जिज्ञासा एवं खोज की देन हैं मानवता की यह सबसे बड़ी चिकित्सा उपलब्धियां

कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
18-07-2024 09:43 AM
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जिज्ञासा एवं खोज की देन हैं  मानवता की यह सबसे बड़ी चिकित्सा उपलब्धियां
मेरठ, क्या आप जानते हैं की जो दवाइयां और चिकित्सा शैलियाँ हमें स्वस्थ रखती हैं, वह कुछ महान व्यक्तियों के वर्षों के परिश्रम का फल है।
आधुनिक युग में मानव ने विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह सब मानवीय जिज्ञासा एवं उस जिज्ञासा के परिणाम स्वरुप उसके द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों एवं खोजों का परिणाम है। प्राचीन काल से ही, धरती से लेकर आसमान तक और स्वयं मानवीय शरीर से लेकर छोटे से बड़े जीव जंतुओं एवं पेड़ पौधों तक, प्रत्येक वस्तु ने मानव को अपनी ओर आकर्षित किया है, और इस आकर्षण से प्रेरित होकर मानव ने इन सभी के विषय में जानने के लिए गहन शोध एवं खोज की है।
जिसका परिणाम यह रहा है कि आज मनुष्य ने धरती पर रहते हुए भी आसमान में अपनी मौजूदगी दर्ज कर दी है। अन्य सभी वस्तुओं के समान ही, शुरुआत में कोई भी बीमारी मनुष्य के लिए समान मात्रा में भय और आकर्षण का विषय रही है। और इसी आकर्षण ने मनुष्य  में बीमारियों के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न की और खोज और शोध की ओर प्रेरित किया। मनुष्य द्वारा की गई प्रत्येक क्रांतिकारी चिकित्सा खोज ने हमें बीमारी और चिकित्सा के जटिल रहस्यों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम करीब ला दिया है। परिणामस्वरूप, आज हम ऐसे चिकित्सीय उपचार विकसित करने में सक्षम हो गए हैं, जिनकी सहायता से आज हम लाखों लोगों की जान बचाने में सक्षम हो गए हैं। पूरे इतिहास में, चिकित्सा प्रगति, विशेष रूप से 19वीं और 20वीं शताब्दी में, ने चिकित्सकों के बीमारी को समझने, निदान करने और इलाज करने के तरीके में क्रांति ला दी है। इन प्रगतियों ने सीधे तौर पर वैश्विक जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण वृद्धि में योगदान दिया है। तो आइए, आज के लेख में सबसे बड़ी चिकित्सा उपलब्धियों, जिन्होंने मानवता के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान दिया है, के बारे में जानते हैं कि ये चिकित्सा प्रगति कैसे और किसके द्वारा अस्तित्व में आई और कैसे इन्हें विश्व स्तर पर अपनाया गया।
1. टीके (Vaccines): टीकों की यात्रा बेहद लंबी और जटिल रही है। पहला सफल टीका चेचक का था, जिसे 1796 में एडवर्ड जेनर द्वारा पेश किया गया था। उन्होंने देखा कि जिन दूधियों को पहले गोशीतला (Cowpox) हुआ था, वे चेचक की चपेट में आने से बचते दिखे, जिससे उनके मन में रोगाणु के कम खतरनाक या मृत हिस्से के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने का विचार आया। चेचक मानव जाति के लिए अब तक ज्ञात सबसे घातक बीमारियों में से एक थी, 19वीं शताब्दी में अनुमानित 300-500 मिलियन लोगों ने इस बीमारी से अपनी जान गंवाई थी।  19 वीं शताब्दी और 20 वीं शताब्दी  की शुरुआत में, चेचक के साथ-साथ रेबीज, तपेदिक और हैजा सहित दुनिया की कुछ सबसे घातक बीमारियों से निपटने के लिए विभिन्न टीके बनाए गए। टीकाकरण के माध्यम से,  200 वर्षों के दौरान, ज्ञात सबसे घातक बीमारियों में से एक चेचक को पृथ्वी से लगभग पूरी तरह मिटा दिया गया। तब से, वस्तुतः सभी टीकों में एक ही अवधारणा का उपयोग किया जाता है। हालांकि अब एक नई तकनीक, जिसे mRNA कहा जाता था, ने स्वास्थ्य सेवा के भविष्य के लिए  अद्भुत संभावनाएं पैदा कीं। इसकी उच्च प्रभावशीलता,  तेज़ी से विकास की   और कम उत्पादन लागत की क्षमता से कोविड-19 महामारी के दौरान दो अलग-अलग mRNA टीके विकसित किए गए   जोकि कुछ ही महीनों में उपयोग के लिए अनुमोदित किए गए। इन टीकों की प्रभावितशीलता तो दुनिया ने देखी ही।
2. एनेस्थीसिया (Anesthesia): 19वीं शताब्दी के मध्य में सामान्य एनेस्थीसिया के पहले प्रयोग से पहले, सर्जरी केवल अंतिम उपाय के रूप में की जाती थी, जिसमें कई मरीज़ कष्टदायी पीड़ा को सहन करने के बजाय मौत का विकल्प चुनते थे। हालाँकि, 4000 ईसा पूर्व के एनेस्थीसिया प्रयोग के अनगिनत प्रयोगों के साक्ष्य भी मिले थे, लेकिन 1846 में विलियम टी.जी. मॉर्टन (William T. G. Morton) ने तब इतिहास रच दिया, जब उन्होंने सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया के रूप में ईथर (ether) का सफलतापूर्वक उपयोग किया। इसके तुरंत बाद, क्लोरोफॉर्म (chloroform) नामक एक तीव्र गति से कार्य करने वाले पदार्थ का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा, लेकिन इसके उपयोग से कई मौतों की सूचना मिलने के बाद इसे उच्च जोखिम वाला पदार्थ माना गया।  दिन प्रतिदिन, सुरक्षित एनेस्थेटिक्स के उत्पादन पर पूरे विश्व में अनुसंधान चल रही है |  
3. एंटीबायोटिक्स (Antibiotics): एंटीबायोटिक दवाओं की खोज चिकित्सा इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण प्रगति में से एक है। उनकी खोज भी एक दिलचस्प घटना के दौरान तब हुई, जब 1928 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) छुट्टियों से घर लौटे थे और उन्होंने अपने कार्यस्थल पर एक पेट्री डिश देखी, जो फफूंद से भरी हुई थी, जो न केवल पनप रही थी, बल्कि बैक्टीरिया के विकास को भी सीमित कर रही थी। फ्लेमिंग की इस खोज का वास्तविक महत्व एक दशक से भी अधिक समय बाद तब स्पष्ट हुआ, जब 1940 में फफूंद में सक्रिय पदार्थ पेनिसिलिन (penicillin) को अलग कर दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध के घावों के उपचार में एंटीबायोटिक से अनुमानित 200,000 सैनिकों की जान बचाई गई, जिससे इसकी प्रभावशीलता तुरंत स्पष्ट हो गई। पेनिसिलिन आज भी जीवाणु संक्रमण के लिए प्राथमिक उपचार बना हुआ है और इसने कई अन्य एंटीबायोटिक दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। संक्रामक रोगों के उपचार के अलावा, एंटीबायोटिक दवाओं के अस्तित्व से ओपन-हार्ट सर्जरी, अंग प्रत्यारोपण और कीमोथेरेपी जैसी प्रक्रियाएं वास्तविकता बन सकीं हैं। 
4. एक्स-रे और मेडिकल इमेजिंग (X-rays and Medical Imaging): मेडिकल इमेजिंग के आगमन से पहले, चिकित्सक बीमारियों के निदान के लिए स्पर्श, अवलोकन और रोगी के लक्षणों के विवरण पर भरोसा करते थे। 1896 में विलियम कॉनराड रोएंटजेन (William Conrad Roentgen) द्वारा एक्स-रे की खोज ने विद्युत धाराओं और 'ग्लास कैथोड-रे ट्यूबों' (glass cathode-ray tubes) के साथ उनके प्रयोग के आधार पर नैदानिक चिकित्सा में क्रांति ला दी। निदान प्रक्रिया में उनकी खोज की क्षमता को मान्यता देते हुए ग्लासगो अस्पताल ने सिर्फ एक साल बाद ही अपना पहला रेडियोलॉजी विभाग खोला। अल्ट्रासाउंड में एक छवि बनाने के लिए उच्च-आवृत्ति ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। 1956 में, चिकित्सा क्षेत्र में अल्ट्रासाउंड की उपयोगिता को मान्यता मिली और इसे प्रसवपूर्व निगरानी और श्रोणि और पेट की स्थितियों का पता लगाने में विशेष रूप से उपयोगी पाया गया। इस खोज के बाद 1967 में कंप्यूटेड टोमोग्राफी (Computed Tomography (CT) और 1973 में मैग्नेटिक  रेज़ोनेंस  इमेजिंग (Magnetic Resonance Imaging (MRI) की शुरुआत की गई। जैसे-जैसे तकनीक उन्नत हुई है, वैसे-वैसे ये उपकरण भी विकसित होते गए हैं। चिकित्सा पेशेवर अब शरीर के अंदर क्या हो रहा है इसकी विस्तृत छवियां प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें अब शरीर के अंदर रसौली, ट्यूमर और अन्य असामान्यताओं जैसी स्थितियों का आत्मविश्वास से निदान करने की अनुमति मिलती है। आंतरिक संरचनाओं और अंगों को देखने की क्षमता से मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, यकृत और गुर्दे की कई विषम स्थितियों के शीघ्र निदान और उपचार के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है।
5. रोगाणु सिद्धांत (Germ theory): क्या आप जानते हैं कि लोगों को यह स्वीकार करने में 19वीं सदी तक का समय लग गया कि बीमारियां रोगाणुओं के कारण होती हैं? 1844 में एनेस्थेटिक्स की शुरूआत के बाद डॉक्टर लंबी और अधिक जटिल प्रक्रियाओं का प्रयास कर रहे थे। हालाँकि, सर्जरी के बाद मृत्यु दर के साथ-साथ संक्रमण दर भी बढ़  रहा था, जिससे प्रगति सीमित हो गई थी, क्योंकि वैज्ञानिकों के पास इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि संक्रमण किस कारण से हो रहा था। फिर 1861 में फ्रांसीसी सूक्ष्म जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने रोगाणु सिद्धांत विकसित किया, जिन्होंने साबित किया कि वाइन का किण्वन और दूध का खट्टा होना जीवित सूक्ष्मजीवों के कारण होता है। इसके साथ ही, 'ग्लासगो विश्वविद्यालय' (Glasgow University) में सर्जरी के प्रोफेसर, जोसफ लिस्टर (Joseph Lister) ने सर्जरी में रोगाणु सिद्धांत लागू किया। 1865 में, लिस्टर ने सर्जरी में एंटीसेप्टिक सिद्धांत पेश किया, सर्जरी के दौरान और बाद में घावों में संक्रमण को रोकने का एक तरीका प्रदान करके इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। इससे ऑपरेशन के बाद संक्रमण और मौतों में भारी गिरावट आई। आज, सर्जरी कई स्वास्थ्य स्थितियों के लिए एक व्यापक उपचार है और एंटीसेप्टिक सिद्धांतों के बिना, अगर संक्रमण शरीर में प्रवेश कर जाता है तो सबसे छोटी प्रक्रिया भी घातक हो सकती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2s3vh4an
https://tinyurl.com/mnd5n435
https://tinyurl.com/mc6hma78

चित्र संदर्भ
1. अपने बच्चे को टीके लगवाती एक भारतीय महिला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. टीका लगवाते भारतीय सैनिक को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. एनेस्थीसिया को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. एंटीबायोटिक्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक्स-रे और मेडिकल इमेजिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रोगाणुओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
 
 
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