वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन

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वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन
हमारे शहर मेरठ में, 795 मिलीमीटर औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार, वर्षा को मापने के लिए, कई देशों की मौसम विज्ञान एवं जल विज्ञान संस्थाएं, मुख्य रूप से, ‘रेन गेज(Rain gauge)’ या ‘ वर्षामापी’ नामक उपकरण का उपयोग करती हैं। ये गेज उपकरण, एक कीप में, वर्षा जल को इकट्ठा करते हैं। फिर, 0.1 या 1 मिलीमीटर, जैसे, किसी निश्चित स्तर तक पहुंचने पर, कीप के नीचे स्थित जल संग्रहक में, जमा होने वाली जल मात्रा को मापते हैं। तो आइए, आज वर्षा माप (Rain Measurement) के बारे में, विस्तार से चर्चा करते हैं। उसके बाद, हम वर्षा मापने वाले, वर्षामापी यंत्रों के बारे में बात करेंगे। हम उनके कार्यों और विभिन्न प्रकारों का भी पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम यह जानेंगे कि, पृथ्वी का अवलोकन करने वाले, उपग्रह या सैटेलाइट, वर्षा की भविष्यवाणी कर सकते हैं या नहीं। अंत में, हम भारत के उन स्थानों का पता लगाएंगे, जहां पूरे वर्ष सबसे अधिक वर्षा होती है।
वर्षा को, आमतौर पर, मिलीमीटर (मिमी) में, मापा जाता है। मौसम संबंधी टिप्पणियों में, इसे एक दशमलव स्थान के साथ, दर्ज किया जाता है। यह वर्षा की तीव्रता का, एक सीधा संकेतक प्रदान करता है।
एक सपाट सतह पर जमे, पानी की गहराई के रूप में, 1 मिमी वर्षा की कल्पना करते हैं। यह लगभग, एक वर्ग मीटर के समतल गिलास पर, 500 मिलीलीटर की, दो बोतलें पानी डालने के बराबर है। जबकि, 50 मिमी वर्षा के लिए, यह लगभग 100 बोतलें होंगी।
यदि हम, एक म्यू (666.7 वर्ग मीटर) के क्षेत्र पर विचार करें, तो, 1 मिमी बारिश का मतलब, लगभग 0.667 घन मीटर पानी है। इसका वज़न, लगभग, 667 किलोग्राम है, क्योंकि, 1 घन मीटर पानी का वज़न, 1000 किलोग्राम होता है। यह गणना की गई है कि, 5 मिमी वर्षा, सूखी मिट्टी को, 3 से 6 सेंटीमीटर तक संतृप्त कर सकती है।
24 घंटे की, विभिन्न तरह से होने वाली वर्षा की औसतन मात्रा, इस प्रकार, होती हैं–
- हल्की बारिश: 0.1-9.9 मिमी
- मध्यम वर्षा: 10.0-24.9 मिमी
- भारी बारिश: 25.0-49.9 मिमी
- तूफ़ानी बारिश: 50.0-99.9 मिमी
- भारी तूफ़ानी बारिश: 100.0-249.9 मिमी
- बहुत भारी व तूफ़ानी बारिश: 250.0 मिमी या इससे अधिक।
वर्षा को मापने के लिए, प्रयुक्त किए जाने वाले, वर्षामापी दो प्रकार के होते हैं। इनमें, गैर-रिकॉर्डिंग प्रकार, और, रिकॉर्डिंग करने वाला प्रकार शामिल हैं। वर्षामापी को, यूडोमीटर(Udometer), प्लुविओमीटर(Pluviometer) और ओम्ब्रोमीटर(Ombrometer) के नाम से भी, जाना जाता है । चलिए, जानते हैं।
वर्षामापी के प्रकार:
1.) गैर-रिकॉर्डिंग प्रकार वाले वर्षामापी(Non-Recording Type Rain Gauge):

इस प्रकार का, वर्षामापी, मौसम विभाग द्वारा उपयोग किया जाने वाला, सबसे सामान्य वर्षामापी है। इसमें, 127 मिलीमीटर व्यास वाला, एक बेलनाकार बर्तन होता है। इसका आधार, 210 मिमी व्यास तक, बढ़ा हुआ होता है। इसके शीर्ष भाग पर, कीप को, गोलाकार पीतल के किनारे के साथ, प्रदान किया गया होता है। यह, जल संग्राहक में, अच्छी तरह से, बैठ सके, इसलिए, इसका निर्माण, उपरोक्त तरीके से किया जाता है। इस कीप को, जल संग्राहक बोतल में डाला जाता है, जो आधार खंड से, 75 से 100 मिलिमीटर ऊंचा होता है। यह, सिलेंडर से पतला होता है, और, वर्षा जल प्राप्त करने के लिए, कीप को बोतल में रखा जाता है।
2.) रिकॉर्डिंग प्रकार वाले वर्षामापी(Recording Type Rain Gauges):
A.) वेइंग बकेट टाइप रेन गेज(Weighing Bucket Type Rain Gauge), सबसे आम, स्व-रिकॉर्डिंग वर्षामापी हैं । इसमें, जल संग्राहक होता है, जो स्प्रिंग(Spring) या लीवर बैलेंस(Lever balance), अथवा किसी अन्य वज़न तंत्र द्वारा समर्थित होता है। इसके बढ़ते वज़न के कारण, संग्राहक की गति, एक पेन तक बढ़ती है, जो घड़ी से चालित, चार्ट पर रिकॉर्ड या कुछ अंक का पता लगाती है। वेइंग बकेट टाइप वर्षामापी यंत्र से, बीते हुए समय के अनुसार, संचित वर्षा का ग्राफ़ मिलता है, और इस प्रकार, बने वक्र को, द्रव्यमान वक्र कहा जाता है।
B.) टिपिंग बकेट टाइप रेन गेज(Tipping Bucket Type Rain Gauge), यह अमेरिकी मौसम ब्यूरो द्वारा उपयोग के लिए अपनाया गया, 30 सेमी आकार का गोलाकार रेन गेज है। इसमें, 30 सेमी व्यास का, एक जल संग्राहक होता है, और संग्राहक के अंत में, एक कीप प्रदान किया जाता है। इस कीप के नीचे, संग्राहक के जोड़े को, इस प्रकार घुमाया जाता है कि, जब एक संग्राहक में, 0.25 मिमी वर्षा जल जमा होता है, तो यह, वह जल कंटेनर में छोड़ देता है, और दूसरे संग्राहक को कीप के नीचे ले आता है।
C.) फ़्लोटिंग या नैचुरल साइफ़न टाइप रेन गेज(Floating or Natural Syphon Type Rain Gauge), की कार्यप्रणाली, वेइंग बकेट रेन गेज के समान है। एक कीप में पानी प्राप्त होता है, जिसे एक आयताकार कंटेनर में एकत्र किया जाता है। कंटेनर के तल पर, एक तैरने वाला भाग प्रदान किया जाता है, और कंटेनर में पानी का स्तर बढ़ने पर, यह ऊपर उठ जाता है। इसकी गति को, एक रिकॉर्डिंग ड्रम पर घूम रहे, एक पेन द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है, जो एक घड़ी की कार्यप्रणाली से संचालित होता है।
वर्षामापी के अलावा, वर्षा का अवलोकन, कुछ अन्य तरीकों से भी किया जाता है।
इसी कारण, प्रश्न उठता है कि, क्या पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के माध्यम से, वर्षा को मापा जा सकता है?
ज़मीन-आधारित उपकरण, वर्षा को सीधे माप सकते हैं, या अनुमान लगा सकते हैं कि, ज़मीन पर कितनी वर्षा होती है। उपग्रह उपकरण, विद्युत चुंबकीय विकिरण (या ऊर्जा) की मात्रा का अनुमान लगाते हैं, जो या तो बादलों के शीर्ष से, या बारिश की बूंदों से उत्सर्जित या प्रतिबिंबित होते हैं। अंतरिक्षयान रडार(Spaceborne radar) उपकरण, वर्षा की त्रि-आयामी संरचना का भी निरीक्षण कर सकते हैं। इस तरह के उपग्रह अवलोकन, इतने विस्तृत होते हैं कि, वैज्ञानिकों को बारिश, बर्फ़ और अन्य वर्षा प्रकारों के बीच अंतर करने के साथ-साथ, तूफ़ानों की संरचना, तीव्रता और गतिशीलता का निरीक्षण करने की भी अनुमति देते हैं ।
भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान निम्नलिखित हैं:
1.) मौसिनराम, मेघालय: 
मौसिनराम में, मानसून के मौसम के दौरान, औसतन लगभग 11,000 मिमी वर्षा होती है। हर साल, इस गांव में लगातार बारिश होती है, और भूस्खलन यहां एक आम दृश्य है। इसलिए, निवासी अपने घरों के लिए, वर्षा ढाल बनाने हेतू, बांस की खपच्चियों और प्लास्टिक शीटों का उपयोग करते हैं। इससे, कुनप बनाके , वे भारी बारिश और खराब मौसम के लिए, खुद को तैयार करते हैं।
2.) चेरापूंजी, मेघालय: मौसिनराम की तरह, चेरापूंजी भी खासी पहाड़ियों पर स्थित है, और हर साल उच्च स्तर की बारिश का अनुभव करता है। पहाड़ियों में, दो घाटियों के संगम पर स्थित चेरापूंजी में, लगभग 11,610 मिमी वर्षा होती है। हर साल, चेरापूंजी क्षेत्र में मानसून देखने के लिए, पूरे भारत और विदेशों से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
3.) अगुम्बे, कर्नाटक: अगुम्बे को, भारत के सबसे नम स्थानों में से एक होने का खिताब प्राप्त है। इसलिए, इसे ‘दक्षिण का चेरापूंजी’ उपनाम मिला है। भारत के कुछ अंतिम जीवित वर्षा वनों में से एक में स्थित, इस छोटे से गांव में, सालाना 7,000 मिमी वर्षा होती है। इस गांव की आबादी, लगभग 500-600 लोगों की विरल है।
4.) महाबलेश्वर, महाराष्ट्र: वर्षा के मामले में, महाबलेश्वर में, हर साल लगभग 5,600 मिमी वर्षा होती है। भारत के अन्य सबसे अधिक वर्षा वाले शहरों के विपरीत, जहां कुछ दिनों तक, लगातार वर्षा होती है, महाबलेश्वर में, पूरे मानसून के मौसम में लगातार वर्षा होती है। अपने समृद्ध प्राकृतिक वनों के अलावा, महाबलेश्वर में, घूमने के लिए कई अद्भुत जगहें हैं, जो मानसून में, आपकी इस शहर की यात्रा को एक समृद्ध अनुभव बनाते हैं।
5.) अंबोली, महाराष्ट्र: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, महाराष्ट्र का एक और हिल स्टेशन, भारत में सबसे अधिक वर्षा वाले शीर्ष सात स्थानों की सूची में, जगह बनाता है। ‘धुंध का स्वर्ग’ नाम से मशहूर, अंबोली, सह्याद्री पहाड़ियों पर, लगभग 690 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पहाड़ी शहर में, हर साल लगभग 7,500 मिमी बारिश होती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc3dmzy8
https://tinyurl.com/yc4bspss
https://tinyurl.com/69vunet8
https://tinyurl.com/bhsuza5m

चित्र संदर्भ
1. वर्षामापी और बारिश के मौसम के प्राकृतिक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr, प्रारंग चित्र संग्रह)
2. खेतों में लगे वर्षामापी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रिकॉर्डिंग प्रकार वाले वर्षामापी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कोलकाता में बारिश के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
5. मेघालय की एक घाटी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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