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आधुनिक युग में यदि आप कहीं जाना चाहते हैं और आपको गंतव्य स्थान के विषय में कोई भी जानकारी नहीं है, तो आप गूगल पर उस स्थान का नाम डालते हैं और आपको क्षण भर में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि आधुनिक तकनीक के विकास से पहले किसी स्थान के विषय में जानकारी कैसे प्राप्त होती थी? स्थानों के नामों की एक भौगोलिक सूची या शब्दकोष होता है, जिसे गज़ेटियर (Gazetteer) कहते हैं। गज़ेटियर तीन प्रकार के होते हैं: वर्णमाला सूची, शब्दकोश और विश्वकोश। यदि आप स्थानों के ऐतिहासिक (उदाहरण के लिए, देश, क्षेत्र, सड़कें आदि), वैकल्पिक नाम आदि ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं, तो गजेटियर उपयोगी संसाधन हैं। वास्तव में गज़ेटियर एक भौगोलिक शब्दकोश या निर्देशिका है, जिसका उपयोग मानचित्र या एटलस के साथ किया जाता है। यह किसी क्षेत्र की भौतिक विशेषताओं को दर्शाता है, उसके इतिहास का वर्णन करता है और उसमें रहने वाले लोगों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन पर चर्चा करता है। इस प्रकार यह प्रशासक के लिए एक मार्गदर्शक, आम जनता के लिए एक संदर्भ पुस्तक और विशेषज्ञों के लिए जानकारी के स्रोत के रूप में कार्य करता है। क्या आप जानते हैं कि मेरठ का आखिरी गज़ेटियर 1965 में प्रकाशित हुआ था। गज़ेटियर अंग्रेजों द्वारा पेश किए गए थे और आज़ादी तक उनके द्वारा अद्यतन किए गए थे। उसके बाद भारत सरकार द्वारा 1970 के दशक की शुरुआत तक उन्हें अद्यतन किया गया। लेकिन, उसके बाद गज़ेटियर को अपडेट करना बंद कर दिया गया। हालांकि, 1998 से, राज्य सरकारों और ज़िला मजिस्ट्रेटों को अपने संबंधित ज़िला पोर्टल पर ज़िलों की सांख्यिकीय जानकारी अद्यतन करना अनिवार्य हो गया है। तो, आइए आज के इस लेख में हम भारत के गज़ेटियरों के विषय में विस्तार से जानें, कि वे कैसे, कब, किसके द्वारा और किस उद्देश्य से प्रकाशित किए गए थे? इसके साथ ही यह भी समझते हैं कि देश में एक अच्छा शोध वातावरण बनाने के लिए गज़ेटियर और जनगणना आंकड़ों का उपयोग कैसे किया जा सकता है।
ब्रिटिश भारत के गज़ेटियर भारतीय उपमहाद्वीप में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिए प्रमुख संदर्भ संसाधन हैं। 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) द्वारा अपने क्षेत्रों के ज्ञान को बढ़ाने के लिए विशिष्ट रूप से डिज़ाइन किए गए गज़ेटियर की एक श्रृंखला प्रकाशित करना शुरू किया गया। यह प्रथा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी जारी रही और 1947 तक चली। कुछ गज़ेटियर भारतीय स्वतंत्रता के बाद भी प्रकाशित होते रहे। गज़ेटियर की यह श्रृंखला, जो ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके बाद भारत की क्राउन कॉलोनी के अधिकारियों के लिए मूल्यवान थी, आज तक विद्वानों के लिए भी बहुत मूल्यवान साबित हुई है। वास्तव में एक आदर्श गज़ेटियर आंकड़ों का खजाना होता है। प्लासी के युद्ध के पचास साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को एशिया (Asia) उपमहाद्वीप में हासिल की गई भूमि के विषय में जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता महसूस हुई। और यहीं से गज़ेटियर की शुरुआत हुई। कुछ गजेटियर व्यावसायिक रूप से प्रकाशित किए गए थे, जबकि अन्य सरकारी या अर्ध-सरकारी दस्तावेज़ थे।
इंपीरियल गज़ेटियर (Imperial Gazetteer):
सर विलियम विल्सन हंटर (Sir William Wilson Hunter) को भारत के गज़ेटियर के जनक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने 1881 में नौ खंडों में अपना 'इंपीरियल गज़ेटियर ऑफ इंडिया' (Imperial Gazetteer of India) प्रकाशित किया था। इसके चार साल बाद उन्होंने चौदह-खंड का एक एक अन्य गज़ेटियर तैयार किया, जिसका चौदहवाँ खंड एक सूचकांक था। 1900 में सर विलियम विल्सन हंटर की मृत्यु के बाद, सर हर्बर्ट होप रिस्ले (Sir Herbert Hope Risley), विलियम स्टीवेन्सन मेयर (William Stevenson Meyer), सर रिचर्ड बर्न (Sir Richard Burn) और जेम्स सदरलैंड कॉटन (James Sutherland Cotton) ने 'इंपीरियल गज़ेटियर ऑफ इंडिया' का संकलन किया, जिसके छब्बीस खंड थे। इसके पहले चार खंड कॉलोनी के वर्णनात्मक, ऐतिहासिक, आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं के लिए समर्पित हैं। खंड पाँच से चौबीस में A से Z तक स्थानों के नाम के विवरण हैं, जिसमें जिलों और शहरों का वर्णन किया गया है। पच्चीसवाँ खंड एक एटलस है और छब्बीसवाँ एक सूचकांक है।
प्रांतीय शृंखला (Provincial Series):
'द इंपीरियल गज़ेटियर; के साथ ही 'द इंपीरियल गज़ेटियर ऑफ इंडिया: प्रांतीय शृंखला' (The Imperial Gazetteer of India: Provincial Series) भी प्रकाशित हुई। प्रांतीय श्रृंखला का प्रकाशन कलकत्ता में सरकारी मुद्रण अधीक्षक द्वारा किया गया था। 1908-09 में प्रकाशित इस शृंखला में उन्नीस खंड हैं। प्रत्येक खंड कम से कम एक देश, प्रांत या भारतीय राज्य का वर्णन है। खंडों में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पूर्वी बंगाल, असम, मैसूर और कुर्ग जैसे भारतीय स्थानों के साथ अफगानिस्तान और नेपाल का भी वर्णन है।
ज़िला गज़ेटियर (District Gazetteer):
1853 की शुरुआत में, गज़ेटियर मद्रास में कलेक्टरों और अधिकारियों द्वारा नियम पुस्तिका के रूप में उपयोग के लिए प्रकाशित किए गए थे। फिर उन्नीसवीं सदी के अंत में इन्हें ज़िला गज़ेटियर के रूप में प्रकाशित किया गया। 1894 से 1919 तक मद्रास ने ज़िला गज़ेटियर प्रकाशित किए, इसके बाद 1900 के दशक में चार "सांख्यिकीय परिशिष्ट" (Statistical Appendices) की एक श्रृंखला प्रकाशित की गई, जिनमें से प्रत्येक में दशकीय जनगणना का उपयोग किया गया। बंगाल में 1833 में 'बुकानन-हैमिल्टन श्रृंखला' (Buchanan-Hamilton Series) शुरुआत की गई, लेकिन इन्हें जिला गजेटियर नहीं बल्कि 'जिले का लेखा' (Accounts of the District) कहा जाता था। फिर 1906-23 में ओ'मैली श्रृंखला' (O’Malley Series) प्रकाशित की गई। इस श्रृंखला को सर्वोच्च कोटि के ज़िला गज़ेटियर के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। बाद में संयुक्त प्रांत द्वारा भारत में सबसे अच्छी तरह से आयोजित जिला श्रृंखला प्रकाशित की गई। प्रांत में अड़तालीस जिले थे और प्रत्येक जिले के लिए 1905 से 1911 के बीच अड़तालीस ज़िला गज़ेटियर निकाले गए।
वास्तव में एक आदर्श गज़ेटियर आंकड़ों का खजाना होता है। आमतौर पर, एक गजेटियर में सामग्री की एक तालिका होती है जिसमें इतिहास, स्थलाकृति, खेती, पशुधन, विनिर्माण, व्यापार, जनसंख्या, प्रवासन, धर्म, भाषा, शिक्षा, अपराध इत्यादि के बारे में जानकारी निहित होती है। जब गज़ेटियर मूल रूप से संकलित किए गए थे, तो सभी हितधारकों की सेवाएं ली गईं थीं। इसी प्रकार, आज भी संशोधित गज़ेटियरों को एक विश्वसनीय संदर्भ पुस्तक बनाने के लिए सभी संबंधित एजेंसियों/संस्थाओं को शामिल किया जाना चाहिए। भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारतीय खान ब्यूरो, भारत मौसम विज्ञान विभाग, केंद्रीय भूजल बोर्ड आदि द्वारा निर्धारित प्रारूप में वार्षिक आधार पर उनके सम्बंधित विषयों अर्थात वर्षा, जलवायु, खदानें, भूजल आदि की ज़िला प्रोफ़ाइल' तैयार करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
आर्थिक सर्वेक्षण, वनस्पति सर्वेक्षण, प्राणी सर्वेक्षण और चिकित्सा सर्वेक्षण से जुड़े संस्थानों द्वारा भी समान रूप से योगदान दिया जा सकता है। इस अभ्यास को समयबद्ध और नियमित बनाने से न केवल गज़ेटियर की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि देश भर में एक अच्छा शोध वातावरण भी तैयार होगा। इसी प्रकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जैसे संस्थानों द्वारा भी अपने संबंधित मंडलों के माध्यम से 'किसी ज़िले की ऐतिहासिक प्रोफ़ाइल' तैयार की जा सकती है। गज़ेटियरों की पुनरुद्धार योजना में चित्र, मानचित्र और ग्राफ़ जैसी विशेषताओं को पर्याप्त रूप से जोड़ा जाना चाहिए। इनकी सहायता से कठिन तालिकाओं का विश्लेषण आसानी से किया जा सकता है। चित्रों को कथन से संबंध बनाया जा सकता है। मानचित्र संख्यात्मक निर्देशांक और विवरण की तुलना में भूगोल और स्थलाकृति को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।
विभिन्न मदों के अंतर्गत प्राप्त जानकारी के सभी ज़िला प्रोफाइल को राज्य स्तर पर संकलित किया जा सकता है। राज्य स्तरीय कार्यालय को संपादकों, शोधकर्ताओं/जांचकर्ताओं और आंकड़े विशेषज्ञों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। ज़िला कार्य को सुव्यवस्थित करने के लिए इसे केंद्रीय स्तर पर भी शामिल किया जा सकता है। राज्य स्तर पर आंकड़ों की जांच और सत्यापन के बाद, सभी ज़िला केंद्रीय स्तर पर आने चाहिए, जहां बुनियादी एकरूपता की जांच की जाती है और जिला गजेटियर को एक समान प्रारूप में प्रकाशित किया जाता है। जिला गजेटियरों को नियमित बनाने तथा प्रकाशन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र में संबंधित विषयों के विशेषज्ञों के साथ एक विशेष निकाय का गठन किया जाना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/49dymc6e
https://tinyurl.com/3smn4ny7
https://tinyurl.com/mv2429ys
चित्र संदर्भ
1. जॉन फ्रैंकन विलियम्स द्वारा एवरीबडीज़ गज़ेटियर एंड एटलस ऑफ़ द वर्ल्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (romanovempire)
2. 1909 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के दौरान भारत के इंपीरियल गज़ेटियर एटलस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. इंडिपेंडेंट गज़ेटियर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. स्कॉटलैंड के आयुध गजेटियर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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