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आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य बनाने हेतु, आज दुनियाभर की सरकारें और समाज, लैंगिक समानता और विचारों की स्वतंत्रता बहाल करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि, वास्तविकता कई बार इसके विपरीत नजर आती है। उदाहरण के तौर पर आज भी यौन उत्पीड़न एक ऐसा दुखद मुद्दा बना हुआ है, जिसका सामना कई कामकाजी महिलाओं को हर दिन करना पड़ता है। हालांकि भारतीय श्रम कानून के तहत कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए विशिष्ट नियम बनाए गए हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं को यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुचारु मदद मिल सके।
आइए आज ऐसे ही कानूनो के बारे में जानते हैं|
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013) को संक्षेप में PoSH अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है। भारत में PoSH अधिनियम 2013 से लागू हुआ एक कानून है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिए काम करने हेतु एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण बनाना, और यौन उत्पीड़न के खिलाफ उन्हें सुरक्षा प्रदान करना है।
हालाँकि, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून के कार्यान्वयन पर संदेह जाहिर किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र, राज्यों, और केंद्र शासित प्रदेशों से यह जांच करने के लिए कहा है कि “क्या सभी सरकारी निकायों ने अधिनियम की आवश्यकता के अनुसार आंतरिक शिकायत समितियों की स्थापना की है?” साथ ही क्या इन समितियों की रचना अधिनियम के नियमों के अनुसार ठीक से की गई है?
PoSH अधिनियम, 1992 की एक दुखद घटना से सबक लेकर बनाया था। दरअसल, साल 1992 में, राजस्थान में भंवरी देवी नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ पांच लोगों ने सामूहिक बलात्कार कर दिया था। क्योंकि उन्होंने एक साल की बच्ची के बाल विवाह को रोकने की कोशिश की थी। कार्यकर्ता समूहों ने इस अपराध के खिलाफ कई याचिकाएं दायर कीं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक समानता को लागू करने, और कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता को पहचाना।
कोर्ट ने 1997 में कुछ विशेष दिशा निर्देश जारी किए, जिन्हें "विशाखा दिशा निर्देश" के नाम से जाना जाता है। उचित कानून बनने तक, सभी कार्यस्थलों में इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना जरूरी था। विशाखा दिशानिर्देशों को भारतीय संविधान (अनुच्छेद 15) के प्रावधानों और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों से और अधिक ताकत मिली। हालांकि इन दिशानिर्देशों के बावजूद भी इनके कार्यान्वयन में खामियां बनी रहीं, जिसके कारण शीर्ष अदालत को इस मुद्दे में हस्तक्षेप करना पड़ा, और 1997 के बाद कई बार अनुवर्ती निर्देश जारी करने पड़े।
2000, 2003, 2004, 2006, और 2010 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी कार्यस्थल आचार संहिता के लिए मसौदा प्रस्तुत किया। 2007 में, भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं के संरक्षण हेतु एक विधेयक पेश किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकना, और उसका समाधान करना था। 9 दिसंबर, 2013 के दिन, कई संशोधनों के बाद, यह एक कानून बन गया, जिसे आज हम कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, या बस PoSh अधिनियम के रूप में जानते हैं।
PoSh अधिनियम यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है। इसकी परिभाषा में किसी भी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना छूना, यौन संबंधों के लिए पूछना, अनुचित टिप्पणियां करना, वयस्क सामग्री दिखाना, या कोई अन्य अवांछित यौन व्यवहार शामिल हो सकता है।
नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें उत्पीड़न के रूप में देखा जा सकता है:
१. न चाहने पर भी यौन संबंधों या डेट के लिए पूछना।
२. किसी के रूप-रंग या शरीर के बारे में अनुचित टिप्पणी करना।
३. किसी के लिंग, या यौन रुझान के आधार पर उसका अपमान करना या, उसका मजाक उड़ाना।
४. लिंग, या यौन रुझान से संबंधित आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करना।
५. सेक्स से संबंधित भद्दे, आपत्तिजनक या स्पष्ट चुटकुले सुनाना।
६. यौन सामग्री वाले संदेश भेजना, या साझा करना।
७. किसी के व्यक्तिगत संबंधों, या यौन जीवन के बारे में अफवाह फैलाना।
८. किसी को अनुचित तरीके से छूना, जिसमें गले लगाना, चूमना या हमला करना शामिल है।
९. घूरना, या यौन इशारे करना।
१०. किसी का रास्ता रोकना।
यौन उत्पीड़न अधिनियम किस पर लागू होता है?
यह कानून हर उस महिला को सुरक्षा देता है, जिसे यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत 'कर्मचारी' माना जाता है।
यौन उत्पीड़न निवारण (पीओएसएच) अधिनियम एक कर्मचारी को कंपनी कानून के अनुसार ही नहीं, बल्कि अधिक व्यापक रूप से परिभाषित करता है। सभी महिला कर्मचारी, चाहे वे नियमित, अस्थायी, संविदात्मक रूप से, या यहां तक कि मुख्य नियोक्ता की जानकारी के बिना नियोजित हों, उन्हें भी कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न के निवारण की मांग करने का अधिकार है। यह पूरे भारत में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के संगठनों पर लागू होता है।"
कानून कहता है कि 10 से अधिक कर्मचारियों वाली किसी भी कंपनी को एक आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee (ICC) बनानी होगी। इस समिति को महिला कर्मचारियों के लिए, काम के दौरान यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिए बनाया जाता है। आईसीसी का नेतृत्व एक महिला द्वारा किया जाना चाहिए और इसमें कम से कम दो अन्य महिलाएं, एक अन्य कर्मचारी और एक एनजीओ (NGO) से कोई ऐसा व्यक्ति जुड़ा होना चाहिए, जिसके पास यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से निपटने का कम से कम पांच साल का अनुभव हो।
कानून के अनुसार 10 से कम कर्मचारियों वाली छोटी कंपनियों, और अनौपचारिक क्षेत्रों (जैसे घरेलू कामगार या घर-आधारित श्रमिक) में काम करने वाली महिलाओं हेतु, प्रत्येक जिले को उनकी शिकायतों को संभालने के लिए एक स्थानीय समिति (Local Committee (LC) बनानी जरूरी है।
ICC और LC दोनों को यौन उत्पीड़न निवारण (POSH) अधिनियम के अनुसार जांच करनी होगी, और "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों" का पालन करना पड़ेगा।
एक महिला अपने साथ घटित घटना के तीन से छह महीने के भीतर किसी भी समिति को लिखित शिकायत प्रस्तुत कर सकती है।
समिति इस मुद्दे को दो तरीकों से हल कर सकती है:
१. शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच चर्चा के माध्यम से (जिसमें वित्तीय समझौता शामिल नहीं हो सकता।)
२. जांच शुरू करके और उसके निष्कर्षों के आधार पर कार्रवाई करके।
हर साल, नियोक्ता द्वारा जिला अधिकारी को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें प्राप्त यौन उत्पीड़न की शिकायतों की संख्या, और की गई कार्रवाई का विवरण होना चाहिए। नियोक्ता को कर्मचारियों को अधिनियम के बारे में शिक्षित करने, और आईसीसी सदस्यों को प्रशिक्षित करने के लिए नियमित रूप से कार्यशालाएं और जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करने जरूरी हैं। यदि कोई कंपनी आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का गठन नहीं करती है, या यौन उत्पीड़न अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करती है, तो उन पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि वे वही गलती दोहराते हैं, तो जुर्माना दोगुना हो सकता है, और कंपनी को अपने पंजीकरण या व्यवसाय लाइसेंस से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
हालाँकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट नेआंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) से जुड़े कुछ मुद्दों पर प्रकाश डाला। इसमें उल्लेख किया गया है कि 30 राष्ट्रीय खेल महासंघों में से 16 ने अभी तक आईसीसी की स्थापना नहीं की है। यह बात तब सामने आई जब एक महिला पहलवान ने कथित यौन उत्पीड़न को लेकर भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम के क्रियान्वयन को लेकर एक बड़ी चिंता यह भी है, कि अधिनियम स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता है ,कि कार्यस्थलों पर अधिनियम का पालन सुनिश्चित करने के लिए कौन जिम्मेदार है, और किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए?
कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के प्रति जागरूक करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
1. कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यशालाएँ और जागरूकता कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाने चाहिए।
2. यौन उत्पीड़न को दुराचार माना जाना चाहिए और उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
3. नियोक्ता को आईसीसी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर नज़र रखनी चाहिए।
नया कानून मानता है कि महिलाओं को उन कार्यस्थलों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है, जहां पुरुष और महिला दोनों काम करते हैं। यह पीड़ित को सहायता प्राप्त करने के लिए कुछ निश्चित चरण प्रदान करता है।
शिकायत और जांच प्रक्रिया कैसे काम करती है:
- पीड़ित को घटना होने के 3 महीने के भीतर आईसीसी या एलसीसी को लिखित रूप से रिपोर्ट करनी चाहिए।
- मामले को निपटाने के लिए पीड़ित, आईसीसी, या एलसीसी से मदद मांग सकता है।
- यदि निपटान विफल हो जाता है या अनुरोध नहीं किया गया है, तो आईसीसी या एलसीसी शिकायत प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर जांच करेगी।
- आईसीसी या एलसीसी को जांच समाप्त होने के 10 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी।
- नियोक्ता को रिपोर्ट प्रकाशित होने के 60 दिनों के भीतर सिफारिशों पर कार्य करना होगा।
इसके तीन संभावित परिणाम हो सकते हैं:
- आरोप साबित होने पर कंपनी अपने नियमों के मुताबिक कार्रवाई करेगी। यदि उत्पीड़न गंभीर है, तो कंपनी को कानूनी कार्रवाई करने के लिए अधिकारियों को सूचित करना होगा।
- यदि आरोप सिद्ध नहीं हुआ और कोई बुरा इरादा नहीं था, तो कंपनी कोई कार्रवाई नहीं करेगी।
- यदि आरोप साबित नहीं होता है और गलत इरादे से लगाया गया है, तो आरोप लगाने वाले व्यक्ति को कंपनी के नियमों के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
- पीड़ित, और आरोपी दोनों आईसीसी या एलसीसी की सिफारिशों के खिलाफ सिफारिश किए जाने के 90 दिनों के भीतर अदालत, या न्यायाधिकरण में अपील कर सकते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने 2019 में संसद को बताया कि उसके पास कार्यस्थल उत्पीड़न के मामलों पर केंद्रीकृत डेटा भी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा एक और मुद्दा यह भी है कि अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं की कानून तक पहुंच काफी कम है, जबकि भारत की 80% से अधिक महिला कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र ही कार्यरत है।
यौन उत्पीड़न के मामलों में, अक्सर ठोस सबूतों की कमी होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है, कि अपराध हुआ ही नहीं। अदालतें इस मुद्दे को संबोधित करने में झिझकती रही हैं, और सबूतों पर बहुत अधिक भरोसा करती रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां महिलाओं को ही दंडित किया गया, और यहां तक कि उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा।
सर्वोच्च न्यायालय की हालिया चिंताएँ और निर्देश क्या हैं?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा, कि यौन उत्पीड़न का शिकार होने से न केवल महिला के आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचता है, बल्कि उसके भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। न्यायालय ने यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम की प्रभावशीलता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह महिलाओं को कार्यस्थल पर वह गरिमा और सम्मान प्रदान करने में सफल नहीं होगा, जिसकी वे हकदार हैं।
न्यायमूर्ति कोहली ने अपने फैसले में लिखा, कि यदि अधिकारी, प्रबंधन, और नियोक्ता एक सुरक्षित कार्यस्थल का आश्वासन नहीं दे सकते हैं, तो महिलाएं आजीविका कमाने, और अपनी प्रतिभा, और कौशल का पूरा उपयोग करने के लिए अपने घरों से बाहर निकलने से भी डरेंगी।
अदालत ने केंद्र, राज्यों, और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध अभ्यास करने का निर्देश दिया कि क्या विभिन्न सरकारी संस्थाओं ने अधिनियम के अनुरूप आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी), स्थानीय समितियों (एलसी) और आंतरिक समितियों (आईसी) का गठन किया है। इन निकायों को अपनी वेबसाइटों पर अपनी-अपनी समितियों का विवरण प्रकाशित करने का भी आदेश दिया गया है।
भले ही नया कानून महिलाओं पर केंद्रित है, लेकिन यौन उत्पीड़न पर कंपनी की नीति में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। इसलिए, पॉलिसी को बिना किसी भेदभाव के पुरुषों, और महिलाओं दोनों को कवर करना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdfv5wy2
https://tinyurl.com/5asncsp4
चित्र संदर्भ
1. ऑफिस में काम करती एक भारतीय महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ऑफिस में काम करती एक महिला के हाथ को छूते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. यौन उत्पीड़न कानून को संदर्भित करता एक चित्रण (upceedconsulting)
4. एक उदास महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (easy-peasy)
5. एक पीड़ित महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (Artha Global)
6. यौन उत्पीड़न जागरूकता सेमिनार को दर्शाता चित्रण (flickr)
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