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प्राचीन भारतीय साहित्य में मेंढकों का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वेदों और उपनिषदों में मेंढकों का वर्णन देखने को मिलता है, जो उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। मेंढक के लिए संस्कृत शब्द 'मंडुका' का प्रयोग किया गया है। 'मांडूक्य उपनिषद' का शीर्षक 'मांडूक्य' इसी से लिया गया है। मेंढकों के नाम पर उपनिषद क्यों है? यह सवाल कई बार उठता है। प्राचीन ग्रंथ ॐ का उच्चारण के माध्यम से हमें मेंढक की भांति हमारी चेतना के पहले स्तर से चौथे स्तर पर छलांग लगाने की शिक्षा देते हैं।
मेंढकों का वैदिक साहित्य में उल्लेख
ऋग्वेद, जो कि सबसे प्राचीन वेद माना जाता है, में भी मेंढकों का उल्लेख मिलता है। मंडल 7, सूक्त 103 में मेंढकों के माध्यम से वर्षा की स्तुति की गई है। इसमें मेंढकों की टर्राने की आवाज को वर्षा का आह्वान माना गया है। श्लोक में कहा गया है कि कैसे वर्षा के देवता पर्जन्य सूखे हुए मेंढकों को पुनर्जीवित करते हैं, उन्हें फूलाते हैं और वे टर्राने लगते हैं। इस वर्णन में, मेंढकों की आवाज की तुलना ब्राह्मण पुत्रों के मंत्रोच्चारण से की गई है। जैसे ब्राह्मण पुत्र अपने पिता के कहे अनुसार ही दोहराते हैं, और जैसे पुजारी सोम अनुष्ठानों में भजन गाते हैं, वैसे ही मेंढक टर्राते हैं।
मांडूक्य उपनिषद और मेंढक
'मांडूक्य उपनिषद' में मेंढक के नाम का प्रयोग प्रतीकात्मक रूप में किया गया है। यह उपनिषद हमें 'ॐ' के उच्चारण के माध्यम से चेतना के विभिन्न स्तरों का ज्ञान कराता है। यह चेतना के चार स्तरों – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और तुरीय – को समझाने के लिए मेंढक के कूदने की क्रिया का उदाहरण देता है। जैसे मेंढक एक अवस्था से दूसरी अवस्था में कूदता है, वैसे ही मनुष्य की चेतना एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाती है।
कथा सरिता सागर और मेंढक
ईजे ब्रिल (E.J. Brill) की 1971 में आई किताब 'प्लांट मिथ्स एंड ट्रेडिशन्स इन इंडिया' (Plant Myths and Traditions in India) में 11वीं सदी की लोक कथाओं के संग्रह 'कथा सरिता सागर' से एक कहानी बताई गई है, जिसमें बताया गया है कि मेंढकों को उनकी कर्कश आवाज़ कैसे मिली। इस कहानी में एक बार देवताओं ने अग्नि देव से मदद मांगी ताकि वे शिव और उमा के बीच प्रेम-क्रीड़ा को रोक सकें, जिससे दुनिया के नष्ट होने का खतरा था। अग्नि देव, हस्तक्षेप करने के बजाय डरकर भाग गए और पानी में छिप गए |, लेकिन गर्मी से झुलस रहे मेंढकों ने देवताओं को अग्नि देव के ठिकाने के बारे में बता दिया। अग्नि देव ने मेंढकों को श्राप दिया और उनकी वाणी को अस्पष्ट कर दिया, जिस कारण मेंढक टर्टाने लगे।
मेंढकों का प्राचीन भारत की संस्कृति में स्थान
भारत भर के विभिन्न राज्यों के कृषि समुदायों में, यह दृढ़ विश्वास है कि दो मेंढकों के बीच विवाह समारोह आयोजित करने से वर्षा के देवता इंद्र प्रसन्न होते हैं। सूखे के समय में बारिश लाने के लिए इस तरह की शादियों के आयोजन किए जाते हैं। 2016 में, अच्छी बारिश की उम्मीद में असम में एक मादा मेंढक और बांस की कठपुतली के बीच एक पूरा विवाह समारोह आयोजित किया गया था। यह आयोजन इस बात का प्रतीक है कि मेंढक भारतीय समाज और संस्कृति में कितने महत्वपूर्ण हैं।
मेंढकों की बहुतायत एक स्वस्थ, स्वच्छ पर्यावरण का प्रतीक है। वे बेहद संवेदनशील होते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी बदलाव, उदाहरण के लिए, पानी का पीएच स्तर, मेंढकों की आबादी के लिए ख़तरा है। इसीलिए, मेंढकों की उपस्थिति को एक स्वस्थ पर्यावरण का सूचक माना जाता है।
मेंढ़क और सांप की कहानी का उद्गम
पंचतंत्र का परिचय
पंचतंत्र की कहानियाँ भारतीय साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यह कहानियाँ तीसरी सदी ईसा पूर्व के समय की हैं जिन्हें विष्णु शर्मा ने लिखा था। पंचतंत्र का मतलब है पांच उपदेश या अध्याय और यह छोटी कहानियों का संग्रह है जिसमें जानवर इंसानों की तरह सोच और बोल सकते हैं। पंचतंत्र पांच सिद्धांतों पर आधारित है; मित्रों की हानि, मित्र बनाना, मित्रों के बीच असहमति पैदा करना, अलगाव, और मिलन।
पंचतंत्र मूल रूप से संस्कृत में लिखी गयी थी, और इसे लिखने का कारण एक राजा के तीन मंद-बुद्धि पुत्रों को शिक्षित करना था। उन दिनों इन कहानियों का मुख्य उद्देश्य राजकाज के सिद्धांतों को बताना और अन्य मूल्यवान जीवन पाठ पढ़ाना था। पंचतंत्र का अनुवाद दो सौ से अधिक बार पचास अलग-अलग भाषाओं में किया गया है।
पंचतंत्र में मेंढ़क की कहानी
कहानी एक मेंढ़क राजा, गंगादत्त, के साथ शुरू होती है, जो अपने परिवार और प्रजा के साथ एक कुएँ में रहता है। लेकिन राजा को अपने कुछ रिश्तेदारों से लगातार परेशानी होती रहती है जो उसकी गद्दी छीनना चाहते हैं। अपने सभी दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए, मेंढ़क राजा कुएँ से बाहर जाने का फैसला करता है जबकि उसकी पत्नी उसे सावधान रहने और अपने दुश्मनों को नुकसान न पहुंचाने की सलाह देती है। मेंढ़क राजा फिर एक सांप, प्रियदर्शन, से मिलता है जिसके साथ वह अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए साझेदारी करता है। सांप चकित हो जाता है क्योंकि मेंढ़क कभी सांपों से दोस्ती नहीं करते, क्योंकि यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि सांप मेंढ़कों को खा जाते हैं।
मेंढ़क राजा सांप को कुएँ में ले जाने और अपने दुश्मन मेंढ़कों को खिलाने की योजना समझाता है, जिसमें मेंढ़क राजा का परिवार शामिल नहीं होगा। सांप इस योजना से सहमत हो जाता है क्योंकि उसे आसानी से भोजन मिल रहा है और वह कुएँ में चला जाता है। राजा, सांप को हर दिन एक मेंढ़क देने लगता है और वह राजा के सभी दुश्मनों को एक-एक करके खा जाता है जब तक कि केवल राजा और उसका परिवार बचे रहते हैं | सांप उन्हें भी खाने लगता है। अब तक मेंढ़क राजा को एहसास हो चुका होता है कि उसने बदला लेने के लिए सांप को चुनने में गलती की है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
अंत में, केवल मेंढ़क राजा और उसकी पत्नी, रानी मेंढ़क, कुएँ में जीवित रहते हैं। सांप कहता है कि उसे उन्हें भी खाना पड़ेगा। राजा एक और योजना बनाता है और सांप से कहता है कि उन्हें न खाए, बल्कि वह पास के अन्य कुओं और तालाबों से मेंढ़कों को इकट्ठा करेगा और सांप को खाने के लिए देगा। सांप सहमत हो जाता है और मेंढ़क राजा और रानी कूदकर दूर चले जाते हैं, और कभी कुएँ में वापस नहीं आते।
संदर्भ :
https://t.ly/bGzXV
https://t.ly/cMC1D
चित्र संदर्भ
1. छत्तीसगढ़ के मदकू द्वीप में मांडूक्य ऋषि स्मारक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ऋग्वेद के एक पृष्ठ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. मांडूक्य उपनिषद के एक पृष्ठ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. दो मेंढकों को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
5. एक चित्र में जानवरों के साथ मेंढक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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