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क्या आप जानते हैं कि भारत में 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा (समुद्र के किनारे से जुड़े क्षेत्र) है! इस तटरेखा में कई बंदरगाह हैं, जो माल की आवाजाही, आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय विकास का समर्थन करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस भूमिका को समझने के लिए आज हम हमारे देश के दो प्रमुख बंदरगाहों: टूटीकोरिन बंदरगाह और विशाखापत्तनम बंदरगाह का अवलोकन करेंगे।
1. टूटीकोरिन बंदरगाह: टूटीकोरिन बंदरगाह को वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह के नाम से भी जाना जाता है! बंदरगाह को यह नाम 2011 में मिला था। इसका नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और ट्रेड यूनियन नेता वी.ओ. चिदंबरनार के नाम पर रखा गया है। टूटीकोरिन बंदरगाह समुद्र में भूमि को बढ़ाकर बनाया गया एक कृत्रिम बंदरगाह है। इसे कार्गो हैंडलिंग (cargo handling) की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने और क्षेत्र में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। हालांकि आज, यह कंटेनर हैंडलिंग और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। टूटीकोरिन दक्षिण भारत का एक प्रमुख बंदरगाह शहर है, जो चेन्नई से 600 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में और तमिलनाडु में मदुरै से 135 किलोमीटर दूर स्थित है।
आईये इसके इतिहास पर एक नज़र डालते हैं। 15वीं शताब्दी में, इसकी महत्ता काफी बढ़ गई, क्योंकि उस समय यह एक अच्छी तरह से संरक्षित प्राकृतिक बंदरगाह था। पुर्तगाली 1532 में आने वाले पहले यूरोपीय थे, और उनके लाभदायक व्यापार ने डचों को भी आकर्षित किया।
1649 में डच ने टूटीकोरिन पर कब्जा कर लिया और इसे "मदुरा तट" का मुख्यालय बना दिया। 17वीं शताब्दी के दौरान, यह बंदरगाह मोती मछली पालन का केंद्र हुआ करता था, और डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस क्षेत्र में एक व्यापारिक चौकी स्थापित की थी। 19वीं शताब्दी में, अंग्रेज़ों ने बंदरगाह पर नियंत्रण कर लिया और बढ़ते व्यापार को सहारा देने के लिए इसके बुनियादी ढांचे को और विकसित किया।
टूटीकोरिन बंदरगाह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भारत के दक्षिणी क्षेत्र के विकास में योगदान दिया है। 18वीं शताब्दी में, डच और अंग्रेज़ों के बीच लड़ाई ने शहर को भारी नुकसान पहुंचाया। 1825 तक, अंग्रेज़ों ने यहाँ पर अपना पूर्ण नियंत्रण कर लिया था।
19वीं शताब्दी की शुरुआत में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंदरगाह को काफी तेज़ी के साथ विकसित किया। उन्होंने कपास उगाने वाले क्षेत्रों को बंदरगाह से जोड़ने के लिए सड़कें बनाईं ताकि टूटीकोरिन से इंग्लैंड, कपास का निर्यात किया जा सके। 1877 में ड्यूक ऑफ बर्मिंघम (Duke of Birmingham) की यात्रा के बाद, बंदरगाह को एक मज़बूत घाट, जेटी के लिए नई भूमि और रेलवे कनेक्शन के साथ और विकसित किया गया। 1878 में मनियाची तक रेलवे लाइन जोड़ी गई। 1888 में, इंग्लैंड की ए एंड एफ हार्वे कंपनी (A&F Harvey Company) द्वारा पहली कपास मिल खोली गई थी।
11 जुलाई, 1974 को, नवनिर्मित टूटीकोरिन बंदरगाह को भारत का 10वाँ प्रमुख बंदरगाह घोषित किया गया। 1 अप्रैल, 1979 को, टूटीकोरिन के छोटे और बड़े बंदरगाहों का 1963 के बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम के तहत ”टूटीकोरिन बंदरगाह ट्रस्ट” बनाने के लिए विलय कर दिया गया। आधुनिक भारत की शान, टूटीकोरिन बंदरगाह साल भर संचालित रहता है, तूफानों से सुरक्षित रहता है और एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्ग पर स्थित है। टूटीकोरिन बंदरगाह का बुनियादी ढांचा बेहद मज़बूत है, जिसने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (Sterlite Industries), एसपीआईसी और डीसीडब्ल्यू ( SPIC and DCW) जैसे बड़े उद्योगों को आस-पास इकाइयाँ स्थापित करने के लिए आकर्षित किया है। यह तिरुपुर, इरोड और करूर से यूरोप और अमेरिका में भेजे जा रहे कपड़ों के बड़े निर्यात को संभालता है। इस प्रकार टूटीकोरिन क्षेत्रीय विकास में एक प्रमुख खिलाड़ी बन रहा है। टूटीकोरिन बंदरगाह वर्तमान में भारत में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला प्रमुख बंदरगाह है, जिसकी क्षमता प्रति वर्ष 35 मिलियन टन से अधिक कार्गो को संभालने की है। यहाँ पर 1.6 मिलियन TEU कंटेनर और बड़े जहाज़ों को संभालने के लिए आधुनिक टगबोट संभालने की सुविधाएँ भी दी गई हैं। बंदरगाह अन्य क्षेत्रों से रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। इसमें पेट्रोलियम उत्पादों और रसायनों जैसे तरल कार्गो को संभालने के लिए एक टर्मिनल भी है। यूरोप और एशिया के बीच पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग पर टूटीकोरिन बंदरगाह का स्थान और भारत के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों से इसकी निकटता इसे वैश्विक व्यापार और रसद के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाती है। इसकी सुविधाएँ और कनेक्टिविटी, निर्यातकों और आयातकों के लिए कुशल समाधान प्रदान करती हैं। यह बंदरगाह अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में माल की शिपिंग सहित वैश्विक व्यापार के अवसर प्रदान करता है।
टूटीकोरिन पोर्ट ने भविष्य के लिए अपनी क्षमता और दक्षता बढ़ाने की योजना बनाई है। यह सालाना 65 मिलियन टन कार्गो को संभालने के अनुरूप अपना विस्तार कर रहा है। यह बंदरगाह बड़े जहाज़ों का समर्थन करने के लिए अपने बुनियादी ढांचे और उपकरणों को भी उन्नत कर रहा है। इसके अतिरिक्त, यह एक कंटेनर फ्रेट स्टेशन (container freight station) और एक मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (multi-modal logistics park) स्थापित करने की योजना बना रहा है।
2. विशाखापट्टनम बंदरगाह: विशाखापत्तनम एक प्राचीन बंदरगाह शहर है, जिसका मध्य पूर्व और रोम (Rome) के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध हुआ करता था। विशालकाय जहाज़ यहाँ के तट से दूर लंगर डाले हुए रहते थे और माल को छोटी मसुला नावों का उपयोग करके तट से ले जाया जाता था। आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी ज़िले में श्री भीमेश्वर स्वामी मंदिर में 1068 ई. के शिलालेखों में भी विशाखापत्तनम के एक व्यापारी का प्रमाण मिलता है। 12वीं शताब्दी में, विशाखापत्तनम एक किलेबंद व्यापारिक शहर था जिसका प्रबंधन एक गिल्ड द्वारा किया जाता था। 1882 तक, यह ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक बस्ती बन गया। 1882-83 में, विशाखापत्तनम/भीमुनिपट्टनम के माध्यम से 83 लाख रुपये के माल का व्यापार किया गया।
विशाखापत्तनम बंदरगाह से आयात-निर्यात किए जाने वाले प्रमुख सामानों में उप्पाडा से मलमल का कपड़ा, यू.के. और यू.एस.ए. को निर्यात किया जाने वाला मैंगनीज अयस्क, तिलहन, गुड़, जूट, नील, खाल और चमड़े शामिल थे। बंदरगाह का बर्मा के साथ व्यापक व्यापार था और ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन (British India Steam Navigation) कंपनी के जहाज़ नियमित रूप से यहाँ आते थे।
जब 1858 में अंग्रेज़ों ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा किया, तो उन्हें इस क्षेत्र में एक बंदरगाह की ज़रूरत महसूस हुई। 1877 में एक रिपोर्ट में विशाखापत्तनम या “वायज़ैग (Vizag)” को "मध्य प्रांतों का बंदरगाह" कहा गया और बंदरगाह निर्माण की ज़रूरत पर और ज़ोर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश एडमिरल्टी के कर्नल एच. कार्टराइट रीड (Colonel H. Cartwright Read) द्वारा मेघद्रिगेड्डा नदी के मुहाने पर एक बंदरगाह बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई।
इस बंदरगाह की एक अनूठी विशेषता आइलैंड ब्रेकवाटर (Island Breakwater) है, जिसे दो पुराने जहाज़ों, जेनस और वेलेसडन (Wellesden) को डुबोकर बनाया गया था, जिसके चारों ओर मलबे का एक टीला बना था। इंजीनियर डब्ल्यू.सी. ऐश और डी.बी. रैटनबेरी (W.C. Ash and D.B. Rattenberry) ने इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस बंदरगाह के निर्माण में 281.8 मिलियन क्यूबिक फीट भूमि और नरम सामग्री की ड्रेजिंग की गई थी। इसमें एक बाहरी चैनल, आंतरिक चैनल, द्वीप ब्रेकवाटर, रेत जाल, टर्निंग बेसिन, तीन बर्थ के साथ क्वे वॉल, ट्रांज़िट शेड, स्टोरेज शेड, खुले भंडारण क्षेत्र, इलेक्ट्रिक क्वे क्रेन, रेलवे ट्रैक और ग्रेविंग डॉक, ड्रेजर, टग, पावर हाउस, वर्कशॉप, सड़कें, नालियाँ और पानी की आपूर्ति जैसी विभिन्न सुविधाएँ शामिल थीं। बंदरगाह का निर्माण 378 लाख रुपये की लागत से किया गया था।
7 अक्टूबर, 1933 को बंदरगाह को समुद्री यातायात के लिए खोल दिया गया। इसका औपचारिक उद्घाटन 19 दिसंबर, 1933 को भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड विलिंगडन (Governor General Lord Willingdon) ने किया था। अपने पहले वर्ष में, बंदरगाह ने 1.3 लाख टन यातायात संभाला, जिसमें ज्यादातर मैंगनीज अयस्क और मूंगफली का निर्यात और चावल, आटा, टाइल और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं का आयात शामिल था, जिन्हें बैलगाड़ियों द्वारा ले जाया जाता था। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-42) के और भारत की स्वतंत्रता के बाद, बंदरगाह के विकास की योजना बनाई गई और इसके बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान महत्वपूर्ण निवेश किए गए।
इस बंदरगाह को तीन बर्थ और 1.3 लाख टन के वार्षिक यातायात वाली एक छोटी सुविधा से बढाकर 24 बर्थ और 65 मिलियन टन के वार्षिक थ्रूपुट वाले एक बड़े बंदरगाह में बदल दिया गया है। शुरुआत से लेकर आज तक विशाखापत्तनम बंदरगाह ने देश के विदेशी व्यापार, आर्थिक विकास और समग्र राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस बंदरगाह के संचालन में कार्गो हैंडलिंग का प्रयोग किया जाता है, जहां शिपर्स ऑपरेटरों के साथ आवश्यक व्यवस्था करते हैं।
हालाँकि इस बंदरगाह से जुड़े एक सर्वेक्षण में कई तथ्य सामने आए :
- सुविधाओं की आवश्यकता: सर्वेक्षण में शामिल 90% उत्तरदाताओं का मानना है कि विशाखापत्तनम बंदरगाह पर अधिक गोदाम और भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता है।
- सुधार की आवश्यकता: 50% से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि निर्यात और आयात सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता है।
- समस्याएं: सभी उत्तरदाताओं ने बंदरगाह पर विभिन्न समस्याओं का सामना करने की सूचना दी।
- सरकारी प्रदर्शन: दिलचस्प बात यह है कि उत्तरदाताओं में से किसी ने भी आंध्र प्रदेश सरकार की निर्यात और आयात नीतियों की आलोचना नहीं की।
- प्रमुख निर्यात और आयात: यहाँ से निर्यात की जाने वाली मुख्य सामग्रियों में लौह अयस्क, इंजीनियरिंग आइटम और तरल कार्गो शामिल हैं। प्रमुख आयात खाद्य तेल, कच्चा तेल, रसायन और उर्वरक हैं।
- आर्थिक प्रभाव: लगभग 50% उत्तरदाताओं का मानना है कि निर्यात से देश को काफी लाभ होता है।
विशाखापत्तनम बंदरगाह भारत के विदेशी व्यापार और आर्थिक प्रगति में एक प्रमुख खिलाड़ी है। इसने क्षेत्रीय विकास को गति दी है और राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/msrmckjz
https://tinyurl.com/yc6xrkdr
https://tinyurl.com/43kxdsft
https://tinyurl.com/3vf8wb4x
चित्र संदर्भ
1. टूटीकोरिन और विशाखापट्टनम बंदरगाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह पर खड़े जहाजों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वी.ओ. चिदम्बरनार बंदरगाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मद्रास प्रेसीडेंसी के दौरान टूटीकोरिन बंदरगाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. विशाखापत्तनम हार्बर के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. विशाखापत्तनम पोर्ट के इनर हार्बर के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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