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मधुमक्खियां इस पृथ्वी पर मौजूद एकमात्र ऐसे कीट है, जो शहद के रूप में, इंसानों के लिए भोजन बनाती हैं। शहद न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहद बनाना मधुमक्खियों के लिए कितना मुश्किल काम है? वास्तव में, मधुमक्खियाँ शहद बनाने में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देती हैं। आपने अपने घर के पास या अपने बगीचे में उनके छत्ते जरूर देखे होंगे, जिन्हें हाइव्स (Hives) कहा जाता है। आज हम एक अन्य कीट ततैया के बारे में भी जानेंगे, जो कई मायनों में मधुमक्खियों के समान ही होते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें घृणा की नज़रों से देखा जाता है। ऐसा क्यों?
फूलों से पराग लेकर शहद का उत्पादन करना एक रोमांचक और मेहनत भरी प्रक्रिया है, जिसे श्रमिक मधुमक्खियों द्वारा कई चरणों में पूरा किया जाता है। यह प्रक्रिया फूलों के रस को शहद में बदल देती है। चलिए चरण-दर-चरण समझने का प्रयास करते हैं कि मधुमक्खियां शहद का उत्पादन कैसे करती हैं?
मीठे रस या पराग संग्रह: श्रमिक मधुमक्खियाँ, (जो सभी मादा होती हैं), फूलों से रस एकत्र करती हैं। फूल मधुमक्खियों को आकर्षित करने के लिए रस उत्पन्न करते हैं। इससे फूलों को भी फायदा होता है, क्यों कि जब मधुमक्खियाँ रस एकत्र करती हैं, तो वे अपने साथ पराग को फैलाती भी हैं, जो पौधों के फैलाव और प्रजनन में मदद करता है। मधुमक्खी रस चूसने के लिए अपनी लंबी जीभ जैसी नुकीली संरचना का उपयोग करती है। मधुमक्खी के रस भंडार को भरने के लिए लगभग 1,000 फूलों की आवश्यकता होती है।
पराग पाचन: एकत्रित पराग मधुमक्खी के प्रोवेन्ट्रिकुलस (Proventriculus), या पहले पेट कक्ष में संग्रहीत होता है। यहां एंज़ाइम (Enzyme ), इनवर्टेज रस (Invertase Nector) में उपस्थित जटिल शर्करा को सरल शर्करा, ग्लूकोज और फ्रुक्टोज (Glucose And Fructose) में तोड़ देता है। अन्य एंज़ाइम इस मीठे रस में मौजूद किसी भी बैक्टीरिया को बेअसर कर देते हैं, और शहद को खाने योग्य तथा सुरक्षित बना देते हैं।
पराग पुनर्जनन: जब मधुमक्खी अपने छत्ते में लौटती है, तो वह एक अनोखी प्रक्रिया (मुंह से मुंह) के माध्यम से पराग को अन्य श्रमिक मधुमक्खियों तक पहुंचाती है। इस प्रक्रिया में पराग की नमी की मात्रा लगभग 70% से घटकर केवल 20% रह जाती है।
शहद का भंडारण: एक बार जब मीठे रस में नमी की मात्रा 20% या उससे कम हो जाती है, तो शहद, फफूंद और हानिकारक बैक्टीरिया से भी सुरक्षित हो जाता है। फिर मधुमक्खियाँ शहद को मोम से बनी छत्ते की कोशिकाओं में संग्रहित करती हैं, और कोशिका जैसी संरचनाओं को मोम के ढक्कन से सील कर देती हैं।
शहद का उपयोग: मधुमक्खियाँ अपने बढ़ते लार्वा को शहद खिलाती हैं और इसे ठंडे महीनों के लिए इकठ्ठा करती हैं, क्यों कि उस दौरान पराग कम उपलब्ध होता हैं। रानी मधुमक्खी को रॉयल जेली (Royal Jelly) नामक एक अलग पदार्थ खिलाया जाता है, जो खनिजों से भरपूर होता है।
मधुमक्खियाँ सिर्फ शहद उत्पादक ही नहीं होती हैं; बल्कि वे हमारे पारिस्थितिक तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक परागणक के रूप में वे पौधों से पराग फैलाने में मदद करती हैं, जो हमारे खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व स्तर पर उत्पादित भोजन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर ही निर्भर करता है।
मधुमक्खियाँ कई प्रकार की होती हैं, लेकिन शहद बनाने वाली मधुमक्खियाँ लगभग 20,000 ज्ञात कीट प्रजातियों का एक छोटा सा हिस्सा हैं।
आइए इस छोटे से हिस्से की विशेषताओं को समझते हैं:
- छोटी मधुमक्खियों (माइक्रापिस (Micrapis) की दो प्रजातियाँ होती हैं:
एपिस फ्लोरिया (Apis Florea ): लाल बौनी मधुमक्खी या एपिस फ्लोरिया, एक छोटी, लाल-भूरी मधुमक्खी होती है। इस प्रजाति के श्रमिकों की लंबाई 7-10 मिमी होती है। ये खुली हवा में शाखाओं या झाड़ियों पर एक ही छत्ता बनाती हैं। इनके पास अद्वितीय रक्षा तंत्र होता हैं। ये अपने मुख्य शिकारी, चींटियों को रोकने के लिए चिपचिपी बाधाएँ (Sticky Obstacles) भी बनती हैं। वे रक्षा के समन्वय के लिए "पाइपिंग (Piping)" और "हिसिंग (Hissing)" संकेतों के माध्यम से संवाद करती हैं। आमतौर पर इनके डंक मनुष्यों को नुकसान नहीं पहुचाते हैं, इसलिए इन्हें पालना आसान हो जाता है। इनका शहद थाईलैंड और कंबोडिया में काटा और खूब खाया जाता है। साथ ही ये हिंदू और बौद्ध परंपराओं में गहरा सांस्कृतिक महत्व भी रखती हैं।
एपिस एंड्रेनिफोर्मिस (Apis Andreniformis): काली बौनी मधुमक्खी या एपिस एंड्रेनिफोर्मिस, सभी मधुमक्खी प्रजातियों में सबसे छोटी होती है, जिसकी लंबाई 6.5 मिमी और 9.5-10 मिमी के बीच होती है। यह दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की मूल निवासी और एक दुर्लभ प्रजाति की मधुमक्खी होती है। यह प्रजाति ज्यादातर 1,000 मीटर से नीचे के निचले इलाकों में पाई जाती है, लेकिन बरसात के मौसम में ऊंचाई की ओर पलायन कर सकती है। ये अपना छत्ता मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बनाती हैं। मनुष्य इस प्रजाति को शहद, मोम, रॉयल जेली और मधुमक्खी के जहर जैसे व्यावसायिक उत्पादों का उत्पादन करने के लिए पालते भी हैं।
- बड़ी मधु मक्खियों (मेगापिस (Megapis) की भी दो प्रजातियां होती हैं, जो एकल उजागर छत्ते बनाती हैं:
एपिस डोरसाटा (Apis Dorsata): विशाल मधु मक्खी या एपिस डोरसाटा, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती है। यह कपास, आम, नारियल, कॉफी, काली मिर्च, स्टार फल और मैकाडामिया जैसी कई फसलों के परागण के लिए महत्वपूर्ण साबित होती है। इनका आकार अन्य मधु मक्खियों की तुलना में बहुत बड़ा होता है। इस प्रजाति की श्रमिक मधुमक्खियों की लंबाई लगभग 17-20 मिमी होती है। ये खुली हवा वाले बड़े घोंसले बनाती हैं, जो पेड़ की शाखाओं या इमारतों से लटकते हैं। इन घोंसलों में 100,000 मधुमक्खियाँ रह सकती हैं। इन्हें अपनी आक्रामक रक्षा रणनीतियों के लिए जाना जाता है और ये सभी मधुमक्खियों में सबसे अधिक रक्षात्मक मानी जाती हैं।
एपिस लेबोरियोसा (Apis Laboriosa): हिमालयन जाइंट हनी बी (The Himalayan Giant Honey Bee), जिसे एपिस डोरसाटा लेबोरियोसा के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया की सबसे बड़ी शहद उत्पादक मधुमक्खी होती है। यह मूलतः हिमालयी क्षेत्रों में निवास करती है। ये मधुमक्खियाँ अपने आकार के कारण अद्वितीय होती हैं, जहाँ वयस्कों की लंबाई 3.0 सेमी तक हो सकती है। ये मधुमक्खियां ऊंचाई पर चट्टानों पर ओवरहंग (Overhangs) के नीचे बड़े छत्ते बनाती हैं।
- इसके अतिरिक्त, मध्यम आकार की मधुमक्खी (एपिस (Apis) की चार प्रजातियां होती हैं:
एपिस मेलीफेरा (Apis Mellifera) एपिस मेलिफेरा एक सामान्य, पालतू और मध्यम आकार की मधुमक्खी होती है। यह दुनिया की सबसे प्रसिद्ध मधुमक्खी है और इसकी कई दिलचस्प किस्म की नस्लें, उपप्रजातियां और संकर होते हैं। यह व्यावसायिक मधुमक्खी पालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
एपिस सेराना (Apis Cerana): एशियाई शहद मधुमक्खी, जिसे एपिस सेराना के नाम से भी जाना जाता है, एशिया की मूल निवासी और मधुमक्खी की एक अनोखी प्रजाति होती है। एपिस मेलिफ़ेरा के विपरीत, ये मधुमक्खियाँ आकार में छोटी होती हैं और इनके पेट पर अलग-अलग पीली धारियां होती हैं। एपिस सेराना की कॉलोनियां अपेक्षाकृत छोटी होती हैं, जिनमें लगभग 6,000 से 7,000 श्रमिक मधुमक्खियां रहती हैं। अपने छोटे आकार के बावजूद, ये बहुत साहसी होती हैं और समुद्र तल से 3,500 मीटर की उंचाई तक विविध जलवायु में भी जीवित रह सकती हैं। यह अत्यधिक तापमान में उतार-चढ़ाव और लंबी अवधि की वर्षा का भी सामना कर सकती हैं। इन मधुमक्खियों का रक्षा तंत्र भी अद्वितीय होता है। जापानी विशाल हॉर्नेट (Japanese Giant Hornet) जैसे शिकारियों से खतरा महसूस होने पर ये उसे घेर लेती हैं और अपनी उड़ान की मांसपेशियों से कंपन करती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है और हॉर्नेट को प्रभावी ढंग से गर्म करके मार डाला जाता है। वे "शिमरिंग (Shimmering)" नामक एक ध्यान भटकाने वाली तकनीक का भी उपयोग करती हैं, जहां वे शिकारियों को भ्रमित करने के लिए घोंसले की सतह पर लहरें बनाती हैं। एपिस सेराना उन चुनिंदा मधुमक्खी प्रजातियों में से एक है जिन्हें पालतू बनाया जा सकता है और इसका उपयोग मधुमक्खी पालन में किया जाता है। इसका शहद उच्च गुणवत्ता वाला होता है और जापान जैसे देशों में इसकी कीमत भी बहुत अधिक होती है।
एपिस कोशेवनिकोवी (Apis Koshevnicovi): एपिस कोशेवनिकोवी, एक दुर्लभ और गैर-पालतू मधुमक्खी होती है। इसका आकार मध्यम और रंग लाल होता है। इसका निवास स्थान मलय प्रायद्वीप, बोर्नियो और सुमात्रा के उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगलों तक ही सीमित है। इस प्रजाति की श्रमिक मधुमक्खियों के शरीर का आकार मध्यम होता है, और आगे के पंखों की लंबाई 7.5-9 मिमी के बीच होती है।
एपिस निग्रोसिंक्टा (Apis Nigrocincta): एपिस निग्रोसिंक्टा लाल रंग की एक दुर्लभ, गैर-पालतू और मध्यम आकार की मधुमक्खी होती है। यह फिलीपींस में मिंडानाओ द्वीप (Island Of Mindanao) और इंडोनेशिया में सुलावेसी (Sulawesi) में पाई जाती है।
दिलचस्प बात यह है कि इन आठ मधुमक्खी प्रजातियों में से सात की उत्पत्ति दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में हुई है, जिसमें एपिस मेलिफेरा एकमात्र अपवाद है।
दूसरी ओर मधु मक्खियों से विपरीत ततैया, को अक्सर नापसंद किया जाता है, लेकिन वास्तव में ये भी हमारे पर्यावरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। वे भी मधुमक्खियों की तरह फूलों का परागण करती हैं, और ऊर्जा के लिए पराग जैसे मीठे पदार्थ खाती हैं । हालांकि ततैया, मधुमक्खियों की भांति शहद नहीं बनाती हैं या संग्रहीत नहीं करती हैं । लेकिन मैक्सिकन शहद ततैया वास्तव में शहद बनाता है, भले ही इस शहद की मात्रा बहुत कम होती है। वयस्क ततैया अपने द्वारा मारे गए शिकार को नहीं खातीं। इसके बजाय, वे अपने बच्चों का पेट भरने के लिए शिकार करते हैं। ततैया हमारे लिए कई मायनों में फायदेमंद होती है। वे एफिड्स और कैटरपिलर (Aphids And Caterpillars) जैसे कीटों को नियंत्रित करते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में मदद मिलती है। दुर्भाग्य से आज ततैया भी अन्य सभी कीड़ों की तरह, निवास स्थान के नुकसान और जलवायु परिवर्तन से खतरे से गुजर रहे हैं।
संदर्भ
https://t.ly/mkeD5
https://t.ly/6_eFe
https://t.ly/OI99z
चित्र संदर्भ
1. हवा में उड़ती मधुमक्खी को संदर्भित करता एक चित्रण (publicdomainpictures)
2. फूल पर बैठी मधुमक्खी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एपिस फ्लोरिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एपिस एंड्रेनिफोर्मिस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एपिस डोरसाटा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एपिस लेबोरियोसा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. एपिस मेलीफेरा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. एपिस सेराना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. एपिस कोशेवनिकोवी को संदर्भित करता एक चित्रण (pixahive)
10. एपिस निग्रोसिंक्टा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
11. मैक्सिकन शहद ततैया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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