क्या केवल अंग्रेजी सीख लेने से मिल जाएगा मेरठ के युवाओं को रोज़गार?

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क्या केवल अंग्रेजी सीख लेने से मिल जाएगा मेरठ के युवाओं को रोज़गार?

हमारे मेरठ शहर को अपने हस्तशिल्प उद्योग की वजह से पूरे भारत में विशेष पहचान हासिल है। कांच से लेकर खेल के उत्पादों और कैंची जैसी दैनिक उपयोग की कई वस्तुओं को बनाने में मेरठ के होनहार कारीगरों के सामने टिकना आसान नहीं है। हालांकि इन उद्योगों की मौजूदगी के बावजूद मेरठ की युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगारी की मार झेल रहा है। आधुनिक समय की नौकरियों में आवेदन करने के लिए इन युवाओं को तकनीक और अंग्रेजी जैसी भाषाओँ के साथ सहज होना पड़ेगा। इसके अलावा भी मेरठ सहित देशभर के युवाओं को नौकरी पाने के लिए कई बाधाएं पार करनी पड़ती हैं, जिनके बारे में आज हम विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे। अंग्रेजी, दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, और भारत में इसका बहुत अधिक महत्व है। 1.3 बिलियन लोगों की आबादी वाले भारत में कई अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन अंग्रेजी यहाँ के बहुभाषी लोगों को एकजुट रखती है। भारतीय संविधान, 22 से अधिक भाषाओं को मान्यता देता है, लेकिन अंग्रेजी को एक "आवश्यक कौशल" माना जाता है और यह भारतीय शिक्षा प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और व्यवसाय के संदर्भ में भी अंग्रेजी बहुत महत्वपूर्ण साबित होती है। जैसे-जैसे वैश्वीकरण बढ़ा है, वैसे-वैसे भारत की अर्थव्यवस्था भी खुली है, जिससे अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की ज़रूरत बढ़ गई है। अंग्रेजी कौशल अच्छा होने से आईटी (IT), बीपीओ और केपीओ (BPO and KPO) जैसे उद्योगों में कैरियर (Career) के नए अवसर भी खुलते हैं। इन क्षेत्रों में उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए अक्सर मजबूत अंग्रेजी दक्षता की आवश्यकता होती है। अन्य देशों के कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ संवाद करने के लिए धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में काम करती हैं। हालांकि केवल अंग्रेजी का ज्ञान होने से भारत में बेरोज़गारी नहीं मिटने वाली भारत में बेरोजगारी का संकट किसी से छिपा नहीं है। भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 2022 में 15-29 आयु वर्ग के केवल 42% युवा ही कार्यबल का हिस्सा थे। वहीँ 30-59 आयु वर्ग के 62.4% लोग किसी न किसी तरह का रोजगार कर रहे थे। साल 2000 में यह भागीदारी 54% थी जो आज घटकर काफी कम हो गई है, जिसमें सबसे बड़ी गिरावट 15-19 आयु वर्ग में देखी गई है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए तत्काल अधिक रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। चीन और भारत दोनों ही बड़ी आबादी वाले देश हैं और दोनों ही देशों के युवा भयंकर बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। 2023 में, भारत की युवा बेरोजगारी दर (15-24 वर्ष की आयु) 18% थी, जो पाकिस्तान (10%) और बांग्लादेश (12.3%) जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में बहुत अधिक थी। चीन में भी 15.9% की दर के साथ एक समान समस्या थी। यदि आपको भारत में बेरोज़गारी के स्तर और कारणों को और अधिक बेहतर ढंग से समझना है तो आपको क्रेग जेफ़री (Craig Jeffery) द्वारा लिखी गई पुस्तक "टाइमपास (Timepass)" जरूर पढ़नी चाहिए। यह किताब इस बात की पड़ताल करती है कि प्रांतीय भारत में निम्न मध्यम वर्ग के जाट पुरुष बेरोज़गार युवाओं के रूप में अपने "अतिरिक्त समय" का किस तरह से इस्तेमाल करते हैं। जेफ़री युवाओं, मध्यम वर्ग, बेरोज़गारी और राजनीतिक कार्रवाई से जुड़े हालिया विचारों को चुनौती देते हैं। यह पुस्तक कई वर्षों के विस्तृत शोध के बाद लिखी गई है, जिसे पाँच अध्यायों और एक निष्कर्ष में विभाजित किया गया है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि इस पुस्तक को लिखने के लिए जेफ़री ने 1990 और 2000 के दशक के मध्य में हमारे मेरठ में ही किये गए सर्वेक्षण, टिप्पणियों और साक्षात्कारों का उपयोग किया हैं। पुस्तक के पहले अध्याय में, जेफरी "प्रतीक्षा" की अवधारणा का परिचय देते हैं। दूसरे अध्याय में, वे जाट समुदाय की पृष्ठभूमि की व्याख्या करते हैं तथा बताते हैं कि कैसे 1990 के दशक के मध्य तक शिक्षित जाट भी मेरठ में चाय की दुकानों पर समय बिताने लगे।
वे नौकरियों और शिक्षा के लिए दलितों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि निवेश से आय में विविधता लाने की ओर हुए बदलाव का विवरण देते हैं। अपनी सामाजिक स्थिति को बनाए रखने के लिए, जाटों ने निजी अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा प्राप्त करना शुरू कर दिया। शिक्षा से दीर्घकालिक लाभों के लिए यह उद्देश्यपूर्ण प्रतीक्षा उनकी जाति और वर्ग विशेषाधिकारों को बनाए रखने की एक प्रमुख रणनीति है। तीसरे अध्याय में उनके द्वारा डिग्री (degree) प्राप्त लेकिन नौकरी न करने वाले युवा पुरुषों द्वारा अनुभव की जाने वाली चिंता, विफलता और मोहभंग पर चर्चा की गई है। 2000 के दशक के मध्य तक, प्रतीक्षा करना मेरठ में जीवन का एक सामान्य पहलू बन गया। चौथे अध्याय में, जेफ़री ने बताया कि कैसे समय व्यतीत करने से रचनात्मक राजनीतिक अशांति पैदा होती हैं, इसके उदाहरण हेतु उन्होंने 2004-2005 में छात्रों के प्रदर्शन का संदर्भ दिया है।
पांचवाँ अध्याय दिखाता है कि कैसे जाट युवा पुरुष अपने प्रतीक्षा समय का उपयोग संपर्क और प्रभाव बनाने के लिए करते हैं। नौकरी की कमी और प्रतिस्पर्धा के बावजूद, जाट युवा अपनी जाति और वर्ग की स्थिति को सुरक्षित रखने के तरीके खोज लेते हैं। जेफरी की किताब यह दिखाते हुए समाप्त होती है कि कैसे लोकप्रिय लोकतंत्र वर्ग और जाति से प्रभावित होता है, जिसमें राजनीतिक कार्रवाइयां क्रोध, आलोचना, देशभक्ति और राज्य में विश्वास के मिश्रण को दर्शाती हैं। यह किताब बेरोजगार युवाओं के लिए अपने अतिरिक्त समय का उपयोग सार्वजनिक शिक्षा या समाज में व्यापक परिवर्तनकारी बदलावों के लिए करने की बहुत कम उम्मीद छोड़ती है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/2mnapzzk
https://tinyurl.com/c8u4xvaj
https://tinyurl.com/3mvfycy5

चित्र संदर्भ

1. सड़क पर बैठे युवा को संदर्भित करता एक चित्रण (PxHere)
2. अंग्रेजी सीखते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बेरोज़गारी के मुद्दे पर धरना देते युवाओं को खदेड़ती पुलिस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. केरल के हरिपद में बेरोजगारी के खिलाफ रैली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. क्रेग जेफ़री द्वारा लिखी गई पुस्तक "टाइमपास" को दर्शाता एक चित्रण (amazon)

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