग्रह (Outer Planets) गैसीय क्यों होते हैं?
"स्थलीय" शब्द लैटिन के "टेरा" से लिया गया है, जिसका अर्थ "पृथ्वी" होता है। स्थलीय ग्रहों का निर्माण, सिलिकेट चट्टानों या धातुओं से होता है। इन ग्रहों में आमतौर पर धातु का एक कोर होता है, जो मुख्यतः लोहे से बना होता है। इनमें एक सिलिकेट मैंटल (Silicate Mantle) होता है। इनकी सतहों पर पहाड़, घाटियाँ और क्रेटर भी होते हैं। विशाल ग्रहों के विपरीत, स्थलीय ग्रहों में एक द्वितीयक वायुमंडल होता है। इनके पास अपने स्वयं का बहुत कम या कोई भी उपग्रह नहीं होता। उदाहरण के लिए: पृथ्वी के पास, केवल एक उपग्रह है, मंगल के पास दो उपग्रह हैं, जबकि बुध और शुक्र के पास एक भी उपग्रह नहीं है।
स्थलीय ग्रह दो प्रकार के होते हैं:
1. सौर स्थलीय ग्रह (Solar Terrestrial Planet)।
2. बाह्यग्रहीय सौर स्थलीय ग्रह (Exoplanetary Terrestrial Planet)।
हमारे सौर मंडल के पहले चार ग्रह (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल) सौर स्थलीय ग्रह हैं। इनमें बुध सबसे छोटा ग्रह है, जबकि शुक्र सबसे गर्म ग्रह है। इन सभी में हमारी पृथ्वी, सबसे बड़ा सौर स्थलीय ग्रह है। यह एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसमें सक्रिय जलमंडल मौजूद है। इसके अलावा हमारे सौर मंडल के बाहर भी, कुछ बाह्यग्रहीय सौर स्थलीय ग्रह पाए जाते हैं। ये ग्रह विशाल होते हैं और इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आकाशगंगा में अरबों सौर-पृथ्वी ग्रह हो सकते हैं। 2005 से, कई सौर-पृथ्वी ग्रहों की खोज की गई थी।
चलिए अब कुछ दिलचस्प स्थलीय ग्रहों के भूभाग यानी सतह के बारे में जानते हैं:
बुध का भूभाग: बुध हमारे सौर मंडल का सबसे छोटा स्थलीय ग्रह है। इसका आकार, पृथ्वी के आकार का लगभग एक तिहाई है। बुध ग्रह का वायुमंडल पतला है। सूर्य से करीब होने के कारण, यहाँ पर तापमान भी बहुत अधिक होता है। इसके अलावा बुध एक घना ग्रह भी है। यह ग्रह मुख्यतः लोहे और निकल से बना है। इसका कोर लोहे का है। इसका चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का केवल 1% है। बुध के पास कोई उपग्रह भी नहीं है। इसकी सतह पर कई गहरे गड्ढे हैं। यह ग्रह छोटे सिलिकेट कणों (Silicate Particles) की एक पतली परत से ढका हुआ है। बुध का पतला वायुमंडल और सूर्य से इसकी निकटता, इस ग्रह पर जीवन पनपने की संभावना को असंभव बना देती है।
शुक्र का भूभाग: शुक्र का आकार, लगभग हमारी पृथ्वी के आकार के बराबर ही है। इसका वायुमंडल, घने और विषैले कार्बन-मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide) से युक्त है। इस कारण, गर्मी इस ग्रह से बाहर नहीं निकल पाती है, जिस वजह से शुक्र सबसे गर्म ग्रह बन जाता है। शुक्र का भी कोई उपग्रह नहीं है। इसकी सतह का अधिकांश भाग, ज्वालामुखियों और गहरी घाटियों से भरा है। यहां की सबसे बड़ी घाटी, सतह पर 4,000 मील (लगभग 6,500 किलोमीटर) तक फैली हुई है। शुक्र के कुछ ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय हो सकते हैं। आज तक केवल कुछ ही अंतरिक्ष यान, शुक्र के घने वायुमंडल में घुसने के बाद वापस बचकर आ पाए हैं। केवल सबसे बड़े उल्कापिंड ही इसके वायुमंडल से सुरक्षित निकल पाते हैं। शुक्र पर भी जीवन पनपने की संभावनाएं बहुत कम हैं।
ट्रैपिस्ट-1 (TRAPPIST-1) के सात स्थलीय ग्रहों का भूभाग: 2017 में, नासा ने, ट्रैपिस्ट-1 नामक तारे के चारों ओर स्थित ग्रहों की खोज की घोषणा की। ये ग्रह पृथ्वी के आकार के सबसे बड़े ग्रह हैं। यह प्रणाली सात चट्टानी ग्रहों से मिलकर बनी है। इनमें से सभी की सतह पर पानी की उपस्थिति की संभावना है। यह खोज पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के लिए एक महत्वपूर्ण और रोमांचक उपलब्धि है।
सात चट्टानी ग्रहों में शामिल हैं:
ट्रैपिस्ट-1बी (TRAPPIST-1b): यह सबसे भीतरी ग्रह है। इसमें चट्टानी कोर होने की संभावना बहुत अधिक है। इसका वायुमंडल, पृथ्वी के वायुमंडल की तुलना में बहुत अधिक मोटा है। इसी वजह से यह ग्रह गर्म और घना हो सकता है।
ट्रैपिस्ट-1सी (TRAPPIST-1c): इस ग्रह में भी चट्टानी आंतरिक भाग होने की संभावना है। लेकिन इसका वायुमंडल, ट्रैपिस्ट-1बी की तुलना में पतला है।
ट्रैपिस्ट-1डी (TRAPPIST-1d): यह ग्रह, इस प्रणाली का सबसे हल्का ग्रह है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 30 प्रतिशत है। वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं जान पाए हैं कि इसका वायुमंडल कितना बड़ा है? यहाँ पर महासागर है? या यहाँ पर बर्फ़ की परत है?
ट्रैपिस्ट-1ई (TRAPPIST-1e): यह ग्रह, इस प्रणाली का एकमात्र ऐसा ग्रह है, जो पृथ्वी से थोड़ा अधिक घना है। इसका मतलब है कि इसमें पृथ्वी की तुलना में अधिक सघन लौह कोर (Dense Iron Core) हो सकता है। हालांकि, इसमें भी मोटा वायुमंडल, महासागर या बर्फ़ की परत नहीं है। इसकी चट्टानी संरचना, अन्य ग्रहों की तुलना में अधिक है। घनत्व और विकिरण के मामले में इसका आकार, पृथ्वी के सबसे निकटतम ग्रहों जैसा है।
ट्रैपिस्ट-1 एफ़, जी और एच (TRAPPIST-1f, g, and h): ये ग्रह, मेज़बान तारे से काफी दूर हैं। यदि वहां पर पानी होगा भी तो वह बर्फ़ के रूप में होगा। यदि इनका वायुमंडल पतला है, तो यहाँ पर पृथ्वी पर पाए जाने वाले भारी अणु, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide), की उपस्थिति की संभावना भी कम है। कुल मिलाकर, ट्रैपिस्ट-1 प्रणाली में मौजूद ग्रहों की संरचना और विशेषताएं उन्हें जीवन की संभावनाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण बना देती हैं।
आइए अब हमारे आज के अंतिम प्रश्न की पड़ताल करते हैं: आंतरिक ग्रह चट्टानी और बाहरी ग्रह गैसीय क्यों होते हैं?
इसका उत्तर, सूर्य से इन ग्रहों की दूरी में छिपा हुआ है। आंतरिक ग्रह, सूर्य के बहुत करीब स्थित हैं। इस कारण, यहाँ पर सौर विकिरण बहुत तीव्र होता है। सूर्य से आने वाली सौर हवा ने आंतरिक ग्रहों से अधिकांश हल्के तत्वों को उड़ा दिया। समय के साथ, इन ग्रहों पर केवल भारी पदार्थ ही रह गए। इसके अलावा आंतरिक ग्रहों के आकार ने भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छोटे आकार के कारण, इनका गुरुत्वाकर्षण भी कम होता है। इसी कारण, ये निकलने वाली गैसों को पकड़ या रोक नहीं सके।
आंतरिक ग्रहों के विपरीत, बाहरी ग्रह सूर्य से दूर होते हैं। इसलिए वे सौर हवा (solar wind) के प्रभाव से कम प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा, ये ग्रह बहुत बड़े हैं, जिससे उन्होंने अपने मूल वायुमंडल को बनाए रखा। आंतरिक ग्रहों ने केवल गैसों के निकलने और ज्वालामुखी गतिविधियों के माध्यम से एक द्वितीयक वायुमंडल का निर्माण कर दिया।
आंतरिक सौर मंडल में, क्षुद्रग्रह बेल्ट (Asteroid Belt) स्थित है, जो मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं (Orbits) के बीच है। यह एक डोनट के आकार का क्षेत्र है, जो ग्रहों के कणों से बना है। ये कण सौर मंडल के निर्माण के दौरान बचे हुए चट्टानी अवशेष हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/24v9ww8x
https://tinyurl.com/24v9ww8x
https://tinyurl.com/yb7lxf3m
https://tinyurl.com/27vc98vz
https://tinyurl.com/2225msru

चित्र संदर्भ
1. विविध ग्रहों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक सतही ग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ट्रैपिस्ट-1b नामक एक चट्टानी ग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शुक्र ग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ट्रैपिस्ट-1 के सात स्थलीय ग्रहों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. हमारे सौर मंडल के ग्रहों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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